कम पगार, बरकत की पगार, लोग खुशहाल थे, हीरे, मोती, सोना तो नहीं खरीदते थे, मगर रोज़मर्रा का सामान आसानी से ले लेते थे ।
कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन
बचपन भी क्या खूब हुआ करता था, अज़हर और राकेश में कोई फ़र्क नहीं होता था, त्यौहार साथ में मानते थे, कोई बीमारी का डर नहीं, दिन भर मस्ती, धमाल, 50 पैसे में ढेर सारी संतरे की गोलियां, संतरे की गोलियों पर बहस होना, राकेश ख़रीद कर लाता था, अज़हर उस पर हक़ जमाता था, राकेश गोली को मुंह से काटकर झूठी गोली अज़हर को खिलाता दोनों मस्त दोनों खुश । पापा के साथ स्कूटर से घूमने जाना 100 रुपए में स्कूटर की टंकी पेट्रोल से फुल हो जाना, 5 रुपए लीटर में दूध आना, दोस्तों के साथ खीर की पार्टी मनाना, दोस्तों के साथ रात में पढ़ाई करना, परीक्षा फल लेकर पहले दोस्त के घर जाना आंटी का खुश होना और चॉकलेट देना, कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन ।
किसकी नज़र लग गई अज़हर और राकेश पर, अभी भी मिलते हैं , अब पहले जैसी बात नहीं, शरीर तो मिलते हैं, पर मन नहीं, जो बचपन में खुशियां मिलने पर हुआ करती थी, कब यह हिंदू मुसलमान हो गए पता ही नहीं चला । कितने अच्छे और सच्चे दिन थे वो,
कोई लौटा दे मेरे गुज़रे हुए दिन
जन्मदिन दोस्त का सजते हम थे, जन्मदिन की पार्टी में जाना, दोस्त के लिए जन्मदिन के उपहार में बिस्किट का पैकेट ले जाना,जन्मदिन पार्टी मे जमकर खाना ख़ूब धमाल मचाना केक काटते समय केक को निहारना,अपने जन्मदिन के दिन गिनना ।
वह अच्छे दिन थे या यह दिन ।
महीने भर के घर के किराने के सामान की सूची बनना, घर के सामान की सूची में ताका झांकी करना माँ से लड़ना उस सूची में चॉकलेट को जुड़वाना माँ का रूठ जाना पिता को समझाना माँ का हिसाब लगाना 700 रुपए में पूरे घर का सामान आना, 700 रुपए के हिसाब को देखकर माँ के माथे पर बल आना, सूची से चॉकलेट को हटाना मेरा रूठ जाना कितने अच्छे दिन थे वो कितने सच्चे दिन थे । आज पगार पहले से कई गुना ज्यादा फिर भी खर्चे के लिए परेशान आटा 40 रुपए किलो, दाले 150 रुपए किलो, मीठा तेल 175 रुपए किलो, पेट्रोल 105 रुपए लीटर, स्कूल कॉलेज की फीस हज़ारों रुपए महीना,अगर बीमार पड़ जाओ तो इलाज के नाम पर लाखों रुपए ख़र्च होना तय है, पहले घर में मेहमानों को खाना खिलाया जाता था और आज महंगाई के कारण चाय पिलाकर ही विदा कर दिया जाता है, तो आप बताएं वह दिन अच्छे थे या आज के दिन ।
कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन
नहीं चाहिए मेट्रो, नहीं चाहिए शॉपिंग मॉल, नहीं चाहिए महंगे मोबाइल,
कोई लौटा दे मेरे हाट बाजार वाले दिन।
हाट बाजार में जाना सब्ज़ी का मोल भाव करना सब्ज़ी को छांटना हफ्ते भर की सब्जियों को झोले में भरकर साइकिल पर रखकर घर आना, 50 रुपए में से 15 रुपए माँ को वापस करना, कितने अच्छे दिन थे वह कितने सच्चे दिन थे।
ना कोई दिखावा, ना कोई घमंड बस प्यार ही प्यार ।
देश पर आफतें आती तो पहले भी थीं, लेकिन चली भी जाती थीं, ऐसा पहली बार दिख है कि एक संकट आता है और उससे निपट भी नहीं पाते कि दूसरा तीसरा संकट आकर जुड़ता चला जा रहा है, दो तीन साल से भारी आर्थिक मंदी थी, उसमें आकर बेरोज़गारी जुड़ गई, उसका समाधान तो हो ही नहीं पाया कि कोरोना महामारी आ गई, उससे निपटने के लिए लॉकडाउन का तरीका अपनाया इससे मंदी और बेरोज़गारी और ज्यादा बढ़ गई, इस महामारी के चलते काला बजारी चरम पर पहुंच गई दवाइयों से लेकर रोजमर्रा के सामान की काला बाजारी होना एक आम बात हो गई, इस मंहगाई के चलते जनता को निचोड़ डाला है, डीजल-पेट्रोल ने जनता की कमर तोड़ दी, रसोई गैस के दाम निरंतर आसमान को छू रहे हैं, बढ़ती महंगाई से दुखी जनता त्राहि-त्राहि कर रही है, पांच राज्यों के चुनावों को देखते हुए दो माह से ज्यादा समय तक पेट्रोल-डीजल के दाम में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई और चुनाव संपन्न होते ही, 23 बार पेट्रोल और डीजल के दाम में मूल्य वृद्धि की जा चुकी है, 7 वर्षों में पेट्रोल की कीमत लगभग 40 रुपये तक बढ़ चुकी है और डीजल की कीमत भी 45 रुपये के लगभग बढ़ चुकी है । हमेशा से कहा जाता रहा है कि अगर पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ते हैं तो महंगाई को बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता, पेट्रोल डीजल दोनों ऐसी चीजें हैं जो दूसरी लगभग हर वस्तु को महंगा कर देती हैं, इसका फौरन असर भले न दिखाई दे लेकिन साफ दिख रहा है कि देश की तमाम समस्याओं की फेहरिस्त में महंगाई भी जुड़ने को है।
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