आपकी आस्था के भगवान ( ईश्वर ) एक है। लेकिन उनके धर्म प्रचारक (संत) अनेक होंगे यदि आप भगवान की भक्त्ती के पहले संत (गुरू) की भक्ति में लिन होने लगेगे तो आप जाने कितने ग्रुपों में बट जाएंगे। क्योंकि अलग अलग धर्म गुरु (संत) की अपनी अलग - अलग सोच होने से वे आपको अलग-अलग धर्म ज्ञान और प्रवचन देंगे विभिन्न विभिन्न धार्मिक क्रियाएं होने लगेगी जिससे आपको वास्तविकता में भगवान और धर्म की व्याख्या समझने में बड़ी विभिन्नता आ जाएगी। और हर नई पीढ़ी को वास्तविक धर्म ज्ञान समझने में बहुत मुश्किल हो जाएगी और वे अलग-अलग मान्यताओं के चलते एक ही धर्म के कई टुकड़ों में बट जाएंगे।
नए दौर में अक्सर यह देखने में आया है कि कई ङसंत आजकल दिखावे की दिशा में ज्यादा हो गए और अपने स्वयं के भक्तों की संख्या बढ़ाने के लिए बहुत ज्यादा क्रियाशील हो गए भक्त लोग भी संत की अंधभक्ति में उनकी हर बात भगवान का आदेश समझकर उनके बताए रास्ते पर चलने लगे कभी-कभी तो वे एक दूसरे संत के खिलाफ प्रचार और कहीं कहीं तो झगड़ा भी कर बैठते हैं।
भगवान के बताये सत्य अहिंसा त्याग मैत्री सद्भावना और शांति का रास्ता अपनाने के लिए जरूरी है कि आप सबसे पहले सिर्फ और सिर्फ भगवान के भक्त बने और फिर उन सभी कट्टरवादी संत का बहिष्कार करें जिनके कारण समाज बिखर जाता है।
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