सकारात्मकता, प्रबल इच्छा- शक्ति और प्रार्थना से जीत सकते हैं जंग
Updated on
02-05-2021 12:51 PM
कोरोना संक्रमण तीव्रता से अपने पैर पसार रहा है और अब हर पल किसी ना किसी के सहयोगी, परिजन या विभिन्न क्षेत्रों के सशक्त हस्ताक्षर यानी अपने फन में माहिर व्यक्तित्वों को एक के बाद एक छीनते हुए काल के गाल में समाहित कर रहा है। हमारे अपने नजदीकी, समाज में अपनी पहचान बना चुके चेहरे या परिवार के लोग हमसे बिछड़ रहे हैं और उससे स्तब्ध हो जाना स्वाभाविक है। इस प्रकार का माहौल अनायास ही बन गया है कि हर व्यक्ति चिंतित है और उसके चेहरे पर कोरोना का भय साफ नजर आता है। लेकिन इन हालातों में भी अपने अंतस में या अपने आसपास नैराश्य का वातावरण ना बनने दें और धैर्य तथा साहस हर हाल में बनाए रखें। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की यह पंक्तियां हमेशा अपने मानस पटल में याद रखें 'नर हो ना निराश करो मन को कुछ काम करो कुछ काम करो'। निरंतर कुछ ना कुछ काम करते रहना है, अपने आपको सुरक्षित रखना, अपने परिजनों को सुरक्षित रखना है और जितने अधिक से अधिक लोगों को हम सुरक्षित रखने में मददगार हो सकते हैं वह सब करना है। जो भी इस बीमारी से पीड़ित है उसके मन में यह बात और भरोसा पैदा करना है कि यह ऐसी बीमारी नहीं है जिससे हम स्वस्थ ना हो सकें और हम इसे जीत कर ही दम लेंगे तथा स्वस्थ होकर अपने घरों को वापस लौट आएंगे। हमें हमेशा याद रखना चाहिए कि ऐसी कोई भी अंधेरी गुफा या काली अंधियारी रात नहीं होती जिसका अंत ना हो। कुछ देर हो सकती है, पर प्रकाश हमेशा अंधकार को चीरते हुए उसके ऊपर अपना साम्राज्य स्थापित करता आया है। इस माहौल को भी हम बदलेंगे, कोरोना से लड़ेंगे और इस जंग को जीतेंगे।नकारात्मकता को अपने आसपास कदापि फटकने ना दें। सकारात्मकता, प्रबल इच्छा- शक्ति, मन में जीतने की ललक तथा अपने-अपने आराध्य से सच्चे मन और पूरी श्रद्धा से हम लोग प्रार्थना करेंगे तो अवश्य सफल होंगें तथा कोरोना हारेगा। कोरोना संक्रमण को हराने के लिए यह विश्वास मन में होना जरूरी है कि हम हर हाल में स्वस्थ होंगे और इसे पराजित करेंगे।
प्रार्थना जिसे प्रेयर, अरदास या दुआ जहां जो शब्द प्रचलित हो कहते हैं, की शक्तियों को पहचानें और उससे जो परिवर्तन आता है उस पर पूरा भरोसा रखेंगे तो अनुकूल परिणाम भी सामने आएंगे। प्रार्थना में अपरिमित ऐसी शक्तियां सन्निहित हैं जो जीवन में 360 डिग्री परिवर्तन कर सकती हैं। सही समय और सकारात्मक उद्देश के साथ दिल की अनंत गहराइयों से जो प्रार्थना की जाती है वह अवश्य ही सफल होती है और उसके नतीजे भी अच्छे आते हैं। बशर्ते कि हमने जो प्रार्थना की है उसके प्रति हमारे मन में गहन विश्वास हो कि यह प्रार्थना अपना असर जरूर दिखाएगी। प्रार्थना करने का सही समय सुबह उठते समय और रात में सोते समय का होता है। यह ऐसे समय है जब हम जो कुछ कहते हैं, जो प्रार्थना करते हैं वह हमारे अवचेतन मन में सीधे संदेश भेजती है और फिर हमारा अवचेतन मन