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अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष

Updated on 08-03-2022 01:47 PM
बेटी बहू कभी मां बनकर सब के ही सुख-दुख को सहकर अपने सब फर्ज निभाती हूँ तभी तो नारी कहलाती हूँ I
यूँ तो सबको मालुम है कि महिला दिवस क्यों मनाया जाता है.... सबसे पहले संक्षिप्त मे बता दूँ कि महिला दिवस मनाने का इतिहास क्या है ? वर्ष 1910 के अगस्त महीने में, अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के सालाना उत्सव को मनाने के लिये कोपेहेगन में द्वितीय अंतरराष्ट्रीय समाजवादी की एक मीटिंग जो अंतरराष्ट्रीय महिला सम्मेलन के द्वारा आयोजित की गई थी। अंतत: अमेरिकन समाजवादी और जर्मन समाजवादी लुईस जिएत्ज़ की सहायता के द्वारा अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का वार्षिक उत्सव की स्थापना हुई। हालाँकि, उस मीटिंग में कोई एक तारीख तय नही हुई थी।
सभी महिलाओं के लिये समानता के अधिकार को बढ़ावा देने के लिये इस कार्यक्रम को मनाने की घोषणा हुई। इसे पहली बार 19 मार्च 1911 में ऑस्ट्रीया, जर्मनी, डेनमार्क और स्वीट्ज़रलैंड के लाखों लोगों द्वारा मनाया गया था। विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम जैसे प्रदर्शनी, महिला परेड, बैनर आदि रखे गये थे। महिलाओं के द्वारा वोटिंग की माँग, सार्वजनिक कार्यालय पर स्वामित्व और रोजगार में लैंगिक भेद-भाव को समाप्त करना जैसे मुद्दे सामने रखे गये थे।
हर वर्ष फरवरी के अंतिम रविवार को राष्ट्रीय महिला दिवस के रुप में अमेरिका में इसे मनाया जाता था। फरवरी महीने के अंतिम रविवार को 1913 में रशियन) महिलाओं के द्वारा इसे पहली बार मनाया गया था। 1975 में सिडनी में महिलाओं के द्वारा एक रैली रखी गयी थी। तत्पश्चात 1914 का अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस उत्सव 8 मार्च को रखा गया था। तब से, 8 मार्च को सभी जगह इसे मनाने की शुरुआत हुई। वोट करने के महिला अधिकार के लिये जर्मनी में 1914 का कार्यक्रम खासतौर से रखा गया था।
वर्ष 1917 के उत्सव को मनाने के दौरान सेंट पीटर्सबर्ग की महिलाओं के द्वारा “रोटी और शांति”, रशियन खाद्य कमी के साथ ही प्रथम विश्व युद्ध के अंत की माँग रखी। धीरे-धीरे ये कई कम्युनिस्ट और समाजवादी देशों में मनाना शुरु हुआ जैसे 1922 में चीन में, 1936 से स्पैनिश कम्युनिस्ट आदि म मनाना शुरू होने लगा और आज पुरे विश्व भर यह दिवस महिला के सम्मान के प्रति बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है I
एक नारी के दिल की बातों से रूबारू 
सबसे ज्यादा महिला सशक्तिकरण एक विवेकपूर्ण प्रक्रिया है हमने अति महत्वकांक्षी को सशक्तिकरण मान लिया है मुझे लगता है कि महिला दिवस का औचित्य तब तक प्रमाणित नहीं होता जब तक कि सच्चे अर्थों में महिलाओं की दशा नहीं सुधरती महिला नीति है लेकिन क्या उसका क्रियान्वयन गंभीरता से हो रहा है यह देखा जाना चाहिए कि उनके अधिकार प्राप्त हो रही हैं वास्तविक सशक्तिकरण तो जब ही  होगा जब महिलाएं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होंगी और मैं कुछ करने का आत्मविश्वास जागेगा I
यह महत्वपूर्ण है कि महिला दिवस का आयोजन सिर्फ रस्म अदायगी भर नहीं रह जाए वैसे यह शुभ संकेत है कि महिलाओं में अधिकारों के प्रति समाज विकसित हुई है I अपनी शक्ति को स्वयं समझकर जागृति आने से महिला घरेलू अत्याचारों से निजात पा सकती है I कामकाजी महिलाएं अपने उत्पीड़न से छुटकारा पा सकते हैं तभी महिला दिवस की सार्थकता सिद्ध होगी I
जहां स्त्रियों का सम्मान होता है वहां देवता रमण करते हैं वैसे तो नारी को विश्व भर में सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है किंतु भारतीय संस्कृति और परंपरा में देखें स्त्री का विशेष स्थान सदियों से रहा है फिर भी अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर वर्तमान में यदि आकलन करें तो पाते हैं कि महिलाओं को मिले सम्मान के उपरांत भी भागों में विभक्त है ...... प्रगति पथ पर अग्रसर महिलाएं पुरुषों से भी हैं I
अपने आपसे कहे कि मैं कर सकती हूं I मैं करूंगी मैं कुछ बनकर ही रहूंगी I मैं प्रण लेती हूं मैं सभी को इस दिन की शुभकामना देती हूं I
अनामिका रघुवंशी, लेखिका,जिला रायसेन

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