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29 जनवरी भारतीय समाचार पत्र दिवस पर विशेष

Updated on 29-01-2023 03:31 PM
किसी ने क्या खूब कहा है:  क्या है माहौल देश दुनिया का ये बताता है अखबार, जनता के लिये कुछ कर भी रही है या सोयी हुई है सरकार, कुछ भी नहीं छुपाता है अखबार। एक कप चाय और सुबह का अखबार, पहले घूंट के साथ ही शुरू हो जाता है खबरों से प्यार। 
हर सुबह अखबार की सुर्खियां, और चाय की चुस्कियां देश के हर घर की कहानी है। राजनीति पर गरमागरम चर्चा चाय को ठंडी नहीं होने नहीं देती, बेकारी और गरीबी जैसे मुद्दों पर तो जैसे कप में उबाल ही आ जाता है, अर्थव्यवस्था, शेयर, रुपया-डॉलर, सोने चांदी का भाव तापमान घटाता- बढ़ाता रहता है, दुर्घटना, अपराध, बलात्कार की खबरे पढ़कर अनिच्छा सी जाग जाती है, नेताओं की आपसी मारा-मारी पढ़ते पढ़ते एक लंबा तीखा घूंट गले से उतार जाता है, मनोरंजन, यात्रा, बॉलीवुड के चित्र देखते हुए फीकी चाय भी मीठी हो जाती है। 
एक सामाजिक प्राणी होने के नाते मनुष्य के मन में कौतूहल और जिज्ञासा कूट कूट कर भरी है जो उसे अपने आसपास, देश में और संसार में कहां क्या घटित हो रहा है के बारे में जानने को उकसाती है। इस जिज्ञासा को पूरी तरह शांत करने में सक्षम है अखबार। समाचार पत्रों की आवाज जनता की आवाज कहलाती है और इसे लोकतन्त्र का चौथा  स्तम्भ कहलाने का सम्मान प्राप्त है।  
मुद्रण कला के विकास के साथ-साथ समाचार पत्रों के विकास की कहानी भी जुड़ी है। एक समय ऐसा भी था जब लोग समाचार पाने के लिए भटकते थे। तब संदेशवाहक ही समाचार एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाते थे। परदेश तो दूर अपने ही देश की घटनाओं के बारे में लोगों को काफी दिनों बाद जानकारी मिल पाती थी।
माना जाता है कि समाचार पत्रों का जन्म इटली के वेनिस में तेरहवीं शताब्दी में हुआ था। भारत में अंग्रेजों के आगमन से मुद्रण कला में हुई प्रगति के साथ समाचार पत्र का प्रकाशन शुरू हुआ। जेम्स ऑगस्टस हिक्की ने कोलकाता से 29 जनवरी 1780 को 'हिक्कीज बंगाल गजट : कलकत्ता जनरल एडवरटाइजर' के नाम से चार पन्नों वाला पहला भारतीय अखबार अँग्रेजी भाषा में छापना शुरू किया था। 
हिक्की भारत के पहले पत्रकार थे जिन्होंने प्रेस की स्वतंत्रता के लिये ब्रिटिश सरकार से संघर्ष किया था। उन्होने निडर होकर भ्रष्टाचार और ब्रिटिश शासन के दमनकारी तौर-तरीकों की खुली आलोचना करने की शुरुआत की थी। जनता मे इसके बढ़ते प्रभाव से बौखलाकर सरकार ने बंगाल-गजट को जब्त कर लिया गया और हिक्की को अपने इस दुस्साहस का अंजाम भारत छोड़ने के फरमान के तौर पर भुगतना पड़ा था। उनके निर्वासन के बाद अंतत: 23 मार्च 1782 को भारत के पहले अखबार का प्रकाशन बंद हो गया। 
