1990 तक 210 कब्रिस्तान थे
कब्रिस्तानों पर अतिक्रमण के खिलाफ लंबे समय से आवाज उठा रहे जमीअत उलमा ए हिंद की मप्र यूनिट के सचिव हाजी मोहम्मद इमरान का दावा है कि 1990 तक भोपाल में छोटे-बड़े करीब 210 कब्रिस्तान थे। अभी केवल 15 अस्तित्व में हैं। उन पर भी आसपास अतिक्रमण का भारी दबाव है।
सकी वजह से उनका अस्तित्व भी खतरे में है। कब्रिस्तानों पर कब्जे की वजह से बचे हुए कब्रिस्तानों पर भारी दबाव है। वहां नई कब्रों के लिए आसानी से जगह नहीं मिल पाती। कई कब्रिस्तानों ने पक्की कब्र बनाने से मना कर दिया है। कुछ कब्रिस्तानों के लिए रास्ते का संकट खड़ा हो गया है।
उन परिवारों के लिए भी भावनात्मक संकट है, जो अपने पुरखों के बगल में अपने प्रियजन को दफनाना चाहते हैं, लेकिन अब वह कब्रिस्तान बचा ही नहीं। क्या है यह वक्फ अपनी संपत्ति, जमीन या भवन को अल्लाह की राह में मुस्लिम समाज के कल्याण के लिए देना वक्फ कहलाता है।
इसका बाकायदा पंजीयन होता है। इसमें वक्फ करने वाले की मंशा भी दर्ज की जाती है। मान्यता है कि जब तक यह संपत्ति समाज के उपयोग में आती रहेगी, तब तक उसका पुण्य वक्फ करने वाले को मिलता रहेगा।
हाजी मोहम्मद इमरान का कहना है कि वक्फ संपत्तियों, कब्रिस्तानों और मकबरों की यह दुर्दशा वक्फ बोर्ड की जानकारी में है। उसके बाद भी बोर्ड के प्रतिनिधियों ने कभी कार्रवाई नहीं की। वे लोग वक्फ संपत्तियों का इस्तेमाल गरीब मुसलमानों को फायदा पहुंचाने के लिए करते तो समाज में सुधार आ चुका होता। वक्फ बोर्ड ने कभी वक्फ संपत्तियों के बारे में मुस्लिम समाज को सही ढंग से जागरूक नहीं किया। इसके लिए नए कानून की नहीं, कार्य करने की जरूरत थी।
कबाड़खाने का मुलकन बी और गंज शहीदा कब्रिस्तान पूरी तरह खत्म हो गया है। यहां एक बस्ती और अस्पताल बन चुका है। यहां छोला का फूटा मकबरा ही बचा है, बाकी पूरा कब्रिस्तान कालोनी में बदल गया है।
सेमरा कलां कब्रिस्तान में भी कालोनी बन गई है। कोलार के गेहूंखेड़ा कब्रिस्तान में अतिक्रमण है। बैरागढ़ स्थित बूढ़ा खेड़ा कब्रिस्तान अतिक्रमण की चपेट में है। जहांगीराबाद में झदा के सामने वाला कब्रिस्तान भी अतिक्रमण से ग्रस्त है।