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पुरुषोत्तम मास

Updated on 19-07-2023 11:48 AM
18 जुलाई से 16 अगस्त तक अधिक - पूर्णिमा मास
🌷 *पुरुषोत्तम मास में रोज़ एक बार एक श्लोक बोल शान तो बहुत अच्छा है*
🌷 *गोवर्धनधरं वन्दे गोपालं गोपालम् |*
*गोकुलोत्सवमीशानं गोविंदं गोपिका प्रियं | |*
🙏🏻 *हे भगवान ! हे गिरिराज धर ! गोवर्धन को अपने हाथ में उठाने वाले हे हरि! हमारे विश्वास और भक्ति को भी तू ही मानना ​​| प्रभु आपकी कृपा से ही मेरे जीवन में भक्ति बनी रहेगी, आपकी कृपा से ही मेरे जीवन में भी विश्वास रूपी गोवर्धन मेरी रक्षा करती रहेगी | हे गोवर्धनधारी आपको मेरा प्रणाम है आप समर्थ होते हुए भी साधारण बालक की तरह लीला करते थे गोकुल में तुम्हारी वजह से हमेशा उत्सव छाया रहती थी मेरे हृदय में भी हमेशा उत्सव छाया रहती थी साधना में, सेवा-सुमिरन में मेरा उत्साह कभी कम न हो |* 
🙏🏻 *मैं जप, साधना सेवा,करते हुए कभी थकाऊ नहीं | मेरी इंद्रियों में दुनिया का आकर्षण न हो, मेरी नज़र से तुम्हीं देखो कि चाहत रखूँ, ताल से तेरी आवाज़ सुन की चाहत रखूँ, जीभ के दिया से हुआ नाम जपानी की चाहत रखूँ! हे !गोविंद आप गोपियों के प्रिय हो! ऐसी कृपा करो, ऐसी सद्बुद्धि दो कि मेरी इन्द्रियाँ तुम्हें ही मिलेंगी! मेरी इन्द्ररूपी गोपीयों में दुनिया की चाहत न हो,ख़्वाह तुम्हारी ही चाहत हो !*
             
