भारत के स्वतंत्रता आंदोलन और उसके बाद करीब तीन-चौथाई समय तक देश में सत्ता की अगुवाई करने वालों ने हमारे पूर्व महान व्यक्तित्वों के साथ भेदभाव किया। जरा भी निडरता से अपना पक्ष रखने वालों को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने दरकिनार कर दिया। उन महान लोगों के काम और आदर्शों को अपनी विचार धारा का न तो अंग बनने दिया। और न ही मरने के बाद इन महान नेताओं के नाम को अमर बनाने की राह पर ले गएं। देश के राष्ट्रीय आंदोलन में पर्दे के पीछे से महान भूमिका निभाने वाले क्रांतिकारियों की ओर तो इन कर्ताधर्ताओं ने देखना भी मुनासिब नहीं समझा। एकल पार्टी के दबदबे से लंबे समय तक देश में मजबूत विपक्ष खड़ा नहीं हो पाया। भविष्य के बारे में निष्पक्ष न सोचकर कांगेस इसी अवसर में मग्न रही। राष्ट्रीय व्यक्तित्वों की धरोहर को निष्पक्ष आकार देने की बजाय इसे चंद लोगों और परिवार तक सीमित कर लिया। उन्हें ही अमर बनाते रहें। उनसे कोई दूजा नहीं। हर योजना, स्थान और संस्था का नाम बस उन्हीं चंद लोगों या परिवार के नाम पर रखा। बाकी को बेकार समझा। चाहे वो सरदार वल्लभ भाई पटेल, सुभाष चन्द्र बोस, बाल गंगाधर तिलक, स्वामी विवेकानन्द या फिर चन्द्रशेखर आजाद जैस अन्य क्रांतिकारी हो। इसी का नतीजा है, भारतीय जनता पार्टी ने अकेले पूरे बहुमत के साथ केन्द्र में आते ही भारत के पहले उप प्रधानमंत्री और गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती को देश में राष्ट्रीय एकता और अखंडता के रूप में मनाने का निर्णय लिया।
31 अक्टूबर 2014 से पूरे भारत में सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती 31 अक्टूबर को राष्ट्रीय एकता और अखंडता दिवस के रूप में मनाई जायेंगी।
भारत के लगभग आधे भाग में सांप्रदायिक और विघटनकारी लोग सक्रिय हैं। ऐसे समय सरदार वल्लभ भाई पटेल के आदर्श ही हमें याद आते हैं। जो राह दिखा सकते हैं। स्वतंत्रता के बाद सरदार वल्लभ भाई पटेल ने देश की 565 रियासतों को सादगी और शालीनता से भारत संघ में विलय किया। उनके इसी काम से वे आधुनिक भारत के राष्ट्र निर्माता और हिन्दुस्तान के लौह पुरूष तथा मैकियावेली कहलाए। पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात में हुआ था। सरदारगीरी के काम अधिक करने के कारण वे 22 साल की उम्र में मैट्रिक पास कर पाए और वकालत के पेशे में जुट गए। 1908 में विलायत की अंतरिम परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास कर बैरिस्टर बन गए। फौजदारी वकालत में उन्होंने खूब यश कमाया और धाक जमाई। प्रारंभ में पटेल गांधी जी के कामों से सहमत नहीं थे। मगर गुजरात के चम्पारन जिले में गांधी जी के सत्याग्रह आंदोलन की सफलता देख पटेल उनके भक्त बन गए। 1930 से 1933 तक चले आंदोलनों में दक्षिण भारत की कमांड पटेल के हाथों में रही। बारदोली सत्याग्रह के समय पटेल ने किसानों से कहा – देखों भाई ! सरकार के पास निर्दयी आदमी हैं। खुले हुए भाले – बंदूकें हैं। तोपे हैं। ब्रिटेन संसार की एक बड़ी शक्ती है। तुम्हारें पास केवल तुम्हारा ह्रदय है। अपनी छाती पर इन प्रहारों को सहने का तुम में हो तो आगे बढ़ने की बात सोचो। कांग्रेस केंद्रीय पार्लियामेंट्री बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में सरदार पटेल ने आठों प्रांतों के कामों कुशलता पूर्वक किया। दूसरे विश्व युद्ध के समय ब्रिटेन ने घोषणा की कि युद्ध के बाद सभी भारतीयों की इच्छा अनुसार भारत को औपनिवेशिक स्वराज्य दिया जायेंगा। पटेल ने इस पर गंभीर प्रतिक्रिया की। पटेल ने मुसलमानों के प्रति अविश्वास और संदेह की शिकायत गांधी जी से की। तब गांधी जी ने कहा सरदार सीधी बात बोलने वाले व्यक्ति है। उनकी बात कड़वी लगती है पर वे दिल के साफ है। अंग्रेजों भारत छोड़ों आंदोलन के समय सरदार पटेल ने लोगों से कहा – ऐसा समय फिर नहीं आयेंगा। आप मन में भय न रखे। आपको यही समझकर लड़ाई लड़ना है कि – महात्मा गांधी और नेताओं को गिरफ्तार कर लिया जायेंगा। तो आप न भूले कि आपके हाथ में कोई ऐसी शक्ति है कि 24 घंटे में ब्रिटिश सरकार का शासन खत्म हो जायेंगा। सित्मबर, 1946 में