समाजवादी घराने की राजनीति करने वाले और बाद में कांग्रेस में आए राजा पटेरिया द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर बोले गए अमर्यादित उदगारों ने एक और तो उन्हें जेल पहुंचा दिया है तो वहीं दूसरी ओर उनको लेकर कांग्रेस में भी अलग-अलग स्वर-लहरिया सामने आई हैं। इसको लेकर यह कहा जा सकता है कि कांग्रेस में समाजवाद की उठती लहरें और निशाने पर 'साम्राज्यवाद" तो नहीं है। समाजवादी 'दर्शन' का अचानक कांग्रेस के भीतर बेखौफ उभरना भले ही पार्टी के भीतर किसी बड़े विवाद का कारण ना हो, लेकिन यह तात्कालिक परिस्थितियों में वैचारिक आधार पर 'संघर्ष' का सूत्रपात प्रथम दृष्टया जरूर नजर आता है। दरअसल समाजवादी विचारधाारा के कांग्रेस नेता व पूर्व मंत्री राजा पटेरिया अपनी अटपटी और अतार्किक भाषणबाजी से कानूनी शिकंजे में हैं। इधर कांग्रेस के ही बहुत पुराने खांटी समाजवादी नेता रहे व अब विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष डॉ.गोविंद सिंह के मन में पटेरिया के प्रति सहानुभूुति का सोता फूट पड़ा है। यह बाकी हालातों में तो ठीक था लेकिन 'डाक्साब' तब फट पड़े हैं, जबकि कांग्रेस के ताकतवर प्रदेशाध्यक्ष कमलनाथ ने पटेरिया के मुताल्लिक 'एक फैसला' ले रखा है। पटेरिया पर कांग्रेस से निष्कासन की तलवार लटका दी गई है, वे जेल में हैं और कमलनाथ ने उनसे नरेंद्र मोदी को लक्ष्य करके दिये गये आपत्तिजनक भाषण पर तीन दिन के भीतर स्पष्टीकरण देने को कहा है। पटेरिया के अटपटे बोल मामले के कानूनी पहलू चाहें जो करवटें लें, लेकिन राजनीतिक पहलुओं पर काफी सरगोशी हो रही है। वे कई साल से चुनाव नहीं जीते हैं लेकिन डॉ गोविंद सिंह ने अपने प्रादेशिक हाईकमान के निर्णय को प्रकारांतर से गैरजरूरी बताकर मन से और दल से समाजवादी नजरिये को मजबूती से रख दिया है। हालांकि पटेरिया की वैचारिक दोस्ती डॉक्साब के बजाए कांग्रेस की राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय कई समाजवादी विचार के नेताओं से ज्यादा गहरी देखी जाती रही है। ऐसा माना जा रहा है कि डॉक्साब ने तीन वजहों से पटेरिया के साथ हो रही 'राजनीतिक नाइंसाफी' पर आवाज उठाई है। यह है- अपना दर्शन, दल और राजनीतिक तकाजे। कांग्रेस के भीतर उठती इस नयी वैचारिक हवा के साथ कुछ बातें भी बहने लगी हैं। डॉक्साब यदि पटेरिया को लेकर मजबूती से मप्र पर दो दशक से शासन कर रही भाजपा सरकार से भी भिड़ रहे हैं तो अपने दल के 'नाथ' से भी। यानि 'साम्राज्यवाद' के खिलाफ उनके औचक तेवर और नए कलेवर वाले 'संघर्ष' के मूल में समाजवाद का वह बीज है जो 'बुर्जुआई प्रभुत्व' के सामने खड़ा हो जाता है। बहरहाल, यह संघर्ष भी उस वक्त उभरा है जब विधानसभा चुनाव महज दस महीने दूर हैं और कांग्रेस के भीतर नई व चुनावी जमावट होने वाली है। डॉक्साब भाजपा के धुर विरोधी तो हैं ही, अब कांग्रेस में भी नयी आवाज बन रहे हैं। हाल के अर्से में कई बार ऐसा हुआ जब कई नेता-विधायक कुछ मामलों में 'अकेले' पड़ गए। बहरहाल जब डाक्साब बार-बार कहते हैं कि पटेरिया के उस भाषण में -इन द सेंस, शब्द पर भी गौर किया जाए, तो यह 'इन द सेंस" खुद उनके तेवरों में भी पढ़ा जाना जरूरी लगता है। वहीं दूसरी ओर देश के जाने-माने समाजवादी नेता और विचारक रघु ठाकुर भी मैदान में उतर आए और उन्होंने कहा कि राजा पटेरिया के प्रधानमंत्री मोदी के सम्बन्ध में दिए भाषण में उल्लेखित कथन को अधूरा देखा जा रहा है. अगली ही लाइन मे उन्होंने अपने कथन को स्पष्ट किया है कि राजनैतिक व्यक्ति को हराकर सत्ता से हटाना ही राजनीतिक हत्या होती है। पटेरिया की शैली को स्पष्ट करते हुए रघु ठाकुर कहते हैं कि अपने स्वभाव के अनुरूप वे शब्द चयन व वाक्य विन्यास में असावधान रहते हैं पर पूरे वीडियो को सुनने के बाद उनके कथन का वही अर्थ निकलता है। मैं उन्हें लगभग 48 वर्षों से जानता हूँ. उन्होंने कभी कोई अपराध नहीं किया और न वे आपराधिक स्वभाव के हैं. मैं मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा से अनुरोध करता हूँ कि किसी भी अपराध में उद्देश्य देखना चाहिये. इस भाषण में कहीं भी उनका आपराधिक उद्देश्य नहीं लगता है इसलिए उनके विरुद्ध दर्ज एफआईआर निरस्त करने का आदेश दें.
हालाँकि पटेरिया से भी मेरी अपेक्षा है कि अपने असावधान शब्द चयन के लिए खेद व्यक्त करें तथा भविष्य में सावधानी से भाषण दें।
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