उस दिशा में काम करना प्रारंभ कर देता है। यह ऐसा समय होता है जब हमारा ब्रह्मांड की समस्त शक्तियों से सीधा संपर्क होता है और उनका आशीर्वाद हमें मिलता है। वैसे प्रार्थना दिन में कभी भी की जा सकती है। दिन में जब भी हमें थोड़ा सा समय मिले हम पूरे विश्वास के साथ प्रार्थना कर सकते हैं। हमारा शरीर महज पंच तत्व से बना हुआ ही नहीं है अपितु वह स्प्रिचुअल याने आध्यात्मिकता से परिपूर्ण भी है। अब वैज्ञानिक अनुसंधान में भी यह साबित हो रहा है की प्रार्थना में बहुत ताकत होती है और वह जरूर पूरी होती है। बशर्ते कि वह किसी की या खुद की भलाई के लिए हो, उन्नति के लिए हो उसके अच्छे नतीजे आते हैं। लेकिन यदि हम किसी के अनिष्ट के लिए या उसका बुरा हो जाए इस उद्देश को सामने रखकर प्रार्थना करते हैं तो उसका तो कुछ नहीं बिगड़ता उल्टे हमारा अहित होता है। हम दूसरे के सर्वनाश की प्रार्थना करते हैं तो वैसा हमारे साथ हो सकता है इसलिए प्रार्थना अच्छे के लिए करना चाहिए।
चाहे महामारी का प्रकोप हो या किसी अन्य प्रकार का संकट सामने हो यदि हम अच्छे मन से प्रार्थना करते हैं तो उसके अच्छे नतीजे आते हैं और हम संकटों को पार करने में अंततः सफल हो ही जाते हैं। अक्सर यह देखने में आ रहा है कि प्रार्थना के बाद जब संकट समाप्त हो जाता है, अच्छे नतीजे आते हैं तो हम प्रार्थना करना भूल जाते हैं और केवल मुसीबत के समय ही प्रार्थना करते हैं। यह अच्छी आदत नहीं है। जब हम पानी पीते हैं तो यह भी जान लें कि उसमें भी आध्यात्मिक ताकत है और वह शरीर में पहुंचकर उसे रिचार्ज करने लगता है, इसलिए पानी पीने के पहले जैसे ही पानी गिलास में लें 10 सेकेंड रुकें, प्रार्थना करें फिर पानी पिएं। जब प्रार्थना एक बार काम कर सकती है तो बार-बार काम कर सकती है इसलिए प्रार्थना हमेशा करते रहना चाहिए। केवल देवी -देवताओं के चिंतन -मनन में, मूर्ति पूजा में या मंत्रों में ताकत नहीं होती बल्कि असली ताकत होती है हमारे विश्वास और हमारी प्रार्थना में, वह भी इस बात पर निर्भर करता है कि प्रार्थना करने का उद्देश्य क्या है यदि वह पवित्र है तो फिर उसका असर अवश्य होगा। सच्चे मन से दिल की गहराइयों से जो भी प्रार्थना करते हैं उसके प्रभाव तत्काल देखने को मिलते हैं।
प्रार्थना की शक्ति को पहचानें
प्रार्थना में शक्ति होती है इसका एक प्रमाण यह भी है कि दुनिया के हर देश और धर्म में प्रार्थना सिखाई जाती है, उसका स्वरूप और ढंग देश काल की परिस्थितियों के अनुसार होता है, लेकिन प्रार्थना बचपन से ही सिखाई जाती है। किसी भी अच्छे काम की शुरुआत प्रार्थना से होती है, स्कूलों में भी पढ़ाई प्रारंभ करने के पूर्व नियमित प्रार्थना होती रही है। प्रार्थना में ताकत होती है इसका एक प्रमाण यह भी है कि सभी अस्पतालों में किसी ना किसी भगवान की मूर्ति या छोटा मंदिर होता है, वह आस्था के अनुसार किसी का भी हो सकता है, वहां पूजा भी होती है और जो अस्पताल का प्रमुख होता है वह हर दिन जब भी वहां आता है भगवान के सामने