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शारदीय नवरात्र का महत्व

Updated on 29-09-2022 03:17 PM
“नवशक्ति भिः संयुक्तम् नवरात्रंतदुच्यते। एकैवदेव देवेशि नवधा परितिष्ठता” नौ शक्तियों से संयुक्त सृष्टि की संचालिका कही जाने वाली आदि शक्ति की नौ कलाएं शैलपुत्री, बह्मचारिणी, चंद्रघण्डा, कूष्मांण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री ही नव दुर्गा कहलाती है। 
नवरात्र को आद्या शक्ति की आराधना का सर्वश्रेष्ठ काल माना गया है। एक वर्ष में चार नवरात्र होते हैं, दो गुप्त और दो प्रकट। चैत्र का प्रकट नवरात्र वासन्तिक और आश्विन का प्रकट नवरात्र शारदीय नवरात्र कहलाता है। इस साल के शारदीय नवरात्रि को खास माना जा रहा है क्योंकि मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर आएंगी। मां आदिशक्ति के हाथी पर सवार होने से सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है और दुनिया भर में शांति के प्रयास सफल होने की मान्यता है। ये शारदीय नवरात्र 26 सितंबर 2022 से प्रारंभ होकर नवमी यानी 5 अक्टूबर तक चलेंगे। 
शक्ति की साधना में शारदीय नवरात्र को विशेष महत्व दिया जाता है। इसके महत्व को रेखांकित करते हुए दुर्गा सप्तशती में देवी स्वयं कहती हैं कि शरत्-काले महापूजा क्रियते या च वार्षिकी। तस्यां ममैतन्माहात्मयं श्रुत्वा भक्ति समन्वितः।। सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो धन-धान्य सुतान्वितः । मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशयः।। अध्याय 12 श्लोक 12-13।  यही कारण है कि बंगाल में दुर्गा पूजा मुख्यतः शारदीय नवरात्र में ही होती है
हिंदू धर्म में नवरात्रि के ये नौ दिन माता की भक्ति के लिए बेहद महत्वपूर्ण माने जाते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, नवरात्रि में मां दुर्गा पृथ्वी पर विचरण करती हैं और अपने भक्तों की मनोकामना पूर्ण करती हैं। हम अपने शारीरिक और मानसिक संतुलन को बनाए रखने के लिए पर्याप्त शक्ति की चाह मन में लेकर ईश्वरीय शक्ति की पूजा करते हैं। इन दिनों की जाने वाली आराधना और साधना में प्रयुक्त होने वाली प्रत्येक पूजा सामग्री का प्रतीकात्मक महत्व होता है उनके साथ कोई ना कोई उद्देश्य या संदेश जुड़ा हुआ है। 
घट यानि कलश स्थापना कर नवरात्र साधना का आरंभ किया जाता है। नवरात्र पूजा में घट स्थापना का बड़ा महत्व है। शास्त्रों में घट या कलश को सुख-समृद्धि, वैभव और मंगल कामनाओं का प्रतीक बताया गया है। कलश में सभी ग्रहों, नक्षत्रों एवं तीर्थों का वास होता है। कलश में ही ब्रह्मा, विष्णु, रूद्र,सभी नदियां,सागरों, सरोवरों एवं 33 कोटि देवी-देवताओं का वास होता है। इसलिए विधिपूर्वक कलश पूजन से सभी देवी-देवताओं का पूजन हो जाता है।
घट स्थापना के साथ ही देवी के समक्ष बेहद शुभ माने जाने वाले जौ के ज्वारे बोने का विधान है। ये जवारे समृद्धि, शांति, उन्नति और खुशहाली का प्रतीक होते हैं। इनके उगने की गुणवत्ता भविष्य में होने वाली घटनाओं का पूर्वानुमान देती है । ऐसा माना जाता है कि स्वस्थ रूप में जवारे तेज़ी से बढ़ते हुए पाये जाते हैं तो घर में सुख-समृद्धि आती है,  वहीं अगर ये ठीक से नहीं बढ़ते और मुरझाए से दिखाई पड़ते हैं तो यह भविष्य में घटित होने वाले किसी अमंगल का संकेत है। 
ऐसी मान्यता चली आ रही है कि नवरात्र के पहले दिवस को देवी के साथ तामसिक शक्तियां भी होती हैं । ये नकारात्मक शक्तियां घर में प्रवेश ना करें इसलिए अनुष्ठान के दौरान मुख्य द्धार पर आम या अशोक के पत्तों की बंदनवार लगाईं जाती है। देवी माँ तो घर में प्रवेश करती हैं,पर बंदनवार लगी होने से तामसिक शक्तियां घर के बाहर ही रहती हैं। 
नवरात्र के समय घर में शुद्ध देसी घी का अखंडदीप जलाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, नकारात्मक ऊर्जा का क्षय होता है। पर्यावरण हितैषी शुद्ध घी का दीप प्र्ज्ज्वलित करने से आस-पास का वातावरण भी शुद्ध हो जाता है। दीपक,साधना में सहायक तृतीय नेत्र और हृदय ज्योति का प्रतीक है । इससे हमें जीवन के उर्ध्वगामी होने, ऊंचा उठने और तमस को मिटा प्रकाश के ओर बढ़ने की प्रेरणा मिलती है। 
इन दिनों बहुतायत से खिलने वाला सुर्ख लाल रंग का गुड़हल पुष्प अति कोमल होने के साथ ही असीम शक्ति और ऊर्जा का प्रतीक माना गया है। माना जाता है कि लाल गुड़हल देवी माँ को अत्यंत प्रिय है। लाल गुड़हल का पुष्प अर्पित करने से देवी प्रसन्न होकर भक्तों की हर मनोकामना को पूर्ण करती हैं। 
नवरात्र पूजा में कलश के ऊपर श्रीफल यानि नारियल को लाल कपड़े और और मोली में लपेटकर रखने का विधान है। ऐसा करने से साधना करने वाले की सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। नारियल के बाहरी कड़े आवरण को अहंकार का प्रतीक और आंतरिक कोमल और श्वेत भाग को पवित्रता और शांति का प्रतीक माना जाता है। जब एक साधक माँ दुर्गा के समक्ष नारियल को तोड़ने का कार्य करता है तब वो परोक्ष रूप से अपने अहंकार को तोड कर माँ के चरणों में अर्पित करता है।
नवरात्र में किए जाने वाले कन्या पूजन के माध्यम से शास्त्रों और मनीषीयो ने हमें स्त्री सम्मान के संस्कार दिये है। नवरात्र में देवी भक्तों को यह संकल्प लेना चाहिए कि वे आजीवन बच्चियों और महिलाओं को सम्मान देंगे और उनकी सुरक्षा के लिए सदैव तत्पर रहेंगे। तभी सही मायनों में नवरात्र की शक्ति पूजा संपन्न होगी। 
नवरात्र के नौ दिन मनुष्य के अंदर बसी नौ बुरी भावनाओ यथा काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, डर, ईर्ष्या, जडता, और नफ़रत को संदर्भित करते है। जब हम पूर्ण रूप से समर्पित होकर दुर्गा पूजा करते है, तो माँ हमारे मन की इन बुराइयों को नष्ट कर हमें शांति प्रदान करती है। नवरात्रि के प्रत्येक दिन हम अपने अंदर से एक बुराई को नष्ट करने की प्रतिज्ञा धारण करते हैं और दसवें दिन, इन सभी नकारात्मकताओं पर विजय हासिल करने की खुशी स्वरूप विजयादशमी मनाते हैं। 

राजकुमार जैन , लेखक,स्वतंत्र विचारक 

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