फ़िलहाल देश के मौसम में कोई बड़ा बदलाव घोषित नहीं हुआ है। मध्यप्रदेश को भी फिलहाल बारिश, तेज हवाएं और ओलावृष्टि से राहत नहीं मिलने वाली है। अगले सप्ताह तक मौसम ऐसा ही रहेगा। उत्तर भारत में वेस्टर्न डिस्टर्बेंस (पश्चिमी विक्षोभ) एक्टिव है, इस कारण प्रदेश में गरज-चमक और तेज हवाओं के साथ बारिश हो रही है। आम नागरिक को हिंदू महीने वैशाख में सावन की अनुभूति हो रही है। प्रश्न जलवायु परिवर्तन को लेकर है, ऐसा क्यों हो रहा है ?
जलवायु परिवर्तन के खतरे दिन-ब-दिन भयावह होते जा रहे हैं। जहां समूची दुनिया में लाख कोशिशों के बावजूद बीते साल कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन सर्वाधिक रहा, जिसने कीर्तिमान बनाया। उस स्थिति में जबकि बीते बरसों में वैश्विक स्तर पर कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को रोकने के प्रयासों के तहत पवन व सौर ऊर्जा के साथ-साथ ही इलेक्ट्रिक वाहनों के इस्तेमाल में खासी बढ़ोतरी दर्ज की गयी है। यह भी कि सौर ऊर्जा तथा इलेक्ट्रिक वाहनों के इस्तेमाल ने कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में कमी लाने में योगदान दिया है। इन सब कोशिशों और अक्षय स्रोतों में बढ़ोतरी के बावजूद बीते साल कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन 0.9 प्रतिशत बढ़कर रिकॉर्ड 36.8 अरब टन हो गया जो कि तीन-चौथाई से भी ज्यादा ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है। दरअसल, दुनिया में जीवाश्म ईंधन से बढ़ता उत्सर्जन जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने की दिशा में सबसे बड़ी बाधा है।
कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में बढ़ोतरी के लिए तेल का योगदान सबसे अधिक माना जाता रहा है। इसमें हुई 2.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी में लगभग आधी बढ़ोतरी हवाई यात्रा में हुई बढ़ोतरी के कारण है। पिछले साल सख्त कोविड नियमों के कारण चीन का कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन गिर गया था लेकिन इसके विपरीत अन्य उभरती और एशियाई विकासशील अर्थव्यवस्था के आर्थिक विकास के कारण इसके उत्सर्जन में 4.2 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। यह स्वच्छ ऊर्जा के इस्तेमाल का ही नतीजा है कि कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन पर अंकुश लगा वरना यह लगभग तीन गुणा से भी ज्यादा होता। आंकड़े और अध्ययन प्रमाण हैं कि कोयले के इस्तेमाल से कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन बीते साल यानी 2022 में 1.6 प्रतिशत बढ़ा। इसमें रूस-यूक्रेन युद्ध के योगदान को नकारा नहीं जा सकता। रूस-यूक्रेन युद्ध और रूसी गैस की आपूर्ति में आई भीषण कमी के कारण बहुतेरे यूरोपीय देशों ने भी ऐसे ईंधन का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया ।
जलवायु परिवर्तन से कृषि, खाद्यान्न, पानी व इंसान के जीने के लाले पड़ने और भीषण आपदाओं का अंदेशा है। दुनिया के वैज्ञानिक इसके संकेत सालों से दे रहे हैं। लेकिन अब नदियां भी सूखने लगी हैं। इटली की सबसे बड़ी नदी ‘पो’ इसकी जीती-जागती मिसाल है जो लगातार सूखती जा रही है। असलियत यह है कि 652 किलोमीटर लम्बी इस नदी के लगभग 75 प्रतिशत हिस्से से पानी खत्म हो चुका है। इसका एक अहम कारण आल्प्स के पहाड़ों पर बर्फ का न होना है। इसके साथ ही तापमान में बढ़ोतरी व तेजी से बदलाव तथा वर्षा चक्र में असंतुलन ने इंसान और जानवरों के बीच के संघर्ष को तकरीबन 80 प्रतिशत बढ़ाने का काम किया है। जानवर तेजी से हो रहे इस बदलाव को स्वीकारने को तैयार नहीं हैं। देखा जा रहा है कि अब हाथी ही नहीं, दूसरे जानवरों के इंसानों से संघर्ष की घटनाएं अब पहले से ज्यादा बढ़ी हैं। इसका अहम कारण जलवायु परिवर्तन के चलते हर जीव का जीवन प्रभावित होना है। वहीं खाने और पीने के पानी के बढ़ते संकट के कारण दोनों के बीच टकराव में बढ़ोतरी और जंगलों में इंसान के बढ़ते हस्तक्षेप-घुसपैठ से जीवों के आवास स्थलों की बर्बादी अहम है। हमारे देश की स्थिति भी भिन्न नहीं है।
वैसे ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के लिए दुनिया के 10 प्रतिशत सबसे धनी देश सर्वाधिक जिम्मेदार हैं जो 45 प्रतिशत ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कर रहे हैं। जबकि 50 प्रतिशत लोग जो जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे नतीजों को भुगत रहे हैं, वे ग्रीन हाउस गैसों के कुल उत्सर्जन के मात्र 15 प्रतिशत के लिए ही जिम्मेदार हैं। इस असमानता और अन्याय को रोकने के लिए इंटरगवर्मेंटल पैनल फॉर क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) ने दुनिया से अपील की है। इस बारे में जहां तक भारत का सवाल है, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की प्रबंध निदेशक क्रिस्टालिना जार्जीवा की मानें तो 2070 तक शून्य कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य निर्धारित करने वाला भारत उस महत्वाकांक्षी लक्ष्य को समय से पहले हासिल कर सकता है।
इस दिशा में ऊर्जा के मुख्य स्रोत के रूप में सौर ऊर्जा के उपयोग और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सौर गठबंधन के माध्यम से इसे वैश्विक स्तर तक ले जाने के भारत के प्रयासों से प्रतीत होता है कि जलवायु परिवर्तन के संकट से लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगा। यह तभी संभव है जबकि मौजूदा संसाधनों का सही रूप से रणनीतिक इस्तेमाल किया जाये।
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