गांव और शहरों में कई हॉस्पिटल स्वास्थ्य विभाग की हॉस्पिटल के लाइसेंस की दी गई शर्तों को ठेंगादिखा रहे हैं और नगर निगम के अधिकारी हॉस्पिटलों के अवैध निर्माण को कर रहे नजर अंदाज। उदाहरण के तौर पर इंदौर में स्थित मेट्रो हॉस्पिटल वहां पर्यावरण तो ठीक, इंसान की जान पर भी बन सकती है। वहां रूम नंबर 208 मैं पेशेंट की कभी भी जान पर आ सकती है। ज्यादा अवैध कमरे बढ़ाने के लालच में उन्होंने टॉयलेट के लिए सॉफ्ट नहीं छोड़। बल्कि उसका वेंटिलेशन पास वाले रूम में छोड़ दिया जिससे इस वायरस के दौर में पेशेंट की जान पर बन सकती है। स्वास्थ्य विभाग ने कभी हॉस्पिटल पर चेकिंग नहीं की, नगर निगम ने कैसे कंपलीशन सर्टिफिकेट जारी किया यह भी सोचने वाली बात है। अवैध निर्माण और हॉस्पिटल के लिए निर्धारित गाइडलाइन का उल्लंघन होने पर भी कई हास्पिटल चल रहे होगे। छोटे छोटे रूम बनाकर उन्हें पेशेंट के बीमारी से ज्यादा रोज की कमाई की चिंता जबकि मेडिकल प्रोफेशन इंसानीयत और मानव सेवा के लिये माने जाता है और इसी बात की शपथ दिलाई जाती है। आप आपके क्षेत्र में कई हॉस्पिटल देख ले टॉयलेट गंदे मिलेंगे पीने का पानी साफ नहीं मिलेगा और अधिकांश कमरों में ताजी हवा और धूप के आने का कोई प्रोविजन नहीं दिखेगा। यदि जिम्मेदार विभाग इन बातों को नजरअंदाज करते हैं तो जनता को आवाज उठाना चाहिए। जांच के लिए शिकायत पुलिस विभाग, स्वास्थ्य विभाग, नगर निगम या पंचायत पर की जा सकती है।
अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्) ये लेखक के अपने विचार है I
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