भोपाल। जानलेवा महामारी कोराना वायरस की दवा के क्लीनिकल ट्रायल पर देशभर की उम्मीदें टिकी हुई हैं। यह राजधानी भाेपाल के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में चल रहा है।
दवा माइकोबैक्टीरियम डब्ल्यू के पहले चरण का ट्रायल यहां पूरा होने के बाद दूसरे दौर का क्लीनिकल ट्रायल शुरू कर दिया गया है। इसमें कोरोना के ऐसे मरीजों को शामिल किया जाएगा जो संक्रमित होने के बाद सामान्य हैं। उन्हें कोई लक्षण नहीं हैं या फिर मामूली लक्षण हैं। यह ट्रायल 200 मरीजों पर किया जाएगा। ट्रायल के पहले मरीजों से क्लीनिकल ट्रायल के नियमों के तहत सहमति ली जाएगी। इसके बाद तीसरे चरण का ट्रायल शुरू होगा। इसमें उन लोगों को शामिल किया जाएगा जो कोरोना के लिए ज्यादा जोखिम में रहते हैं। इनमें ज्यादातर स्वास्थ्यकर्मी होंगे। इन पर ट्रायल का मकसद यह देखना है कि दवा लेने के बाद उन्हें संक्रमण होता है या नहीं। एम्स में इस दवा का पहले चरण का ट्रायल एक मई से शुरू हुआ था। इसमें कोरोना के 40 गंभीर मरीजों को ट्रायल के लिए चिन्हित किया गया था, लेकिन आठ पर ही ट्रायल हो पाया। मरीजों की गंभीर स्थिति और ट्रायल के नियम और शर्तें कठिन होने की वजह से 40 मरीजों पर ट्रायल नहीं हो पाया। हालांकि, जिन मरीजों पर ट्रायल किया गया उसके परिणाम अच्छे बताए जा रहे हैं। इनमें कुछ मरीज तो ऑक्सीजन सपोर्ट पर थे और ठीक हुए हैं। हालांकि, एम्स के अधिकारियों का कहना है कि जब तक ट्रायल पूरा होने के बाद अंतिम नतीजे न आ जाएं तो यह कहना जल्दबाजी होगा दवा कितनी कारगर है। इसी साल जुलाई अंत तक ट्रायल पूरा होने की उम्मीद है। यूएस फूड एवं ड्रग एडिमिनिस्ट्रेशन (एफडीए), काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एवं इंडस्ट्रियल रिसर्च (सीएसआईआर) और आइसीएमआर की देखरेख में एम्स भोपाल में इस दवा का ट्रायल किया जा रहा है। यह दवा इंजेक्शन के रूप में दी जा रही है। यह इम्युनोमाड्युलेटर है। ऐसा माना जा रहा है कि इससे मरीज की प्रतिरो;घळर्-ऊि्झ।क क्षमता बढ़ जाती है, जिससे उसमें बीमारियों से लड़ने की ताकत आ जाती है। एम्स भोपाल के अलावा पीजीआई चंडीगढ़ समेत कुछ अन्य चिकित्सा संस्थानों में भी इस दवा का ट्रायल किया जा रहा है।कुष्ठ के इलाज के लिए एम्स दिल्ली के प्रोफसर ने 1960 में खोजी थी दवा 1960 में एम्स दिल्ली के एक प्रोफेसर ने कुष्ठ के इलाज के लिए यह दवा खोजी थी। हालांकि, ट्रायल के बाद कुष्ठ के इलाज में इसके बहुत कारगर नतीजे नहीं मिले थे। इसके बाद टीबी के इलाज के लिए भी इस दवा का ट्रायल किया गया था। इसमें भी बहुत सफलता नहीं मिली थी।इस बारे में भाेपाल एम्स के डायरेक्टर प्रो (डॉ.) सरमन सिंह का कहना है कि दूसरे चरण का क्लीनिकल ट्रायल शुरू हो गया है। इसमें ऐसे मरीजों को शामिल किया जा रहा है जो पॉजिटिव होने के बाद भी ज्यादा बीमार नहीं हैं। 200 मरीजों को इसमें शामिल करने का लक्ष्य है। संख्या ज्यादा भी हो सकती है। इसके बाद तीसरे चरण में स्वास्थ्यकर्मियों पर प्रयोग किया जाएगा।
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