उद्धव को सियासी झटके और केजरीवाल ने क्यों ली राहत की सांस
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19-02-2023 02:38 PM
शुक्रवार 17 फरवरी के दिन एक ओर जहां महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और शिवसेना के सुप्रीमो रहे उद्धव ठाकरे को सर्वोच्च न्यायालय और चुनाव आयोग ने धीरे से जोर का झटका दे दिया है तो वहीं दूसरी ओर आम आदमी पार्टी के संयोजक दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल की पार्टी को महापौर चुनाव के मामले में बहुत बड़ी राहत देते हुए उनके पक्ष में यह फैसला आया है कि मनोनीत पार्षद महापौर के चुनाव में मतदान नहीं कर पायेंगे। आम आदमी पार्टी का इस पर ही ऐतराज था कि मनोनीत पार्षद मतदान में हिस्सा न लें, इससे भाजपा को भी झटका लगा है। उधर छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के नवा रायपुर में होने वाले कांग्रेस के महाधिवेशन की तैयारियां जोरशोर से प्रारंभ हो गई हैं और अधिवेशन स्थल का नाम अविभाजित मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री तथा उत्तरप्रदेश के पूर्व राज्यपाल मोतीलाल वोरा के नाम पर रखने का ऐलान किया गया है। वोरा छत्तीसगढ़ के ही नहीं अपितु अविभाजित मध्यप्रदेश सहित देश के कांग्रेस के बड़े नेता थे। इस प्रकार से उनके नाम पर कार्यक्रम स्थल का नाम रखना छत्तीसगढ़ की धरा पर उन्हें यथोचित सम्मान देना है।
सर्वोच्च न्यायालय ने जहां एक ओर शिवसेना सुप्रीमो उद्धव ठाकरे की पार्टी के द्वारा दायर की गयी याचिका की सुनवाई बड़ी बेन्च को स्थानांतरित करने की अर्जी ठुकराते हुए उन्हें एक प्रकार से झटका दे दिया तो वहीं दूसरी ओर शिवसेना के शिन्दे गुट को इससे थोड़ी राहत मिली, लेकिन महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिन्दे की अगुवाई वाली शिवसेना को शाम होते-होते असली शिवसेना के रुप में मान्यता देते हुए उन्हें तीर कमान चुनाव चिन्ह सौंपने का फैसला चुनाव आयोग ने कर लिया जिससे उद्धव ठाकरे को दोहरा धीरे से जोर का झटका लग गया। इस संबंध में चुनाव आयोग ने जो टिप्पणी की है वह भी उद्धव ठाकरे को परेशानी में डालने वाली है। उद्धव ठाकरे ने इस फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देने का मन बनाया है तो वहीं न केवल महाराष्ट्र बल्कि देश की राजनीति के एक दिग्गज राजनेता राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी सुप्रीमो शरद पवार ने उद्धव को सलाह दी है कि वह नया चुनाव चिन्ह लेकर मैदान में जायें। इसके साथ ही उद्धव ठाकरे गुट को मशाल के निशान के उपयोग की अनुमति दे दी गई है। फिलहाल उद्धव गुट के पास यही चुनाव चिन्ह पार्टी में हुई टूट-फूट के बाद था। चुनाव आयोग के फैसले के बाद भी उद्धव ठाकरे ने दावा किया है कि असली तीर कमान का चिन्ह मेरे पास रहेगा। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि शिवसेना मामले में नवाब रेबिया फैसले की समीक्षा नहीं होगी और 21 फरवरी से ठाकरे-शिंदे गुट के दावे पर मेरिट के आधार पर सुनवाई शुरु होगी। लेकिन चुनाव आयोग के फैसले के बाद फिलहाल तो असली शिवसेना शिन्दे की हो गई है और ठाकरे परिवार का इस पर से एकाधिकार समाप्त हो गया है। चुनाव आयोग ने अपने फैसले में कहा है कि शिवसेना का मौजूदा संविधान अलोकतांत्रिक है, बिना चुनाव के ही पार्टी में पदाधिकारियों की नियुक्तियां की गई हैं। ऐसे में शिवसेना पार्टी के रुप में विकृत होकर एक जागीर के समान हो गई है।
सवाल यह उठता है कि यदि चुनाव आयोग का फैसला लागू हुआ तो फिर महाराष्ट्र की राजनीति और उद्धव ठाकरे को किन हालातों से दो-चार होना पड़ेगा। सबसे बड़ा नुकसान तो यह होगा कि उद्धव ठाकरे के हाथ से शिवसेना की 334 करोड़ रुपये की संपत्ति निकल जायेगी। एडीआर के आंकड़ों के अनुसार 2019-20 में शिवसेना के पास 148.46 करोड़ रुपये की सावधि जमा राशि थी और 146 करोड़ रुपये की अचल सम्पत्ति। अब शिन्दे गुट असली शिवसेना के रुप में जिसे कोषाध्यक्ष के रुप में जिम्मेदारी सौंपेगा उसके हस्ताक्षर को वित्तीय मामलों में लेनदेन के लिए मान्यता मिल जायेगी। महाराष्ट्र राज्य में 82 स्थानों