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रिमोट वोटिंग मशीन को लेकर उठते सवालों से टला प्रदर्शन

Updated on 25-01-2023 02:52 AM
भारत निर्वाचन आयोग मतदान का प्रतिशत बढ़ाने के लिए देश के दूसरे विभिन्न हिस्सों में निवास कर रहे लोगों को वहीं से मतदान कराने के लिए रिमोट वोटिंग मशीन के द्वारा वोटिंग करने की पहल कर रहा है जबकि उसके द्वारा बुलाई गई विभिन्न मान्यता प्राप्त दलों की बैठक में इसकी उपयोगिता को लेकर ही एक बड़ा सवालिया निशान लग गया। यही कारण रहा कि इस बैठक में उस मशीन का प्रदर्शन नहीं हो पाया तथा चुनाव आयोग ने अब विभिन्न राजनीतिक दलों से उनके सुझाव लिखित में मांगे हैं। इसी वर्ष 16 जनवरी को हुई बैठक में निर्वाचन आयोग ने सभी राष्ट्रीय व क्षेत्रीय राजनीतिक दलों से उनके दो-दो नेताओं को इस मशीन की जानकारी देने के लिए आमंत्रित किया गया था।           

          वैसे निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार भोजन के साथ ही बैठक को समाप्त होना था लेकिन मशीन की उपयोगिता पर ही सवाल उठाने के कारण यह बैठक शाम पांच बजे तक चली। रिमोट वोटिंग मशीन यानी आरवीएम में विभिन्न क्षेत्रों के अधिकतम 75 मतदान केंद्रों के लोग जहां रहते हैं वहीं से अपने मताधिकार का प्रयोग कर अपने पसंदीदा उम्मीदवार को चुन सकेंगे और उन्हें अपने उस स्थान पर नहीं जाना होगा जहां पर मतदाता सूची में उनका नाम है। मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार के उद्बोधन के तत्काल बाद ही तृणमूल कांग्रेस व सीपीआई के प्रतिनिधियों ने रिमोट वोटिंग की आवश्यकता पर ही सवालिया निशान लगाते हुए सुझाव दिया कि पहले इस मशीन की जरुरत है भी या नहीं इस पर चर्चा होनी चाहिए। 
       राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय सचिव तथा प्रवक्ता बृजमोहन श्रीवास्तव ने कानूनी प्रावधानों का हवाला देते हुए कहा कि ऐसी स्थिति में किसी एक क्षेत्र के मतदाता जो भारत के दूसरे हिस्सों में निवास कर रहे हैं और वह वहां से ही मतदान करना चाहते हैं तो फिर नियम 13 के अंतर्गत पोलिंग ऐजेंट को नियुक्त करने में होने वाले खर्च और उसकी व्यवस्था जो छोटे दल व क्षेत्रीय पार्टियां हैं अपने सीमिति वित्तीय संसाधनों में नहीं कर पायेंगे। इसका परिणाम यह होगा कि इन दलों का अस्तित्व ही खत्म हो जायेगा, इसलिए रिमोट वोटिंग मशीन को स्वीकार करने का मतलब यह है कि खुद के अस्तित्व से समझौता करना। तार्किक रुप से अपने तर्क रखते हुए श्रीवास्तव ने मशीन की आवश्यकता को नकारते हुए कहा कि यदि फिर भी निर्वाचन आयोग इस मशीन का उपयोग करना ही चाहता है तो उसे पहले जनप्रतिनिधित्व कानून व मतदान प्रक्रिया के नियमों में बदलाव करना होगा। चूंकि मशीन की जरुरत पर ही सवालिया निशान लग गया था इसलिए मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने राकांपा के इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया कि पहले मशीन की जरुरत पर ही चर्चा होनी चाहिए उसके उपरान्त कोई कार्रवाई करना चाहिए। सभी दलों के प्रतिनिधियों ने अपने-अपने दल के विचार रखे।     

      भारतीय जनता पार्टी के प्रतिनिधियों में केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव सहित क्षेत्रीय दलों में लोक जनशक्ति पार्टी व असम गण परिषद ने रिमोट वोटिंग मशीन के प्रयोग पर अपनी सहमति जताई जबकि सात राष्ट्रीय दलों व 41 क्षेत्रीय दलों के नेताओं ने मशीन की आवश्कता पर ही सवालिया निशान लगा दिया। राजनीतिक दलों की मंशा को भांपते हुए मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने मशीन के तत्काल प्रदर्शन को स्वेच्छिक करते हुए 28 फरवरी 2023 तक लिखित में जबाब देने का दलों से अनुरोध किया। 

       इस बैठक में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के प्रतिनिधि और मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री सांसद दिग्विजय सिंह ने कांग्रेस का यह मत पूरी दृढ़ता से रखा कि हमारी पार्टी ईवीएम की जगह मतपत्र के माध्यम से चुनाव चाहती है। उन्होंने इस तर्क का खंडन करते हुए कहा कि वोटों की गिनती में समय लगेगा तो जब करोड़ों नोट मशीनों से गिने जाते हैं तो मतपत्रों को भी इन मशीनों से गिना जा सकता है। हमारी पहली मांग यह है कि ईवीएम और आरवीएम के स्थान पर मतपत्रों के माध्यम से ही चुनाव कराये जायें इसलिए आज का प्रदर्शन नहीं किया जाये। आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने कहा कि निर्वाचन आयोग यह कहता है कि आरवीएम की जरुरत 30 करोड़ मतदाताओं के वोट डालने की है तो यह बात समझ से परे है। उनका कहना था कि हमारे देश में अभी भी 68 प्रतिशत से कुछ अधिक तक मतदान हो रहा है जबकि विश्व के अन्य लोकतांत्रिक देश जैसे अमेरिका में 40 प्रतिशत अधिकतम मतदान हो रहा है, जर्मनी, जापान, न्यूजीलैंड के मतदान का प्रतिशत भी 60 से अधिक नहीं है, इन हालातों में आरवीएम के पीछे का जो असली खेल है उसको समझना ज्यादा जरुरी है इसलिए इसके प्रदर्शन की कोई जरुरत नहीं है।

अरुण पटेल, लेखक, संपादक

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