मकान मालिक और किरायेदारों के बीच अक्सर विवाद की स्थिति देखने में आती थी और एक बार विवाद जब न्यायालय में चला जाए तो उसका निराकरण होने में वर्षों लग जाते थे। कई परिवारों की आजीविका किराये से होने वाली आय से ही वृद्धावस्था में चलती है और इस प्रकार के विवाद होने पर दोनों को ही मानसिक प्रताड़ना से गुजरना पड़ता है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान नवाचार करने में हमेशा आगे रहे हैं और कई बार उनके द्वारा किए गए नवाचारों को अन्य राज्यों ने भी अपने यहां अपनाया है। भूस्वामी व किरायेदार के अधिकारों के संरक्षण के लिए राज्य विधानसभा में पेश करने हेतु एक विधेयक का प्रारुप तैयार हो रहा है जिसे विधानसभा के मानसून सत्र में प्रस्तुत किए जाने के प्रयास हो रहे हैं। मध्यप्रदेश किरायेदारी अधिनियम बनाने की दिशा में शिवराज सरकार सधे हुए कदमों से आगे बढ़ रही है और इसके लागू होने पर मकान मालिक और किरायेदार दोनों के ही अधिकारों का संरक्षण होगा। इस प्रस्तावित विधेयक में इस बात का प्रावधान किया जा रहा है कि उसके लागू होने पर मकान मालिक बिना अनुबंध के किरायेदार नहीं रख पायेंगे। अनुबंध की जानकारी किराया प्राधिकारी को दो माह के भीतर देना अनिवार्य होगी। इस प्रकार अब कोई किरायेदार मकान पर कब्जा नहीं कर सकेगा और निर्धारित अवधि के बाद उसे मकान खाली करना होगा। यदि वह ऐसा नहीं करता है तो शिकायत होने के बाद सुनवाई होने पर बेदखली की कार्रवाई की जाएगी। मकान मालिक भी किरायेदार को अनावश्यक रुप से तंग नहीं कर सकेंगे। आवश्यक सेवाओं के बाधित होने पर मकान मालिक के विरुद्ध कार्रवाई होगी। किरायेदार को दो माह का मकान किराया अगिम देना होगा और उसे मकान खाली करने की तारीख को यह राशि वापस मिलेगी। किराया प्राधिकारी डिप्टी कलेक्टर स्तर से कम का नहीं होगा। प्रदेश के शहरी क्षेत्रों में बड़ी संख्या में मकान किराये पर दिये जाते हैं। मकान मालिक व किरायेदार के बीच विवाद के मामले न्यायालय और पुलिस के पास पहुंचते हैं। केन्द्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने भूस्वामी व किरायेदार के अधिकारों के संरक्षण के लिये सभी राज्यों को कानूनी प्रावधान करने के निर्देश दिये हैं और इस दिशा में शिवराज ने पहल करने में बाजी मार ली है। शिवराज सरकार ने जो पहल की है वह अनुकरणीय है और अन्य राज्यों को भी ऐसे कानून बनाकर किरायेदारों और मकान मालिकों के अधिकारों का संरक्षण करने में जितनी जल्दी हो सके पहल करना चाहिए। प्रत्येक जिले में किराया अधिकरण नियुक्त किया जायेगा जिसे 60 दिन के अन्दर आवेदन का निराकरण करना होगा। आदेश के परिपालन के लिए स्थानीय निकाय या पुलिस की सहायता ली जा सकेगी। परिसर का कब्जा दिलाने या वसूली के लिए कुर्की भी कराई जा सकेगी। भूस्वामी और किरायेदारों के दायित्व भी रेखांकित किए जा रहे हैं जिसके अनुसार मकान मालिक को पुताई के साथ दरवाजे व खिड़कियों की पेंटिंग कराना होगी और जब आवश्यक हो तब नल के पाइप की मरम्मत और बदलना तथा बिजली आपूर्ति प्रभावित होने पर उसको दुरुस्त कराना होगा। किरायेदार को नल का बयार ठीक कराना या बदलना होगा, नाली की सफाई शौचालय, वाश बेसिन, नहाने के टब, गीजर, बिजली के बटन, अलमारी-खिड़कियों की मरम्मत के अलावा उद्यान या खुले स्थान का रखरखाव करना होगा। जिन परिसरों को इस विधेयक के दायरे से बाहर रखा गया है उसमें केन्द्र सरकार, राज्य सरकार, स्थानीय प्राधिकरण, किसी सरकारी उपक्रम, उद्यम, या किसी कानूनी निर्णय के स्वामित्व वाले परिसर तथा किसी कम्पनी, विश्वविद्यालय या संगठन के स्वामित्व वाले किसी परिसर को अपने कर्मचारियों को सेवा संविदा के एक भाग के रुप में दिया गया है वे परिसर शामिल हैं। इसके साथ ही धार्मिक या ट्रस्ट के स्वामित्च वाले परिसर, वक्फ अधिनियम के अधीन पंजीकृत या पंजीकृत न्यास के स्वामित्व वाले परिसर और ऐसे भवन जिन्हें शासन ने लोकहित में शामिल किया है उन्हें इसके प्रावधानों से छूट रहेगी। किरायेदार किसी को किसी अन्य को उप-किरायेदार नहीं बना सकेंगे, लेकिन किरायेदार भूस्वामी की सहमति के बाद किसी अन्य को किरायेदार रख सकेगा। मकान मालिक जब अपनी संपत्ति को किराये पर दे देगा उसके बाद उसको अधिकार नहीं रहेगा कि वह कभी भी परिसर में प्रवेश करे। परिसर में मरम्मत या अन्य कार्य कराने, निरीक्षण या अन्य किसी कारण प्रवेश करना हो तो 24 घंटे पहले किरायेदार को सूचना देना होगी। इस प्रकार शिवराज ने दोनों पक्षों के अधिकारों और दायत्विों को सुस्पष्ट करने की पहल की है जो अन्य राज्यों के लिए भी अनुकरणीय हो सकती है।
अरुण पटेल,लेखक, प्रधान संपादक (ये लेखक के अपने विचार है )
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