नई दिल्ली । रामजन्मभूमि
तीर्थ क्षेत्र के
पदाधिकारियों का मानना
है कि ऐतिहासिक
विवाद का निपटारा
सुप्रीम कोर्ट ने भले
ही कर दिया
है लेकिन पाकिस्तान
परस्त आतंकवादी संगठन
अपनी ओर से
जख्मों को कुरेदते
ही रहेंगे। ट्रस्ट
इसी भाव को
लेकर जन सामान्य
को सतत जागरूक
करना चाहता है।
इसके लिए ट्रस्ट
की योजना है
कि हर माह
की एकादशी को
रामकोट की परिक्रमा
हो और इस
परिक्रमा में आम
श्रद्धालु गण शामिल
हों। इससे सुरक्षा
बलों के अतिरिक्त
एक अलग सुरक्षा
घेरा भी तैयार
होगा जिससे बाहरी
तत्वों के प्रति
आम नागरिक स्वयं
भी सतर्क होंगे।
मालूम हो कि
प्रत्येक माह में
दो एकादशी होती
है। एक कृष्ण
पक्ष की एकादशी
तो दूसरी शुक्ल
पक्ष की एकादशी।
खास यह है
कि हर एकादशी
पर यहां पंचकोसी
परिक्रमा का विधान
है। हालांकि इस
परिक्रमा में चंद
साधु-संत व
साधकगण हिस्सा ही लेते
हैं। वहीं कार्तिक
शुक्ल एकादशी जिसे
देवोत्थानी एकादशी भी कहा
जाता है, के
अवसर पर देश-विदेश के लाखों
श्रद्धालु परिक्रमा करते है।
करीब 15 किमी. से अधिक
की परिधि में
होने वाली इस
परिक्रमा में सामान्यत:
तीन से चार
घंटे का समय
लगता है। रामजन्मभूमि
तीर्थ क्षेत्र के
पदाधिकारी तिरुपति बालाजी देवस्थानम
की तर्ज पर
यहां भी रामकोट
का परिक्रमा पथ
भी विकसित करने
पर विचार कर
रहा है। मालूम
हो कि तिरुपति
मे आम श्रद्धालुओं
के लिए मंदिर
परिसर के चारो
ओर इस प्रकार
दर्शन मार्ग बनाया
गया है कि
श्रद्धालु गण मंदिर
की परिक्रमा करते
हुए गर्भगृह के
सामने तक पहुंच
जाते हैं। तीर्थ
क्षेत्र ट्रस्ट भी भविष्य
में श्रद्धालुओं की
उमड़ने वाली भीड़
की संभावनाओं को
ध्यान में रखते
हुए उसी तरह
की योजना बना
रहा है जिससे
कि एक तरफ
भीड़ भी काबू
हो जाए और
दूसरी तरफ सुरक्षा
घेरे का मकसद
भी पूरा हो
जाए। रामनगरी में
मंदिरों की अंतरग्रही
परिक्रमा के अलावा
कार्तिक शुक्ल नवमी को
14 कोसी परिक्रमा व कार्तिक
शुक्ल एकादशी को
पंचकोसी परिक्रमा होती है।
इसी तरह से
बैसाख कृष्ण प्रतिपदा
से रामनगरी की
84 कोसी परिक्रमा होती। बैसाख
शुक्ल नवमी तक
यानि करीब 23 दिनों
तक चलने वाली
इस परिक्रमा का
शुभारम्भ जनपद बस्ती
में स्थित मखौड़ा
धाम से होता
है। यहीं चक्रवर्ती
नरेश महाराज दशरथ
ने पुत्रेष्ठि यज्ञ
किया था। इस
परिक्रमा के लिए
श्रद्धालु गण कार्तिक
पूर्णिमा को अयोध्या
से मखौड़ा धाम
रवाना होते है
और रात्रि विश्राम
कर अगले दिन
मनोरमा नदी में
स्नान कर परिक्रमा
शुरु करते है।
जानकी नवमी पर
यह परिक्रमा अयोध्या
स्थित सीता कुंड
में पूर्ण होती
है।