कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने अंततः छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को पांच साल का अपना कार्यकाल पूरा करने के लिए अभयदान दे दिया है। बघेल अब अधिक बेफिक्र होकर राज्य में कांग्रेस का जनाधार मजबूत करने की दिशा में सधे हुए ठोस कदमों से आगे बढ़ सकेंगे। इसके साथ ही कांग्रेस आलाकमान ने इस फार्मूले की हवा निकाल दी है कि भूपेश बघेल को राज्य की कमान सौंपते समय राहुल गांधी ने यह फार्मूला दिया था कि बघेल और टी एस सिंहदेव दोनों ही ढाई-ढाई साल मुख्यमंत्री का पद संभालेंगे। बघेल ने जैसे ही ढाई साल का कार्यकाल पूरा किया कि उन्हें हटा कर टीएस सिंहदेव को मुख्यमंत्री बनाने की मांग चलने लगी जिसे भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने भी चुटकी लेते हुए हवा देने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखी। जब सिंहदेव समर्थकों ने इस फार्मूले की याद दिलाते हुए दिल्ली में हाईकमान के दरबार में हाजिरी लगाई, उसके बाद भूपेश बघेल को हाईकमान ने दिल्ली बुलाया। उनकी राहुल गांधी के निवास पर तीन घंटे तक बैठक चली जिसमें टीएस सिंहदेव, भूपेश बघेल तथा छत्तीसगढ़ के प्रभारी पी. एल. पूनिया ने भी शिरकत की। राहुल गांधी की बघेल और सिंहदेव से एक साथ और बाद में अलग-अलग भी मुलाकात हुई। इसके साथ ही पूनिया ने यह स्पष्ट कर दिया कि ऐसा कोई आश्वासन हाईकमान ने नहीं दिया था और बघेल पूरे कार्यकाल तक मुख्यमंत्री बने रहेंगे। इससे सिंहदेव को मुख्यमंत्री के रुप में देखने वालों को निराशा हाथ लगी है। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि बघेल को अस्थिर करने वालों में कुछ बड़े औद्योगिक घराने और कुछ मीडिया घरानों की संल्लिपतता थी, उनके इशारे पर ही बदलाव का माहौल बनाने की कोशिश की गयी थी। हालांकि यह कहा जा सकता है कि उनका अभियान काफी के प्याले में उठे तूफान से अधिक कुछ साबित नहीं हो पाया।
जहां तक ढाई-ढाई साल के फार्मूले का सवाल है उस सम्बन्ध में टीएस सिंहदेव ने भी सफाई देते हुए कहा कि पार्टी ने कभी भी ढाई-ढाई साल के फार्मूले की बात नहीं कही है यह मामला मीडिया के कयास पर आधारित है। उन्होंने कहा कि टीम में खेलने वाला हर खिलाड़ी कप्तान बनना चाहता है। मुझे हाईकमान जो भी जिम्मेदारी देगा उसे निभाऊंगा। दिल्ली में जमे सिंहदेव ने यह बयान गुरुवार 26 अगस्त को दिया। भूपेश बघेल का पक्ष उस समय काफी मजबूत हो गया जब उनके समर्थन में कुछ मंत्रियों सहित लगभग 55 विधायकों ने दिल्ली में डेरा डाला और आला नेताओं से मिलकर बघेल को बनाये रखने की बात कही। हाईकमान के बुलावे पर बघेल शुक्रवार 27 अगस्त को दिल्ली गए और इसके बाद उनकी लम्बी बातचीत राहुल गांधी और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी से हुई जिसमें उन्हें अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा करने की हरी झंडी मिल गयी। वैसे सिंहदेव का गुरुवार को भोपाल आने का कार्यक्रम था लेकिन बदले हुए घटनाक्रम के कारण वे दिल्ली में ही रुक गए। दिल्ली में पूनिया ने राहुल गांधी व प्रियंका गांधी के साथ साढ़े तीन घंटे की बैठक के बाद स्पष्ट किया कि बघेल पांच साल के सीएम बने थे और बने रहेंगे तथा टीएस सिंहदेव सम्मानजनक और प्रभावशाली ढंग से जैसा काम कर रहे हैं वैसा काम करते रहेंगे। इस बैठक के बाद प्रभारी पूनिया और बघेल ने मीडिया के सामने आकर ढाई-ढाई साल के फार्मूले को ही खारिज कर दिया, उनका कहना था कि ऐसा कोई फार्मूला था ही नहीं। बघेल ने कहा कि उन्होंने मुख्यमंत्री के तौर पर राहुल गांधी को छत्तीसगढ़ आमंत्रित किया है। भूपेश बघेल का कहना था कि मैंने अपने नेता को दिल की बात बता दी है, राहुल गांधी अगले सप्ताह राज्य का दौरा करेंगे। लगभग 55 विधायकों की दिल्ली दरबार में हाजिरी के साथ ही बघेल ने अपनी सियासी पकड़ मजबूत होने का संदेश दिया तथा सिंहदेव की दावेदारी इसके सामने काफी कमजोर नजर आई। बघेल का सार्वजनिक रुप से यह कहना कि मेरे नेता राहुल गांधी जब कहेंगे मैं तत्काल मुख्यमंत्री का पद छोड़ दूंगा, से उनके नेतृत्व को अधिक मजबूती मिली। इस पर कांग्रेस हाईकमान ने खुद राज्य में नेतृत्व परिवर्तन के इरादे को विराम लगा देना ही उचित समझा, क्योंकि इतने विधायकों की परेड के बाद उसे यह समझने में देर नहीं लगी कि बघेल की पकड़ सत्ता ही नहीं संगठन पर भी काफी मजबूत है।