जब नेहरू जी की अस्थायी राष्ट्रीय सरकार बनी तो सरदार पटेल को गृहमंत्री नियुक्त किया गया। भारत विभाजन के पक्ष सरदार पटेल का कहना था सांप्रदायिकता के जहर को फैलने से रोकने के लिए पहले ही गले – सड़े अंग को आपरेशन कर कटवा देना चाहिए। देशी राज्यों के एकीकरण को पटेल ने बिना खून – खराबे के बड़ी कुशलता से हल किया। देशी राज्यों में राजकोट, जूनागढ़, बहावलपुर, बड़ौदा, कश्मीर, हैदराबाद को भारतीय संघ में मिलाने के लिए सरदार को कई पेचिदगियों का सामना करना पड़ा। हैदराबाद के निजाम ने राज्य में निवास करने वाली 85 फीसदी हिन्दू जनता को तीन भाषाओं में – तेलगू, मराठी और कन्नड़ में बांटकर लाभ उठा रखा था। निजाम ने राज्य की जागृति को ऐसी निरस्त करने के लिए ऐसी नीति अपना रखी थी। राष्ट्रीय आंदोलन फैलने से बचाने के लिए हैदराबाद को रेल लाइन से नहीं जुड़ने दिया गया। अंग्रेजी से बचाने और मुसलमानों की भावना को अपने ओर मिलाने निजाम ने शिक्षा में उर्दू को माध्यम बना रखा था। भारत संघ में विलय न होने के उद्देश्य से उसने चुपचाप हैदराबाद को 10 लाख रूपये में पाकिस्तान को बेचने का दुष्चक्र रच लिया था। लेकिन इस साजिश की भनक पटेल को लग गई। तब उन्होंने निजाम की दुर्गति की और हैदराबाद को भारत में मिला लिया। जब चीन के प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई ने नेहरू को पत्र लिखा कि वे तिब्बत को चीन का अंग मान ले। तो पटेल ने नेहरू से आग्रह किया कि वे तिब्बत पर चीन का प्रभुत्व कतई न स्वीकार करें। अन्यथा चीन भारत के लिए खतरनाक सिद्ध होगा। नेहरू नहीं माने। बस इसी भूल के कारण हमें चीन से पीटना पड़ा। चीन ने हमारी सीमा की 40 हजार वर्ग गज भूमि पर कब्जा कर लिया। सरदार पटेल के ऐतेहासिक कामों में सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण, गांधी स्मारक नीधि की स्थापना, कमला नेहरू अस्पताल की रूपरेख आदि हमेशा याद किए जाते रहेंगे। उनके मन में गोआ को भी भारत में विलय करने की इच्छा बलवती थी। एक बार जब उनका युद्धपोत गोआ के निकट से जा रहा था तब पटेल ने कमांडिंग आफिसर से तुम्हारे पास कितने सैनिक हैं। कप्तान ने कहा 800। पटेल ने फिर पूछा क्या गोआ पर अधिकार करने के लिए इतने सैनिक काफी हैं। कमांडर ने उत्तर दिया हां। पटेल ने कहा चलो हम गोआ पर अधिकार कर लेते है। कप्तान ने पटेल से इसका आदेश लिखित मांगा। पटेल ने नेहरू के आपत्ती करने के अंदेशे से गोआ पर अधिकार करने के विचार को त्याग दिया। सरदार पटेल और नेहरू के विचारों में काफी मतभेद था। फिर गांधी से वचनबद्ध होने के कारण वे नेहरू को सदैव सहयोग देते रहे। गंभीर बातों को भी वे विनोद में कह देते थे। कश्मीर की समस्या को लेकर सरदार पटेल ने कहा था – सब जगह मेरा वश चल सकता है, पर जवाहर लाल की ससुराल में मेरा वश नहीं चलेगा। उनका यह कहना कितना सटीक था – भारत में केवल एक ही व्यक्ति राष्ट्रीय मुसलमान है – जवाहरलाल नेहरू। शेष सब साम्प्रदायिक मुसलमान हैं। यदि नेहरू को तत्कालीन भारत की उत्कृष्ट प्रेरणा कहा जाय तो सरदार पटेल को उनका प्रबल विनय अनुशासन कहा जा सकता है। 15 दिसम्बर, 1950 को इस महा पुरुष का 76 साल की आयु में निधन हो गया। अब इस खाली स्थान को भर पाना मुश्किल है। गांधी ने कांग्रेस में प्राणों का संचार किया। तो नेहरू ने गांधी की कल्पना और दृष्टिकोण को एक बड़ा आयाम दिया। वहीं जो शक्ति और सम्पूर्णता कांग्रेस को प्राप्त हुई वह सरदार पटेल की कार्यक्षमता का ही परिणाम थी। पटेल की सेवाओं का भारत के जन-मानस पर अमिट प्रभाव है। 31 अक्टूबर को देश स्कूल, कॉलेज और सभी सरकारी, गैर सरकारी संस्थाओं के साथ जनमानस, इस लौहपुरूष की जयंती को पहली बार एकता और अखण्डता दिवस के रूप में मनाने जा रहा है। यहीं सरदार वल्लभ भाई पटेल के गौरवशाली कामों और उनके धीर-शील व्यक्तित्व के लिए राष्ट्र की सच्ची भावना होगी। जो सरदार पटेल को भारत के राजनीतिक इतिहास में सच्चा स्थान दिलाकर उनका हक दिलायेंगी। दिनेश साहू , लेखक , राष्ट्रीय संयोजक, All India movement for democratic reforms
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