इसके 34 साल बाद 30 मई, 1826 को हिन्दी का पहला साप्ताहिक समाचार पत्र ‘उदन्त मार्तन्ड’ के नाम से प्रकाशित हुआ । इसके बाद राजा राममोहन राय ने ‘कौमुदी’ और सर ईश्वर चद्र ने ‘प्रभाकर’ नामक अखबार छापे। आमजनों के मध्य बढ़ती लोकप्रियता के चलते यह सिलसिला बढ़ता रहा और एक-एक कर कई समाचार पत्रों का प्रकाशन शुरू हो गया। आज देश में हजारो की संख्या में दैनिक, साप्ताहिक, सांध्य दैनिक जैसे विकल्पों के साथ अनेकों भाषाओ में समाचार पत्रों का प्रकाशन हो रहा है। इन बीते सालों में भारतीय मीडिया में परिवर्तन के कई दौरों से गुजारा है। राष्ट्रीय अखबारों की जगह क्षेत्रीय अखबारों ने ली तो टीवी न्यूज चैनलों की व्यापक और उपलब्धता का भी  विस्तार हुआ है। अब पाठकों या दर्शकों के समक्ष अपने मनोवांछित अनेकों विकल्प चौबीसों घंटे उपलब्ध हैं। 
वर्तमान में विचारों की प्रधानता है और सोशल मीडिया इस क्षेत्र में तेजी से अपने पैर प्रसार रहा है। फिर भी विचारों को स्पष्ट और सही रूप में प्रस्तुत करने का समाचार पत्र से अच्छा और विश्वसनीय माध्यम कोई नहीं बन पाया है। ये चंद छपे हुए पन्ने हमें अपने देश में हो रही सभी घटनाओं के साथ ही संसार में हो रही उथल पुथल से भी अवगत कराते हैं। यह हमें खेल, नीतियों, धर्म, समाज, अर्थव्यवस्था, फिल्म उद्योग, भोजन, रोजगार, तकनीक, अंतरीक्ष, समुद्र, विज्ञान, स्वास्थय आदि के बारे में सटीक जानकारी प्रदाय करते है। समाचार पत्र शिक्षा का प्रसार करते है और सामाजिक बुराइयों के प्रति जागरूकता पैदा करते है। आज के समय में समाचार पत्र जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग बन चुका है और एक समाचार पत्र को सूक्ष्म दुनिया भी कहा जा सकता है। 
तरक्की के बावजूद आज हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत के पहले समाचार पत्र ने अखबार और पत्रकार की सही भूमिका की ओर सक्रिय संकेत दिया था। हिक्की ने अपने जागरूक आचरण के दम पर पत्रकारिता की उज्जवल चादर का पहला धागा बुना था। अपने निर्भीक और निष्पक्ष आचरण के लिए हिक्की और उनके समकालीन पत्रकारों को, न्याय के पक्ष में आवाज उठाने, अंग्रेजी सरकार की शासन शैली और दुर्नीतीयों की कटु आलोचना करने के कारण सरकार का कोप भाजन बनना पड़ा था। न्याय के इन जागरूक प्रहरीयों को भारत से निष्कासित कर तत्कालीन सरकार ने अपने स्वेच्छाचार को कायम रखने की राह निकाली थी। लेकिन न्याय और औचित्य की पक्षधरता क्रमश उग्र होती गई और ब्रितानी हुक्मरानों की दमनकारी नीति का परिणाम प्रतिकूल ही निकला था। 
जिस प्रकार किसान खेतों में अपना खून पसीना बहाकर धरती से अनाज पैदा करता है। उसी प्रकार पत्रकार हमारे समाज के सुव्यवस्थित निर्माण के लिए विषम परिस्थीतियों में भी दिन रात  एक कर निरंतर अपने कर्तव्य को अंजाम देते है। उसकी रगों में खून नही स्याही दौड़ती है। अखबारों ने अपनी क्रांतिकारी भूमिका के साथ देश को सूचना व आर्थिक क्षेत्रों में विस्फोटक गति दी है जो कि अविस्मरणीय है। हम सभी बहुत अच्छी तरह से जानते हैं कि इतनी मँहगाई के जमाने में भी अखबार ही सूचना का एकमात्र विश्वसनीय और किफ़ायती साधन हैं जिसको हम अपने समय के अनुकूल पढ़ कर संग्रह भी कर सकते हैं। 
हालांकि तमाम खबरों की खबर रखने वाला यह अखबार अपने दिवस पर अखबारों के पन्नों से अक्सर विलुप्त ही रहता हैं, परंतु पाठकों के दिल में हर पल धड़कता रहता है। 
भारतीय अखबार दिवस पर शुभकामनायेँ ।

- राजकुमार जैन, स्वतंत्र विचारक,लेखक

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