नई दिल्ली । इंसान की याद्दाश्त प्रकृति की बहुत ही अनोखी देन है। लेकिन इसके साथ जुड़ी समस्याएं विज्ञान के लिए आज भी चुनौती हैं। इंसान अपनी सारी यादें उम्र भर सहेज कर नहीं रखा पाता। बुढ़े होने पर याद्दाश्त को कायम नहीं रख पाना आम बात है। याद्दाश्त कायम कर पाने के लिए कई शोध हुए हैं।ताजा शोध में कहा गया है कि सकारात्मक नजरिया यादाश्त कायम रखने में मददगार साबित हो सकता है। नए अध्ययन से पता चला है कि जो लोग खुद को उत्साहित और जोश में महसूस करते हैं उन लोगों को अधिक उम्र में याद्दाश्त कम होने का अनुभव होने की संभावना कम हो जाती है।
शोधकर्ताओं की टीम ने 991 मध्य आयु और अधिक उम्र के अमेरिकी व्यस्कों के आंकड़ों का विश्लेषण किया जिन्होंने तीन समयावधियों के राष्ट्रीय अध्ययन में भाग लिया था। ये अध्ययन 1995 और 1996, 2004 से लेकर 2006 तक, और 2012 एवं 2014 तक किए गए थे। हर आंकलन में प्रतिभागियों ने अपने द्वारा अनुभव किए गए 30 दिनों तक के विभिन्न प्रकार के साकारत्मक भावों की जानकारी देनी थी। अंतिम दो आंकलनों में प्रतिभागियों ने अपनी याद्दाश्त के प्रदर्शन का टेस्ट भी दिया था। ये टेस्ट उनकी प्रस्तुति के तुरंत बाद और फिर 15 मिनट बाद हुए थे।
लोग खुद को उत्साहित और जोश में महसूस करने की स्थिति को मनोविज्ञान में ‘सकारात्मक प्रभाव’ कहते हैं।शोधकर्ताओं ने ‘सकारात्मक प्रभाव’ और याद्दाशत कमजोर होने, बढ़ती उम्र लिंग, शिक्षा, निराशा, और नकारात्क प्रभाव के बीच के संबंध की पड़ताल की। शोधकर्ता ने बताया, हमारी पड़ताल से पता चला है कि उम्र बढ़ने के साथ याद्दाश्त कमजोर हो जाती है। एक अन्य शोधकर्ता ने बताया कि ऊंचे स्तर के ‘सकारात्मक प्रभाव’ वाले व्यक्तियों में एक दशक के समय में बहुत तेजी से याद्दाश्त कम नहीं हुई। उन्होंने पाया कि उन लोगों में याद्दाश्त तेजी से कम हुई जिनमें ‘सकारात्मक प्रभाव’ का स्तर कम या नहीं था।