हमारे यहां अनेक वाहन चालक मानसिक बीमारी से ग्रसित है लाल बत्ती मैं भी आगे निकलना, जगह नाही हो तो भी गाड़ी कहीं से भी घुसाना और आगे जाने की कोशिश करना, एकदम किसी के भी सामने से गुजर ना और उसकी तरफ देखना भी, नाहीं सॉरी बोलना, कितनी भी बड़ी गलती कर ले पर सॉरी नहीं बोलेंगे। एक और सबसे बड़ी मानसिकता बनी हुई है यदि कोई साइकिल वाला मोटरसाइकिल से या स्कूटर वाला कार से या कार वाला ट्रक से टकराएगा तब गलती किसी की भी हो पर हमेशा बड़ी गाड़ी वाले की गलती मानी जाएगी बात यहीं खत्म नहीं होती कई ट्रैफिक पुलिस वाले की चालान के बजाय उगाई करने में ज्यादा रुचि रहती है और नंबर प्लेट पर देख लेते हैं कि यह गाड़ी बाहर की है उसको जरूर हैरान करेंगे कानून की आड़ मैं पैसे ऐंठने की कोशिश करेंगे। बच्चे से लेकर बड़े तक सब जानते है जवान को सौ-पचास रूपये दूंगा और छुट जाऊंगा। जवान भी कट्टर हैं जो सम्मान राशि दे दे वह तो निकल जाए। जो सीधे दिखे उनको तुरंत रोके। कई पुलिस जवान बिना हेलमेट वाहन चलाते दिखेगे और ट्रैफिक नियम तोडते हुए भी दिखेंगे, तीन सवारी भी मोटरसाइकिल चलाते दिखेंगे। बीमार मानसिकता में वो लोग भी शामिल है जो सड़क क्रॉसिंग क्रासिंग चिन्ह से नहीं बल्की बीच सड़क से क्रास करेगे। कई स्कूटी या मोटरसाइकिल चालक बेहद रिस्की और बिना हेलमेट गाड़ी चलाते दिखेंगे। अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्)
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