पर शिवसेना के दफ्तर हैं। बताया जाता है कि बाला साहब ने जो वसीयत लिखी थी उसके अनुसार मुम्बई में स्थित मातोश्री के तीन मंजिला भवन की पहली मंजिल जयदेव के नाम तथा दूसरी व तीसरी मंजिल उद्धव ठाकरे के नाम पर कर दी थी। लेकिन ग्राउंड फ्लोर को शिवसेना के लिए रखा था, अब उद्धव ठाकरे के पास से मातोश्री इमारत के ग्राउंड फ्लोर का मालिकाना हक चला जायेगा। शिन्दे गुट के पास 40 विधायक हैं जबकि ठाकरे गुट के पास 15 विधायक हैं और अब संभावना इस बात की है कि चुनाव चिन्ह शिन्दे गुट के पास जाने से कुछ और विधायक पाला बदल सकते हैं। शिन्दे गुट के पास 13 सांसद और उद्धव के पास 5 सांसद हैं इसलिए वहां भी पाला बदल की संभावना है। तीर कमान से शिन्दे को लाभ मिलेगा क्योंकि महाराष्ट्र की राजनीति में तीर कमान बाला साहब की शिवसेना का अरसे से प्रतीक बना हुआ है। दूसरी ओर इस फैसले के बाद उद्धव गुट को तीर कमान चुनाव चिन्ह के खिलाफ चुनाव प्रचार करना पड़ेगा। दिल्ली के महापौर के चुनाव को लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने बड़ा फैसला करते हुए कहा है कि उपराज्यपाल की ओर से मनोनीत 10 पार्षद मेयर या डिप्टी मेयर के चुनाव में वोट नहीं दे सकते। आम आदमी पार्टी की ओर से दाखिल याचिका पर प्रधान न्यायाधीश डी.वाय. चन्द्रचूड की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा है कि मेयर का चुनाव होने के बाद निवार्चित मेयर डिप्टी मेयर के चुनाव की अध्यक्षता करेंगी। कोर्ट ने 24 घंटे के भीतर अधिसूचना जारी करने व पहली बैठक में मेयर का चुनाव करवाने के निर्देश दिये हैं। इस निर्णय के बाद आम आदमी पार्टी नेताओं के हौसले हिमालयीन उछाल मारने लगे हैं।
और अब विकास ढूंढो यात्रा
मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के द्वारा निकाली जा रही विकास यात्रा के तोड़ में अब कांग्रेस एक नई यात्रा निकालने जा रही है और उसका नाम ‘‘विकास ढूंढो यात्रा‘‘ है। भोपाल के दक्षिण-पश्चिम विधानसभा क्षेत्र से इसका आगाज किया जायेगा। इस यात्रा में कांग्रेस नेता आम लोगों को साथ लेकर क्षेत्र का विकास देखने निकलेंगे। पूर्व मंत्री विधायक पी.सी. शर्मा ने सरकारी यात्रा में भाजपा के झंडे व चुनाव चिन्ह को लेकर भी आपत्ति जताई है। कांग्रेस की विकास ढूंढो यात्रा के संबंध में पूछे जाने पर शर्मा का कहना है कि सरकारी विकास यात्रा में थोकबंद भूमिपूजन घोषणायें की जा रही हैं और इस यात्रा में हमारी विधायक निधि से कराये गये कामों को भी भाजपा नेता अपने काम बता रहे हैं। शर्मा को एतराज है कि कमलनाथ सरकार के कामों को भी शिवराज सरकार अपने काम बता रही है। हमने संजीवनी क्लीनिक की शुरुआत की थी लेकिन इसे अब भाजपा सरकार का काम बताया जा रहा है।
और यह भी
चुनाव आयोग ने उद्धव ठाकरे बनाम एकनाथ शिन्दे गुटों के दावों पर फैसला सुनाते हुए जो कहा है उसका आने वाले समय में व्यापक असर देखने को मिल सकता है। भले ही लक्ष्य उद्धव ठाकरे रहे हों लेकिन निशाना कुछ अन्य विपक्षी दलों पर भी साधा गया है ऐसी प्रतिध्वनि इस फैसले से निकलती है। चुनाव आयोग ने अपने आदेश के द्वारा व्यक्ति केंद्रित एवं भाई-भतीजावाद से चलने वाली अन्य पार्टियों को भी आगाह किया है। देश के कुछ राज्यों में कई राजनीतिक दलों में ऐसी ही व्यवस्था है और यदि उन्होंने अपने आप में सुधार नहीं किया तो आयोग उन्हें भविष्य में निशाना बना सकता है। व्यक्तिवादी पार्टियों को इससे एक खतरा पैदा हो गया है और ऐसी पार्टियों में तामिलनाडु में स्टालिन की डीएमके, उत्तरप्रदेश में समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव तथा बहुजन समाज पार्टी की मायावती, तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी, उमर अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस, तेलंगाना के मुख्यमंत्री के.सी.आर की पार्टी और बिहार में लालू प्रसाद यादव का राष्ट्रीय जनता दल आदि शामिल हैं। अब इस फैसले के बाद इन व्यक्ति केंद्रित पार्टियों को अपने संविधान में बदलाव कर लोकतांत्रिक तरीके से संचालन करना पड़ सकता है।
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