बड़ा अच्छा मुहावरा है कि बाबू ने सूट-बूट पहन लिया इसका मतलब है कि बाबू अप टू डेट आदमी बन गया पैसे वाला बन गया एकदम जेंटलमैन। याने सूट पहनना सबसे आखरी परिधान है उसके बाद आदमी का व्यक्तित्व और उसकी छाप बिल्कुल स्पेशल विशेष कैटेगरी की हो जाती है। शासन प्रशासन ने हमारे देश प्रदेश और शहर को कई जगह सुंदर बना दिया और कई जगह यह प्रक्रिया चालू है। भरपूर विकास कार्य भी किए और आगे भी चल रहे हैं। बिल्कुल रहने लायक एक दम झक्कास माहौल बनाते जा रहे हैं। अब इन सब कार्यों के लिए अच्छा खासा भरपूर टैक्स वसूला जा रहा है महंगाई सिर से भी दो - तिन फीट ऊपर चली गई पर जनता की कमाई का मापदंड तो वही की वही है। उसमें कोई विशेष बढ़ोतरी नहीं हुई। आय कम और खर्चे ज्यादा । जनता की बेसिक जरूरत रोटी कपड़ा मकान है। जनता की तकलीफ बढ़ गई। मिडल क्लास और छोटे व्यापारी कर्जा ले कर जी रहे। छोटे कारखाने वाले लगातार बिजली मजदूरी और टैक्स चुकाने में जिंदगी खफा रहै। गरीब वर्ग मन मार कर जी रहे, दो चाय पीने वाला एक चाय पी रहा होगा। साधारण जनता फल फ्रूट सब्जी अब लिमिट में खाने लगे। महंगे पेट्रोल डीजल के कारण टैक्सी बस और अन्य चीजें महंगी होती गई। साधारण व्यक्ति और गरीब होता जा रहा है गरीबों का औसत बढ़ रहा है। ऐसा लगने लगा की सबने सूट तो पहन लिया लेकिन सबकी जेब खाली है।
अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार ,पर्यावरणविद्) (ये लेखक के अपने विचार है )
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