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समाजवादी : पूंजीवाद नहीं पूंजी प्रेमी

Updated on 07-06-2022 11:29 PM
आज कुछ राजनीतिक दल ऐसे हैं जो अपने आपको समाजवादी मूल्यों के प्रति समर्पित होने का जोर-शोर से दावा करते हैं। एक दल का नाम समाजवादी पार्टी है जिसके कई नेता भी अपने आपको समाजवादी कहलाने में फक्र का अनुभव करते हैं लेकिन वास्तव में देखा जाए तो उनमें से अधिकांश आजकल पूंजी प्रेमी हो गए  हैं। उन्हें उनकी बात से परहेज है लेकिन धनाढ्य होने से नहीं। बरसों पहले एक समाजवादी नेता ने कहा था कि हमें पूंजीवाद से परहेज है पूंजी से नहीं। ऐसे में रघु ठाकुर जैसे समाजवादी नेता, लेखक और चिंतक संभवतः ऐसे पहले शख्स हैं जो अभी भी समाजवाद का हुक्का गुड़गुड़ा रहे हैं और रह रह कर डॉ राम मनोहर लोहिया और मधु लिमए जैसे प्रखर समाजवादी नेताओं के विचारों को आज भी प्रासंगिकता दे रहे हैं जबकि अनेक समाजवादियों ने उसे खूंटी पर टांग रखा है और केवल सत्ता प्राप्ति का जरिया समझ रहे हैं।समाजवादी नेता मधु लिमये जेल को ' महात्मा गॉंधी विश्वविद्यालय ' कहा करते थे। अगर हमें वास्तविक आजादी चाहिए तो हर प्रकार की विषमता को मिटाने का प्रयास करना होगा और जरूरत पड़े तो जेल जाने के लिए भी तैयार रहना होगा। मधु लिमये की जन्मशताब्दी के उपलक्ष्य में आयोजित समारोह में यह आह्वान प्रसिद्ध समाजवादी चिंतक रघु ठाकुर ने किया। देश के अस्सी फीसदी लोगों की पांच किलो मुफ्त के अनाज पर निर्भरता को लज्जाजनक बताते हुए रघु ठाकुर ने कहा कि प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद की रिपोर्ट देश की भयावह आर्थिक विषमता को बयान कर रही है। आजादी के बाद देश के सार्वजनिक जीवन में मधु लिमये के महत्व को रेखांकित करते हुए रघु ठाकुर ने कहा कि मधु जी के नेता डा. राममनोहर लोहिया थे। लोहिया और मधु लिमये के संसद में पहुंचने से पहले तक संसद में सत्ता पक्ष को कभी चुनौती नहीं मिली थी। लोहिया और मधु जी जैसे प्रखर सांसदों के कारण सरकार की तानाशाही प्रवृत्तियों पर अंकुश लगा और संसद में गरीबों की आवाज गूंजी। आज संसद को जनता के ऐसे ही प्रतिनिधियों की जरूरत है जो जनता के दु:ख दर्द को समझें और उनकी भावनाओं को बुलंद करें। इसके लिए मतदाताओं में भी चेतना पैदा करना जरूरी है। केबल मीडिया की सुर्खियों में रहने के लिए संसद का बहिष्कार शोर-शराबा और हंगामा विपक्ष के लिए एक प्रकार से शॉर्टकट बन गया है और उस पर प्रहार करते हुए रघु ठाकुर ने संसद के बहिष्कार को गलत बताते हुए कहा कि सरकार तो चाहती ही है कि कोई बहस न हो। हल्ला- गुल्ला और शोर में सत्र बीत जाये, मधु लिमये की सादगी की मिसाल देते हुए रघु ठाकुर ने कहा कि जनता के लिए लड़ने वाले नेताओं का चुनाव खर्च जनता को ही उठाना चाहिए। मधु जी तो महज एक फिएट कार में चुनाव लड़ते रहे। किसी के भी स्कूटर पर बैठकर वे संसद चले जाते थे, सांसद होने की पेंशन नहीं ली, तकलीफ उठाई। इसीलिए लाड़ली मोहन निगम ने उनके विषय में कहा कि ' न्यूनतम लिया, अधिकतम दिया, श्रेष्ठतम जिया '।   सांसद संजय सिंह ने कहा कि मधु लिमये से रघु ठाकुर ने सीखा है और हम सबने जनता के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा रघु जी से ली। आज संसद में अगर खुले मन से चर्चा सम्भव हुई है तो वह मधु लिमये जैसे निर्भीक और जनता के सरोकार से जुड़े  संसदीय परम्परा के मर्मज्ञ जुझारू लोगों के कारण। आजाद भारत की संसद में विपक्ष के प्रादुर्भाव का श्रेय डा. राममनोहर लोहिया, मधु लिमये जैसे प्रखर सांसदों को देते हुए संजय सिंह ने कहा कि आज गरीब आदमी के लिए अपने बच्चों को पढ़ाना लिखाना कितना कठिन हो गया है, लोहिया जी और मधु जी जैसे नेताओं ने  'विशेष अवसर का सिद्धांत ' न दिया होता तो हर तरह कमजोर लोगों की क्या स्थिति होती।
अरुण पटेल,लेखक, प्रधान संपादक
(ये लेखक के अपने विचार है)

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