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रूठ गए है शायद हमसे यह कागा और गौरैया

Updated on 11-07-2021 11:48 PM
रूठ गए है शायद हमसे
 यह कागा और गौरैया,
 छत आंगन है सूना ,
 ए कागा और गौरैया । 
 किसी के छत पर 
 तुम खाना खाते थे, 
 और कहीं पर प्यास बुझाते थे 
 ए कागा और  गौरैया । 
 क्यों रूठ गए हमसे ऐ कागा और गौरैया ।। 
 तरक्की का नशा हमारे सिर पर चढ़कर बोल रहा है,रूठ गए हमसे कागा,रूठ गई हमसे गौरैया । वो भी क्या दिन हुआ करते थे जब माँ गेहूं धो कर छत पर सुखा ने के लिए फैलाती थी और हमारी जवाबदारी होती थी छत पर बैठकर नन्ही नन्ही सी सुंदर चिड़ियाओं (गौरैया) को गेहूं को चुघने से बचाना, हमारी गेहूं से नज़र हटी और गौरैयाओं की दावत शुरु हुई,क्या दिन थे वो सुबह की नींद चिड़ियाओं के चेहक ने से खुलती थी,कहां गए हमारे बचपन के वह साथी,क्यों रूठ गए हमारे बचपन के वह साथी गोरैया और कागा,आप कागा का मतलब तो जानते ही होंगे,कागा को कौवा भी बोला जाता है,याद करो वह दिन जब छत पर बैठकर कौवा कॉउ कॉउ   करता था, मां और दादी खुश हो जाती थी और उनको लगता था घर पर कोई मेहमान आने वाला है मेहमान आए या ना आए पर तैयारी पूरी हो जाती थी मेहमानों के लिए । कौवा भी रूठ गया और मेहमान भी रूठ गए,दोनों इतने दूर चले गए, कौवों ने हमारी बस्ती और शहर छोड़ दिए,और मेहमान हमारे दिलों से दूर हो गए, पहले घर पर मेहमान आते थे,साथ में अपना ढेर सारा सामान लाते थे,हफ्ता दस दिन हमारे घर पर रुकते थे,जब उनके जाने का समय आता था तो हम बच्चे उनका सामान छुपा देते थे,कुछ दिन और रुक जाएं,कहां गई वह मोहब्बत हमारे सिर पर तरक्की का नशा चढ़कर बोल रहा है,हम भूल गए कागाओं को हम भूल गए गौरैया को,भूल गए अपने मेहमानों को हम भूल गए हमारी मेहमान नवाज़ी को, पहले मेहमान आते थे उनसे पूछा नहीं जाता था कि आप खाना खाएंगे बगैर उनसे पूछे उनके लिए भोजन तैयार किया जाता था और जबरन बैठा कर उन को भोजन खिलाया जाता था,और अगर आज मेहमान घर पर आ जाए तो ऐसा लगता है घर में कोई तूफान आ गया हो,रस्म अदायगी के लिए मेहमानों को पानी और चाय दी जाती है कुछ बिस्किट प्लेटो में रख दिए जाते हैं और इंतजार किया जाता है कब मेहमान चाय पिएं और वापस अपने घर जाएं । अब वह दिन दूर नहीं जब बच्चे पूछा करेंगे पापा कौवा,गोरैया  चिड़िया दिखने में कैसे होते थे, हम बच्चों को कौवा एवं गौरैया की तस्वीरें दिखाया करेंगे और बताएंगे बेटा गौरैया इसे कहते हैं और कौवा इससे कहते हैं, जैसे डायनासोरों की तस्वीर हम देखकर खुश हो जाते हैं ऐसे ही आने वाली पीढ़ी कौवा गौरैया और गिद्ध की तस्वीरें देखकर खुश हो जाया करेगी । गौरैया एवं कौवों के विलुप्त होने के अनेक कारण है,मोबाइल टावरों से निकलता रेडिएशन  तापमान का बढ़ना, शहरों के विकास के नाम पर पेड़ों की अंधाधुंध कटाई जिसके कारण तापमान बढ़ना और यह पक्षी ज्यादा तापमान सहन नहीं कर पाते हैं। प्रदूषण और विकिरण के चलते शहरों का तापमान बढ़ रहा है। घरेलू गौरैया एवं कौंवे ऐसे पक्षी है जो धीरे-धीरे विलुप्त हो रहे हैं । कौवा एवं पीपल को पितृ प्रतीक माना जाता है। कौवे को खाना खिलाकर एवं पीपल को पानी डालकर पितरों को तृप्त किया जाता है,पर इस दौर में हमसे कागा रूठ गए हैं,अब घंटों क्या दिनों और महीनों इंतजार करना पड़ता है,कागा आ जाए,अन्न जल ग्रहण कर ले,ऐसी मान्यता है, हमारे पितृ कागा के रूप में आकर श्राद्ध के अन्न ग्रहण करते हैं,कौओं को भोजन कराना अर्थात अपने पितरों को भोजन कराना माना जाता है,जिससे पितरों को तृप्ति मिलती है । 
 माना जाता है कि हमारे पितृ कौए के रूप में आकर श्राद्ध का अन्न ग्रहण करते हैं।  कौओं को भोजन कराना अर्थात अपने पितरों को भोजन कराना माना गया है। कौए को अतिथि आगमन का सूचक और पितरों का आश्रम स्थल माना जाता है। पुराणों की एक कथा के अनुसार इस पक्षी ने अमृत का स्वाद चख लिया था, इसलिए मान्यता के अनुसार इस पक्षी की कभी स्वाभाविक मृत्यु नहीं होती। कोई बीमारी एवं वृद्धावस्था से भी इसकी मौत नहीं होती है। इसकी मृत्यु आकस्मिक रूप से ही होती है। शहरों में मोबाइल टावर एवं बढ़ता प्रदूषण कौओं की आकस्मिक मृत्यु का कारण हो सकता है । मोबाइल टावरो से निकलता रेडिएशन, बढ़ता तापमान,बढ़ते प्रदूषण की वजह से यह कौंवे हमसे रूठ कर बहुत दूर चले गए हैं । ऐसी मान्यता है कि जिस दिन किसी कौवे की मृत्यु हो जाती है,उस दिन उसका कोई साथी भोजन नहीं करता है। कौआ अकेले में भी भोजन कभी नहीं खाता,वह किसी साथी के साथ ही मिल-बांटकर भोजन ग्रहण करता है। शास्त्रों के अनुसार कोई भी क्षमतावान आत्मा कौए के शरीर में स्थित होकर विचरण कर सकती है। कौए को भोजन कराने से सभी तरह का पितृ और कालसर्प दोष दूर हो जाता है।
इतना प्रदूषण फैला है के 
 अब तो दम घुटता है, 
 नाक पर मास्क भी पहनो 
 तो आँख से घुसता है, 
 कान बंद भी कर लो तो 
  फिर सिर दुखता है।।
मोहम्मद जावेद खान,लेखक                                   ये लेखक के अपने विचार है I 
संपादक, भोपाल मेट्रो न्यूज़

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