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उपचुनावों के नतीजे :भाजपा को बूस्टर डोज तो कांग्रेस के हाथ लगी हताशा

Updated on 08-11-2022 11:20 AM
देश के 6 राज्यों में हुए 7 विधानसभा उपचुनावों के नतीजे हिमाचल और गुजरात विधानसभा चुनाव के पूर्व भाजपा के लिए जहां बूस्टर डोज साबित हो रहे हैं तो वहीं कांग्रेस के लिए निराशाजनक रहे हैं, जबकि क्षेत्रीय दलों के लिए सांत्वना पुरस्कार माने जा सकते हैं। इन नतीजों से एक संकेत यह भी मिलता है कि यदि कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दल अपनी ढपली अपना राग अलापते रहे तो फिर 2024 के लोकसभा चुनाव तथा इससे पूर्व होने वाले विधानसभाओं के चुनावों में भाजपा को मनोवैज्ञानिक ढंग से बढ़त मिल जायेगी तो वहीं विपक्ष शायद ही कोई कमाल दिखा पाये। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विजय रथ को थामने की उसकी आकांक्षा दिवास्वप्न से अधिक कुछ रहने वाली नहीं है। उपचुनावों के नतीजों को किसी हवा का सूचक नहीं माना जा सकता लेकिन यदि देश के विभिन्न राज्यों में लगभग एक जैसे नतीजे आते हैं तो जनमानस क्या सोच रहा है इसका आभास लग ही जाता है। कांग्रेस के लिए जो निराशा का संदेश इन नतीजों में छिपा है उसे कुछ उत्साह में बदलने की जिम्मेदारी छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को निभानी पड़ेगी क्योंकि वहां भानुप्रतापपुर में दिसम्बर में विधानसभा का एक उपचुनाव होने जा रहा है। यह सीट कांग्रेस की ही थी और यदि कांग्रेस इसे बचा लेती है तो उसके कार्यकर्ताओं की हौसला अफजाई होगी, लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने संगठन और विधायी पक्ष में जो बदलाव किया है उसके बाद यदि भाजपा का प्रदर्शन अच्छा रहता है तो वह उसके कार्यकर्ताओं के लिए बूस्टर डोज हो जायेगी और कांग्रेस को कुछ निराशा ही हाथ लगेगी। लेकिन जिस प्रकार से भूपेश बघेल ने अपना स्वयं का आभामंडल बनाया है और लोकप्रिय हो रहे हैं उसे देखते हुए वहां क्या नतीजा आता है इस पर छत्तीसगढ़ में सभी की निगाह रहेगी। उपचुनाव के नतीजे क्षेत्रीय दलों के लिए सांत्वना पुरस्कार इस मायने में माना जा सकता है कि उन्हें भी कुछ सीटें हाथ लग गयी हैं जबकि उडीसा में भाजपा की जीत ने क्षेत्रीय दल के रुप में वहां राज कर रहे बीजू जनता दल को भी एक झटका दे दिया है और वह इस मायने में कि कांग्रेस तो वहां काफी कमजोर साबित हुई लेकिन विपक्षी दल के रुप में भाजपा का उभार हो रहा है। वह आगे-पीछे पटनायक की सत्ता को भी चुनौती दे सकती है। कांग्रेस अपने मन को समझाने के लिए यह अवश्य कह सकती है कि राजद और शिवसेना उद्धव ठाकरे के उम्मीदवारों को उसका समर्थन था और वहां यूपीए तथा महाअघाड़ी के उम्मीदवार थे। 7 विधानसभा सीटों के जो नतीजे आये हैं उसमें भाजपा ने 4 और एक-एक सीट तेलंगाना राष्ट्रीय समिति, राजद और शिवसेना ने जीती हैं। टीआरएस और भाजपा ने एक-एक सीट कांग्रेस से छीन ली है और वह अपनी सीट नहीं बचा पाई है। पहली बार हरियाणा के आदमपुर में भाजपा का झंडा लहराया है लेकिन इसमें भाजपा की अपनी ताकत का कम भजनलाल परिवार का अधिक योगदान है और भजनलाल के बेटे कुलदीप विश्नोई  के कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आने के बाद पहली बार यह सीट भाजपा की झोली में गिरी है, जहां उनके बेटे भव्य विश्नोई चुनाव जीते हैं। कांग्रेस की कमान पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने संभाल रखी थी और उनके बेटे दीपेन्द्र हुड्डा सांसद भी सक्रिय थे, लेकिन कांग्रेस के अन्य गुटों ने अपनी चिरपरिचित फितरत के अनुसार कोई विशेष सक्रियता नहीं दिखाई जिसका नतीजा यह हुआ कि सीट तो भजनलाल परिवार के पास ही रही लेकिन वहां भाजपा ने अपनी आमद दर्ज करा दी। पारिवारिक कलह कभी-कभी कितनी भारी पड़ती है यह आज लालू यादव और तेजस्वी यादव पूरी सिद्दत से महसूस कर रहे होंगे क्योंकि गोपालगंज सीट जीतते-जीतते वह हार गई और भाजपा ने वहां अपनी जीत दर्ज कराई जिसका कारण तेजस्वी की मामी और साधु यादव की पत्नी हैं जो बसपा उम्मीदवार के रुप में खड़ी हुईं और उन्होंने राजद के वोट बैंक में सेंध लगा दी। एआईएमआईएम के सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी की रणनीति ने एक बार फिर भाजपा की मदद कर दी और तेजस्वी यहां हाथ मलते रह गये। इन उपचुनाव नतीजों ने विपक्षी दलों के लिए संदेश दिया है कि वह अपनी ढपली अपना राग अलापते रहे तो फिर भाजपा का विजय रथ आसानी से अपने मकसद को पूरा कर लेगा।
अरुण पटेल,लेखक,संपादक 
(ये लेखक के अपने विचार है)

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