नई दिल्ली। अभी तक आप रेलवे स्टेशनों पर अधिकतर स्ट्रक्चर लोहे का बना देखा होगा। लेकिन अब जमाना आ गया है कि रेलवे अधिक से अधिक स्ट्रक्चर लोहा, अल्यूमिनियम या किसी अन्य धातु के बनाने की बजाय स्टेनलेस स्टील का बनाएगा। इसी क्रम में रेलवे स्टेशनों पर फुट ओवर ब्रिज बनाने की शुरूआत स्टेनलेस स्टील से हो गई है।शीघ्र ही अन्य चीजें भी इसी धातु की बनी होंगी। रेलवे स्टेशनों पर फुट ओवर ब्रिज जैसे स्ट्रक्चर भी स्टेनलेस स्टील के ही दिखाई देने वाले है। इसके डिजाइन और मैटेरियल के बारे में रेलवे की अनुसंधान एवं विकास इकाई रिसर्च डिजाइन एंड स्टेंडर्ड आर्गनाइजेशन (आरडीएसओ) से भी हरी झंडी मिल गई है।इसके पहले ही रेलवे बोर्ड से भी इसके उपयोग पर सिंद्धांतिक सहमति मिल गई थी। जिंदल स्टेनलेस के प्रबंध निदेशक अभ्युदय जिंदल का कहना है कि अगले साल भर में आपको पहला फुट ओवर ब्रिज दिख जाएगा,इस शत प्रतिशत स्टेनलेस स्टील से बनाया जा रहा है।
जिंदल का कहना है कि अभी परंपरागत रूप से रेलवे स्टेशनों पर लोहे का स्ट्रक्चर बनाया जाता है। इसकी उम्र कम होती ही है, उस कोरोजन या जंग से बचाने के लिए समय समय पर मेंटनेंस की भी आवश्यकता होती है। लेकिन स्टेनलेस स्टील का कोई स्ट्रक्चर बना दें, तब उसका समय समय पर बहुत कम मेंटनेंस की आवश्यकता होती है। यही नहीं, ये परंपरागत लोहे के स्ट्रक्चर के मुकाबले काफी हल्के होते हैं।वहीं लोहे का स्ट्रक्चर की उम्र यदि 70-75 साल है,तब स्टेनलेस स्टील के स्ट्रक्चर आराम से 150 से 200 साल चल जाएंगे। रेलवे ने तय किया है कि अब शत प्रतिशत डिब्बे जर्मनी तकनीक के बनाये जाएंगे। इसमें अंडर फ्रेम स्ट्रक्चर बनाने में स्टेनलेस स्टील का ही उपयोग हो रहा है। इससे कोरोजन कम होता है, जिससे कुछ ही साल में मेंटनेंस करने की आवश्यकता से मुक्ति मिल गई। इसी तरह मालगाड़ी के डिब्बों का निर्माण भी लोहे के बजाए स्टेनलेस स्टील की चादरों से होने लगी। इससे मालगाड़ी के जंग लगने से बरबाद होने की घटना में कमी आई। अब स्थिति यह है कि शत प्रतिशत यात्री डिब्बे जबकि 80 फीसदी माल डिब्बे स्टेनलेस स्टील के ही बनने लगे हैं।