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मीठे तेल को देखा देखी अब पेट्रोल ने भी मारा शतक

Updated on 15-05-2021 11:11 AM
सखी सैयां तोह 
        खूब ही कमात है, 
 मेहंगाई दायें खाए जात है।। 
    हर महीने उछले पेट्रोल, 
    डीजल का उछला है रोले, 
 मेहंगाई दायें खाए जात है।।
कोरोना काल में जीना मुश्किल था,और अब तो चलना भी मुश्किल हो गया,मीठे तेल को देखा देखी अब पेट्रोल ने भी शतक मार दिया, दालें  तो पहले ही शतक मार कर बखूबी बल्लेबाज़ी कर रही है,ऐसा लगता है,मीठा तेल और दाले दोहरा शतक बहुत जल्दी पूरा कर लेंगी।
बेचारी जनता घरेलू सामान, पेट्रोल और डीजल की कीमतें देखकर कसमसा कर रह जाती हैं,बस दिल में एक ही ख़्याल आता है,महंगाई डायन खाए जात है ।
एक दिन मुझको एक नेताजी का चश्मा पडा हुआ मिल गया,मैंने उस चश्मे को ग़ौर से देखा फिर मैंने उस चश्मे को अपनी आंखों पर लगा कर देखा और समझ गया,हमारे देश के नेताओं को ग़रीबी,महंगाई, जनता की परेशानियां महिलाओं एवं बच्चियों के साथ बलात्कार क्यों नहीं दिखता‌ । जैसे ही मैंने चश्मे को अपनी आँखों पर लगाया, चश्मा लगाते ही मुझे ऐसा लगा में स्वर्ग में आ गया हूँ,चारों तरफ ख़ुशी का माहौल,कोई भी व्यक्ति बेरोज़गार नहीं,महंगाई का तो नामोनिशान नहीं,हर तरफ ऊंची ऊंची साफ-सुथरी इमारतें, साफ-सुथरी सड़कें, सड़कों पर लंबी-लंबी गाड़ियां,अनुशासन से सड़कों के चल रही गाड़ियां, ढूंढे से भी कोई ग़रीब नहीं दिख रहा,अस्पताल साफ-सुथरे, हर मरीज़ के पास,एक अस्पताल का कर्मचारी,अस्पताल में संगीत की ध्वनि,शुद्ध एवं ताज़ा भोजन हर मरीज़ के लिए,अस्पतालों में दवाइयों का अंबार । 
मुझे आसपास का माहौल बिल्कुल बदला बदला सा दिखने लगा फटे कपड़े पहनने मज़दूर मुझको चश्मे से सूटेड बूटेड दिख रहे थे,झुग्गी झोपड़ी के बच्चे जिनके शरीर पर कपड़े नहीं थे नेताजी के चश्मे से सुंदर कपड़ों में देख रहे थे,जिन बच्चों के कंधे पर कचरा बीनने वाला झोला था, नेताजी का चश्मा लगाते ही वह कचरे का झोला,स्कूल के बस्ते में तब्दील हो गया,महिलाएं और बच्चियां बेफिक्री से रात में सड़कों पर घूम रही है,बलात्कार की घटनाओं का नामोनिशान नहीं, बलात्कार किस चीज़ का नाम है बच्चियों एवं महिलाओं को नहीं मालूम । मैंने सोचा चलो यह चश्मा लगाकर अपने किसानों का हाल भी देखें नेताजी को चश्मे से किसान कैसे दिखते हैं,मैंने नेताजी के चश्मे से किसानों को देखा तो दिल खुश हो गया खेतों में फसलें लहरा रही थी नहरे पानी से भरी हुई थी, किसानों की फसलें ऊंचे दामों पर बिक रही थी नोटों से तिजोरिया किसानों की भरी हुई थी ।
अब यह बात समझ में आई नेताओं को आम जनता की परेशानी क्यों नहीं दिखती क्योंकि नेता अपने चश्मे से आम जनता को देखते हैं जिस दिन नेता अपनी राजनीति का चश्मा उतार कर जनता को देखेंगे तब उनको समझ में आएगा ज़मीनी हक़ीक़त क्या है आज भी लोग महंगाई के कारण भूखे सो रहे हैं, अभी भी गरीब बच्चे कचरे मे भोजन ढूंढते हैं, अगर गरीबों को गेहूं की रोटी के साथ प्याज़ मिल जाए तो उसको लगता है उसने छप्पन भोग खा लिया ।
मध्यवर्गीय परिवार महंगाई की मार से तिल मिलाया हुआ है पेट्रोल 100 के पार मीठा तेल 180 के पार दालें डेढ़ सौ के पार और स्कूल कॉलेज की फीस आसमान को छूती । इलाज ने तो मध्यवर्गीय परिवार की कमर ही तोड़ दी है कोरोना काल में व्यापार बंद, दुकाने बंद, नौकरी छूट गई ,मजदूरी मिल नहीं रही, मध्यवर्गीय परिवार के लोग खाली कटोरी में रोटी डूबा डूबा कर खा लेते हैं और यह सोचते हैं कि मैं रोटी से स्वादिष्ट सब्जी खा रहे हैं क्योंकि स्थिति तो अब यही बन गई है जेब में पैसा नहीं और महंगाई कमर तोड़ रही है, और हमारे देश के नेता कह रहे हैं ऑल इज वेल । 
आज यह बात समझ में आई हर पार्टी के नेता अंदर से एक होते हैं जब तक सत्ता में रहते हैं चश्मा उनके पास रहता है जैसे ही सत्ता से विपक्ष में आते हैं वह चश्मा सत्ताधारी पार्टी को दे दिया जाता है, इसलिए सत्ताधारी पार्टी के नेताओं को देश की जनता की परेशानियां नहीं दिखती हैं । 
       डकैत जैसा आचरण 
       लुटते हैं,प्यार से। 
     दिखते बड़े देशभक्त 
     अपने ये व्यवहार से।।
मोहम्मद जावेद खान,लेखक                                                        ये लेखक के अपने विचार है I 
संपादक, भोपाल मेट्रो न्यूज़

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