🌷 *अधिक मास का माहात्म्य* 🌷
🙏🏻 *अधिक मास में सूर्य की संक्रांति (सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश) न होने के कारण इसे "मलमास (मलिन मास)" कहा गया है। स्वामी होने से यह मास देव-पितर आदि की पूजा और मंगल कर्मों के लिए यज्ञ माना गया है। इसे लोग इसकी घोर निंदा करने लगे।*
🙏🏻 *तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहाः "मैं इसे सर्वोपरी - अपनी तुल्यता देता हूं।" सद्गुण, कीर्ति, प्रभाव, षडैश्वर्य, प्रभाव, भक्तों को पुष्पांजलि की प्रधानता आदि गुण मुझमें हैं, उन सहोदर ने इस मास को त्रिगुण दिया।*
🌷 *अहमेते यथा लोके पृथितः पुरूषोत्तमः।*
*तथायमपि लोकेषु पृथितः पुरूषोत्तमः।।*
🙏🏻 *जिन गुणों के कारण जिस प्रकार से मैं वेदों, लोकों और शास्त्रों में 'पुरुषोत्तम' नाम से विख्यात हूं, उसी प्रकार से यह मलमास भी भूतल पर 'पुरुषोत्तम' नाम से प्रसिद्ध हुआ हूं और मैं स्वयं स्वामी हो गया हूं।''
🙏🏻 *इस प्रकार अधिक मास, मलमास, 'पुरुषोत्तम मास' के नाम से जाना जाता है।*
🙏🏻 *भगवान कहते हैं- 'इस मास में मेरे उद्देश्य से जो स्नान (ब्राह्ममुहुर्त में ब्रह्मामुहूर्त में स्नान किया जाता है), दान, जप, होम, स्वाध्याय, पितृतर्पण और देवार्चन किया जाता है, वह सब अक्षय हो जाता है। जो प्रमाद से इस खाली विश्राम को देते हैं, उनकी बात मानवलोक में दारिद्रय, पुत्रशोक और पाप के जीवन से निन्दित हो जाती है, इसमें संदेह नहीं है।*
🙏🏻 *सुगंधित चंदन, अनेक प्रकार के फूल, मिष्ठान्न, नैवेद्य, धूप, दीप आदि लक्ष्मी से युक्त सनातन भगवान तथा पितामह भीष्म का पूजन करें। घंटा, मृदंग और शंख की ध्वनि के साथ कपूर और चंदन से आरती करें। ये न हो तो रुई की मिठाई से ही आरती कर लें। इससे अनंत फल की प्राप्ति होती है। चंदन, अक्षत और पुष्पों के साथ तांबे के पात्र में पानी मिलाकर भक्ति से पहले या बाद में अर्घ्य दें। अर्घ्य देते समय भगवान ब्रह्माजी के साथ मेरा स्मरण करके इस मंत्र को बोलें*
*देवदेव महादेव प्रलयोत्पत्तिकारक।*
*गृहाणार्घ्यमिमं देव कृपां कृत्वा ममोपरि।।*
*स्वयंभुवे नमस्तुभ्यं ब्राह्मणेऽमिततेजसे।*
*नमोऽस्तुते श्रियानन्त दयां कुरु ममोपरि।।*
🙏🏻 *'हे देवदेव ! हे महादेव ! यह प्रलय और उत्पत्ति करने वाला है ! हे देव ! कृपया करके इस अर्घ्य को ग्रहण करें। तुझे स्वयंभू के लिए नमस्कार तथा तुझे अमिततेज ब्रह्मा के लिए नमस्कार। हे अनंत ! लक्ष्मी जी के साथ कृपया कृपया।'*
🙏🏻 *पुरुषोत्तम मास का व्रत दारिद्रय, पुत्रशोक और वैधव्य का नाश है। इसके व्रत से ब्रह्महत्या आदि सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।*
🌷 *विधिवत् सेवते यस्तु सर्वोत्तममादरात्।*
*फुलं स्वकीयमुधृत्य मामेवैष्यत्यसंशयम्।।*
🙏🏻 *प्रति तृतीय वर्ष में सर्वोच्च मास के आगमन पर जो व्यक्ति श्रद्धा-भक्ति के साथ व्रत, उपवास, पूजा आदि शुभकर्म करता है, वह अपने पूरे परिवार के साथ निःसंदेह करता है, मेरे लोक में पहुंच कर मेरा सान्निध्य प्राप्त होता है।"
🙏🏻 *इस माह में केवल ईश्वर के उद्देश्य से जो जप, सत्संग व सतकथा - श्रवण, हरिकीर्तन, व्रत, उपवास, स्नान, दान या पूजनादि किए जाते हैं, उनके अक्षय फल होते हैं और व्रती के संपूर्ण अनिष्ट हो जाते हैं। निष्काम भाव से जाने वाले अनुष्ठानों के लिए यह अत्यंत श्रेष्ठ समय है। 'देवी भागवत' के अनुसार यदि आदि का दान न हो तो संतों-महापुरुषों की सर्वोत्तम सेवा होती है, क्योंकि तीर्थस्नानादि के समान फल प्राप्त होता है।
🙏🏻 *इस मास में प्रातःस्नान, दान, तप नियम, धर्म, पुण्यकर्म, व्रत-उपासना तथा निःस्वार्थ नाम जप - गुरुमंत्र का जप अधिक महत्वपूर्ण है।*
🔥 *इस महीने में दीपकों का दान करने से मन पूर्ण होते हैं। दुःख - शोक का नाश होता है। वंशदीप बढ़ता है, ऊँचा सान्निध्य मिलता है, आयु बढ़ता है। इस मास में आँवले और तिल का उबटन शरीर पर मलकर स्नान करना और आँवले के वृक्ष के नीचे भोजन करना यह भगवान श्री पुरूषोत्तम को अतिशय प्रिय है, साथ ही स्वास्थ्यप्रद और खुशप्रद भी है। यह व्रत करने वाले लोग बहुत पुण्यवान हो जाते हैं।*
❌ *अधिक मास में अनपेक्षित*
*इस मास में सभी सकाम कर्म एवं व्रत हैं। जैसे - कुआँ, बावली, तालाब और बाग आदि का आरंभ तथा प्रतिष्ठा, नवविवाहिता वधू का प्रवेश, देवताओं की स्थापना (देवप्रतिष्ठा), यज्ञोपवीत संस्कार, विवाह, नामकरण, मकान बनाना, नये वस्त्र एवं अलंकार आदि।*
✅ *अधिक मास में करने योग्य*
*प्राणघातक रोग आदि के निवृत्ति के लिए रुद्रजप आदि अनुष्ठान, दान व जप-कीर्तन आदि, पुत्रजन्म के कृत्य, पितृमरण के श्राद्धादि तथा गर्भाधान, पुंसवन जैसे संस्कार किए जा सकते हैं।*

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