70 वर्षीय वृद्ध लताबाई दौड़ती रही,उसके पति के दिल की धड़कन चलती रही,पैरों से खून बहता रहा,वह दौड़ती रही,पंजों के तलवों पर छाले पड़ गए,फिर भी दौड़ती रही,सिर्फ एक लक्ष्य मैराथन दौड़ जितनी है,दौड़ के इनामी राशि से पति का इलाज करवाना है,उसका पति मौत और जिंदगी से जंग लड़ रहा था और लताबाई दौड़ रही थी,अगर पति को मौत से हराना है तो लताबाई को मैराथन की दौड़ जीतना ही थी,वे नंगे पैर दौड़ती रही,पैरों में छाले पड़ते रहे,छाले फूटते रहे,पैरों से खून बहता रहा,सड़क पर खून से सने पंजे छाप छोड़ते रहे,वे दौड़ती रही,जैसे कृष्ण भगवान ने अर्जुन के लिए कदम कदम पर हर समस्याओं से ढाल बनकर अर्जुन की रक्षा करते रहे,जैसे अर्जुन को अपना लक्ष्य मछली की आँख दिख रही थी,वैसे ही लताबाई पति की मौत की जंग में ढाल बनकर खड़ी हो गई और उसका लक्ष्य केवल और केवल मैराथन की दौड़ में जीतना था I 70 वर्ष में लोग ठीक से चल नहीं पाते,कुछ दूर चलने पर कर थक जाते हैं,सांस फूलने लगती है,किसी सहारे से थोड़ी दूर चलते हैं,फिर बैठ जाते हैं,पर यह लताबाई ने 70 वर्ष की उम्र में नाही उसने तीन किलोमीटर की मैराथन दौड़ पूरी की बल्की दौड़ में अव्वल नंबर पर आई और ₹5000 का नगद पुरस्कार जीता।
लताबाई के पास पति के इलाज के लिए नहीं थे पैसे,किसी ने सही कहां है बुरे वक्त में परछाई भी साथ छोड़ देती है,ऐसा ही कुछ लता के साथ हुआ जब उसके पति की तबीयत ठीक थी,उसके घर के हालात ठीक हुआ करते थे,उसके घर से कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता था I जब बुरा वक्त लता एवं उसके पति पर आया सब रिश्तेदारों एवं दोस्तों ने उनके तरफ से आँखे फेर ली I जहां पर भी लता जाती मदद के लिए उसको निराशा ही हाथ लगती थी I एक दिन उसको पता चला महाराष्ट्र के वरिष्ठ नेता शरद पवार के जन्मदिन पर मैराथन दौड़ का आयोजन किया गया है,यह दौड़ दो वर्गों में रखी गई है,पहले वर्ग की मैराथन दौड़ में में युवा भाग ले सकते हैं जिनकी उम्र 18 से 40 वर्ष की हो और दूसरे वर्ग में 40 वर्ष के ऊपर के लोग दौड़ में भाग ले सकते हैं और जीतने वाले को मिलेगा पहला पुरस्कार रुपए पांच हज़ार।लताबाई को उम्मीद की एक नई किरण दिखी उसने फैसला किया वह मैराथन दौड़ दौड़ेगी और ₹5000 का इनाम जीतकर अपने पति को बचाने की कोशिश करेगी। लताबाई मूल रुप से महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले के मेहकर गांव की रहने वाली हैं। अब वह अपने परिवार के साथ बारामती तालुका के जलोची गांव में रहती हैं। लताबाई की तीन बेटियां हैं और तीनों बेटियों की शादी में लताबाई एवं उसके पति की पूरी जमा पूंजी खर्च हो गई। उनका इकलौता बेटा सुनील मज़दूरी करता है। लताबाई के पति दिल की बीमारी से जूझ रहे थे और इलाज के लिए पैसों की जरुरत थी इसलिए लता ने मैराथन दौड़ में हिस्सा लेने का फैसला किया और लताबाई ने यह मैराथन दौड़ जीती। पुणे से 90 किलोमीटर दूर बारामती में हर साल एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार के जन्मदिन पर इस मैराथन दौड़ का आयोजन किया जाता है। लताबाई ने सन 2014 और 15 में तीन कि.मी की मैराथन दौड़ में लताबाई ने वरिष्ठ नागरिक वर्ग में प्रथम स्थान प्राप्त किया था। मैराथन दौड़ में जहां एक तरफ लोग महंगे महंगे जूते और ट्रैक सूट पहने हुए थे,वहीं लताबाई ने साड़ी पहन कर नंगे पांव इस मैराथन दौड़ जीती थी।
लताबाई के पति दिल की बीमारी से पीड़ित थे। लताबाई ने मैराथन दौड़ में भाग लिया और दौड़ में प्रथम स्थान प्राप्त किया लताबाई की खबर अखबारों की सुर्खियां बनी, यह बात सही है,जब ऊपरवाला किसी की मदद करना चाहे तो रास्ते अपने आप निकल आते हैं ऐसा ही कुछ लता के साथ हुआ अखबारों में लोगों ने लता की खबरें पढ़ी,जिस लता को मोहल्ले वाले नहीं जानते थे आज लता को पूरा भारत पहचानने लगा है,उसके लिए लोगों की मदद के दरवाज़े खुल गए हैं,पुरस्कार की राशि एवं शरद पवार की तरफ से की गई मदद से उसने अपने पति का इलाज करवाया आज लता का कहना है उसको मदद की जरूरत नहीं अगर मदद करना है,तो उसका बेटा सुनील जो मज़दूरी का काम कर रहा है,उसको कोई स्थाई रोज़गार मिल जाए ।
नारी दुर्गा,काली,सरस्वती एवं लक्ष्मी का रूप ले सकती है,लता ने भी यह सिद्ध किया उसने अपने पति को बचाने के लिए सावित्री का रूप धारण किया,माँ दुर्गा,माँ काली की तरह मैराथन दौड़ में शामिल हुई एवं पुरस्कार जीतकर लक्ष्मी का रूप दिखाया।
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