नारी यह शब्द अपने आप मे अपार शक्ति समेटे हुए हैं। यह नाम शक्ति का जीता जागता रूप है। सूर्योदय से पहले जागने की शक्ति समय से आगे अनवरत भागने की शक्ति। नारी की अनेक भुजाएं- किसी भुजा में धर्म कर्म है, तो किसी मे सन्तान के माथे पर प्यार भरी थपथपाहट, किसी मे अपार ममत्व भरी महिला है।
प्राचीन काल से आज तक हुए बदलाव को खुद में समायोजित किया है। नीर की तरह समायोजन का शक्ति पुंज है नारी।
खुद को घर के कर्तव्यों से बांधती कभी गांधारी, कभी गार्गी। भक्ति का समर्पण मीरा, त्याग की मूर्ति पन्ना धाय, आन की रक्षा में हंसी के फुहारों से जोहर की प्रचंड ज्वाला को प्रज्ज्वलित करती रानी पद्मावती तो कभी अन्याय का विरोध करती सीता भी है नारी।
नारी के कई रूप है। शक्ति है! भक्ति है, श्रद्धा है, विश्वास है, आशा है, मर्यादा है, लज्जा है, सौंदर्य है, क्षमा है, विद्या है, वाणी है, बेटी है, बहन है, माँ है, पत्नी है, वात्सल्य का कल-कल बहता झरना है। हर रुप मे सम्माननीय, वन्दनीय है नारी। शास्त्र कहते हैं- "यत्र नारयेस्तु पूज्यंते, रमन्ते तत्र देवता।" अर्थात जहां नारी का सम्मान होता है, वहीं देवताओं का वास होता है।आज नारी को वही सम्मान चाहिए जिसकी वह अधिकारी है। महिलाओं के प्रति नजरो में हवस, तिरस्कार ओर लघुता का भाव नहीं चाहिए। नारी को वह मिले जिसकी वह सदियों से अधिकारी है। खुद भगवान ने नारी को बड़ा सम्मान देकर यह सन्देश दिया है। राम से पहले सीता है, श्याम से पहले राधा है।
स्त्री का सम्मान
सप्तऋषियों में एक ऋषि भृगु थे, वो स्त्रियों को तुच्छ समझते थे। वो शिवजी को गुरुतुल्य मानते थे, किन्तु माँ पार्वती को वो अनदेखा करते थे। एक तरह से वो माँ को भी आम स्त्रियों की तरह साधारण और तुच्छ ही समझते थे। महादेव भृगु के इस स्वभाव से चिंतित और खिन्न थे। एक दिन शिव जी ने माता से कहा, आज ज्ञान सभा में आप भी चले। माँ शिव जी के इस प्रस्ताव को स्वीकार की और ज्ञान सभा में शिव जी के साथ विराजमान हो गई। सभी ऋषिगण और देवताओ ने माँ और परमपिता को नमन किया और उनकी प्रदक्षिणा की और अपना-अपना स्थान ग्रहण किया..
किन्तु भृगु माँ और शिव जी को साथ देख कर थोड़े चिंतित थे, उन्हें समझ नही आ रहा था कि वो शिव जी की प्रदक्षिणा कैसे करे। बहुत विचारने के बाद भृगु ने महादेव जी से कहा कि वो पृथक खड़े हो जाये। शिव जी जानते थे भृगु के मन की बात।
वो माँ को देखे, माता उनके मन की बात पढ़ ली और वो शिव जी के आधे अंग से जुड़ गई और अर्धनारीश्वर रूप में विराजमान हो गई। अब तो भृगु और परेशान, कुछ पल सोचने के बाद भृगु ने एक राह निकाली। भवरें का रूप लेकर शिवजी के जटा की परिक्रमा की और अपने स्थान पर खड़े हो गए। माता को भृगु के ओछी सोच पे क्रोध आ गया। उन्होंने भृगु से कहा- भृगु तुम्हे स्त्रियों से इतना ही परहेज है तो क्यूँ न तुम्हारे में से स्त्री शक्ति को पृथक कर दिया जाये.. और माँ ने भृगु से स्त्रीत्व को अलग कर दिया। अब भृगु न तो जीवितों में थे न मृत थे। उन्हें आपार पीड़ा हो रही थी.. वो माँ से क्षमा याचना करने लगे.. तब शिव जी ने माँ से भृगु को क्षमा करने को कहा। माँ ने उन्हें क्षमा किया और बोली - संसार में स्त्री शक्ति के बिना कुछ भी नही। बिना स्त्री के प्रकृति, पुरुष भी नही। दोनों का होना अनिवार्य है और जो स्त्रियों को सम्मान नही देता वो जीने का अधिकारी नही।
आज संसार में अनेकों ऐसे सोच वाले लोग हैं। उन्हें इस प्रसंग से प्रेरणा लेने की आवश्यकता है। वो स्त्रियों से उनका सम्मान न छीने। खुद जिए और स्त्रियों के लिए भी सुखद संसार की व्यवस्था बनाए रखने में योगदान दें।
महिला दिवस पर समस्त नारियों को ईश्वर का साक्षात स्वरूप मान कर शत शत नमन!
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