यदि संत कहते है कि गुरु की यानी हमारी भक्ति करो तो गलत है, संत ने कहना चाहिए ईश्वर की भक्ति करो उसी में आस्था रखो। संत को सिर्फ ईश्वर भक्ति के लिए एक माध्यम मानना चाहिए संत को ईश्वर नहीं मानना चाहिए। अच्छे और ज्ञानी संत हमारे पथ प्रदर्शक होते हैं और ईश्वरी कार्य करने की शिक्षा देते हैं उन्हें कोई लाग लपेट या कोई लालच नहीं होता है। जिस तरह स्कूल कॉलेज में पढ़ाई के लिए टीचर होते हैं उसी तरह धार्मिक ज्ञान देने के लिए संत हमारे टीचर होते हैं और जो पुस्तकें लिखी जाती है वह ज्ञानी लेखक होते हैं उसी तरह धार्मिक पुस्तक लिखने वाले हमारे ऋषि मुनि होते हैं। आजकल कई बार हमारे देखने सुनने में आता है कि संत के भेष में कई लोग भक्तों का शोषण करते हैं। नकली साधु बनकर पैसा कमाने के का माध्यम बना लिया है। और जो मेहनतकश जिंदगी नहीं चाहते हैं उन्होंने भी चोला पहनकर अपने आप को साधु घोषित कर बैठे-बिठाए खाने का इंतजाम कर लिया।
यहां अब जरूरी हो जाता है कि असली और नकली साधु की पहचान कैसे हो इसलिए संत समुदाय का वेरिफिकेशन भी जरूरी है और उनका आईडेंटिफिकेशन समाज की प्रमुख संस्था से होना चाहिए जो यह घोषित करेगी यह हमारे संत है इस प्रकार जो साधु के वेश में नकली लोग हैं वह पकड़े जाएंगे और लोगों का शोषण भी रुकेगा। भारत एक धर्म प्रधान देश है तो यहां की जनता धार्मिक भावना में गंभीरता से डूबी हुई है।
अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्) (ये लेखक के अपने विचार है )
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