अपना सर झुकाता है और श्रद्धा के अनुसार पूजा प्रार्थना करता है। दुनिया भर में प्रार्थना कक्ष होते हैं वहां की परंपरा और रीति रिवाज के अनुसार उनके अलग-अलग नाम हो सकते हैं जैसे मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा या चर्च। जहां जो नाम से पुकारा जाए पर ऐसी जगह अधिकांशत: हर देश में होती है। हमारे यहां छोटे से छोटे गांव में भी ऐसे पवित्र स्थल होते हैं। हम पूरी शिद्दत और विश्वास के साथ जो भी प्रार्थना करते हैं अंततः उसका फायदा मिलता ही है। इसकी कोई निश्चित पद्धति नहीं होती दिल की गहराई से प्रार्थना की जाती है तो अवश्य पूरी होती है। प्रार्थना का कोई समय नहीं होता कभी भी की जा सकती है सुबह उठते समय रात में सोते समय जो प्रार्थना की जाती है वह अवश्य ही पूरी होती है। बस यह याद रखें की प्रार्थना की अनावश्यक व्याख्या या विवेचना ना करें। जो जीवन मिला है उसको जीने का भरपूर आनंद लेते रहें।
और क्या कहते हैं मोटिवेशनल स्पीकर
अंतर्राष्ट्रीय मोटिवेशनल गुरु एवं संस्थापक विचार योग फाउंडेशन प्रमोद दुबे का कहना है कि हिंदुस्तान की आध्यात्मिक संपदा इस आधार पर टिकी हुई है कि जन्म और मृत्यु विधि के हाथ में है। इतनी चतुर और प्रज्ञावान विरासत किसी दूसरी बिरादरी को हासिल नहीं है। हमने इतनी चतुराई से मृत्यु जैसी विकराल आपदा को भी अपने हाथ में नहीं रखा है। इसलिए दुख, कष्ट व्यथा को आसानी से झेला जा सकता है। क्योंकि जो हमारे वश में नहीं है वह अधिकार हम प्रकृति से छीन नहीं सकते और मानव सभ्यता का पूरा इतिहास भी इस आधार पर टिका है कि हम प्रकृति से कितना छीन सकते हैं, उसका गला दबा सकते है, मृत्यु पर विजय पा सकते हैं !! और इन्हीं सबके नतीजे हम भुगत रहे हैं। जिस तरह राज्य के विषय, केंद्र के विषय, संविधान के विषय, कानून के विषय हम बेहतर तरीके से समझते हैं उसी तरह मानव सभ्यता के विषय और प्रकृति के विषय भी हमें अच्छे तरीके से समझ लेना चाहिए और उसका सम्मान करना चाहिए। प्रमोद दुबे का मानना है कि हमारे वश में केवल कर्म है और परिणाम के प्रति भयभीत, चिंतित, आक्रांत होने की अपेक्षा हम कर्म प्रधान बने रहे तो मृत्यु भी अपने आप ही वापस लौट जाएगी। यदि हम आध्यात्मिक रूप से शांत रहें तो मृत्यु भी हमारे धैर्य, आत्म शांति, साहस और समादर की भावना का सम्मान करेगी।
और यह भी..
मोटिवेशनल स्पीकर पंकज चतुर्वेदी का कहना है कि हमको हमारी भावनाओं को नियंत्रित नहीं करना है बल्कि संतुलित करना है। भावनाओं के संतुलन से हम अपने व्यक्तित्व को संतुलित कर सकते हैं और संतुलित व्यक्तित्व ही सफलता की गारंटी है। भावनाओं के भंवर में हमारा बौद्धिक संतुलन अति आवश्यक है। यदि हम भावनाओं को नियंत्रित करने के स्थान पर संतुलित करने में सफलता प्राप्त कर लें तो जीवन में समस्त प्रकार के असंतुलन और व्यवधान धीरे-धीरे समाप्त होते चलेंगे और जीवन रूपी इस भवसागर की सारी यात्रा आसानी से पार हो जाएगी।
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