ढाई-ढाई साल के फार्मूले की हकीकत
हाईकमान द्वारा ढाई-ढाई साल के फार्मूले को सिरे से खारिज करने के बाद यह बात उठना स्वाभाविक है कि आखिर इस फार्मूले ने कहां जन्म लिया और कैसे यह गाहे-बगाहे ढाई साल से राजनीतिक गलियारों में तैरता उतराता रहा। इसे समझने के लिए पुराने घटनाक्रम पर गौर करना लाजिमी होगा। पहले मुख्यमंत्री की रेस में भूपेश बघेल, टीएस सिंहदेव, चरणदास महंत तथा ताम्रध्वज साहू का नाम शामिल था। दिसम्बर 2018 में एक अवसर ऐसा भी आया जब ताम्रध्वज साहू को लोगों ने मुख्यमंत्री बनने की बधाई तक दे डाली, लेकिन आनन-फानन में आलाकमान ने जो अभयदान साहू को देने का मन बनाया था उसे बदल दिया। इस दौड़ में शामिल चरणदास महंत तो विधानसभा अध्यक्ष पद का आश्वासन मिलने के बाद रेस से बाहर हो गए और फिर तीन नाम ही बचे थे जिनमें से किसी एक के नाम पर फैसला होना था। पिछड़े वर्ग के होने के कारण साहू का नाम भी गंभीरता से चल रहा था और प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते भूपेश बघेल की दावेदारी इसलिए मजबूत मानी जा रही थी क्योंकि उन्होंने ही कांग्रेस की चमकदार जीत की इबारत लिखने में अहम् भूमिका अदा की थी। नेता प्रतिपक्ष होने के नाते सिंहदेव ने भी कांग्रेस सरकार बनाने में अहम् भूमिका निभाई थी, क्योंकि उस समय उनकी एवं बघेल की जोड़ी हिट चल रही थी और दोनों परस्पर विश्वाश से कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रहे थे। वैसे तो यह बात बघेल और सिंहदेव भी साफ कर सकते हैं लेकिन साहू की दावेदारी को देखते हुए बघेल और सिंहदेव के बीच में यह फार्मूला निकला कि दोनों आधे-आधे कार्यकाल के लिए मुख्यमंत्री का पद संभालेंगे और इसके तहत ही सिंहदेव बघेल को पहले मुख्यमंत्री बनाने के लिए राजी हो गये, क्योंकि दोनों के बीच में आपसी समझ बनी थी। साहू को गृहमंत्री का पद पाकर संतोष करना पड़ा। फिलहाल साहू बघेल की राह में कोई कांटे नही बिछा रहे और उन्हें पूरा सहयोग कर रहे हैं।
और यह भी
छत्तीसगढ़ की कांग्रेस राजनीति में बघेल और सिंहदेव की जोड़ी को जय और वीरु की जोड़ी कहा जाता था और यह जोड़ी सरकार बनने तक बनी रही। धीरे-धीरे जैसे-जैसे ढाई साल का कार्यकाल नजदीक आता गया वैसे-वैसे जय और वीरु की जोड़ी टूटने लगी। अब देखने वाली बात यही होगी कि हाईकमान के हस्तक्षेप के बाद इस जोड़ी में जो जोड़ लगा है वह फेवीकोल के मजबूत जोड़ की तरह मजबूती दे पाता है या नहीं। बघेल और सिंहदेव के बीच बढ़ती हुई राजनीतिक दूरियों और अनबन को दूर कर दोनों को राजी करने के लिए कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अविभाजित मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह को पहल करने के लिए कहा। बघेल और सिंहदेव दोनों ही उनके काफी नजदीक हैं। इसके कारण ही इसमें पर्दे के पीछे दिग्विजय सिंह की भी अहम् भूमिका होने की संभावना को नकारा नहीं जा सकता। देखने वाली बात यह भी होगी कि जो नया सुलह का फार्मूला बना है उसके तहत छत्तीसगढ़ के मंत्री अमरजीत भगत का मंत्री पद जाता है या नहीं, क्योंकि उनसे सिंहदेव बहुत नाराज हैं। भगत को हटाकर सिंहदेव के कहने पर किसी अन्य विधायक को मंत्री बनाने की भी बात चल रही है।
अरुण पटेल, वरिष्ठ पत्रकार,लेखक ये लेखक के अपने विचार है I
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