प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी G7 समिट के लिए इटली पहुंच गए हैं। उनका प्लेन रात 3:30 बजे अपुलिया के ब्रिंडसी एयरपोर्ट पर लैंड हुआ। यहां वे इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की समेत कई वर्ल्ड लीडर्स से मुलाकात करेंगे। तीसरी बार भारत का प्रधानमंत्री बनने के बाद ये नरेंद्र मोदी का पहला विदेश दौरा है।
मोदी ने एक पोस्ट में लिखा कि G7 समिट में हिस्सा लेने के लिए इटली पहुंच गया हूं। विश्व नेताओं के साथ सार्थक चर्चा में शामिल होने के लिए उत्सुक हूं। साथ मिलकर, हमारा लक्ष्य वैश्विक चुनौतियों का समाधान करना और उज्जवल भविष्य के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना है।
उन्होंने समिट के लिए रवाना होने से पहले कहा था कि उन्हें इस बात की खुशी है कि वो पहले विदेश दौरे पर इटली जा रहे हैं। G7 देशों की बैठक में पहली बार कैथोलिक चर्च के प्रमुख पोप फ्रांसिस भी शामिल होने वाले हैं। वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बाइडेन और तुर्किये के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन समेत कई देशों के हेड से मुलाकात भी करेंगे।
क्या है G7 संगठन
1975 में बना ये संगठन दुनिया के सबसे अमीर देशों का समूह है। इसमें अमेरिका, जापान, जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस, इटली और कनाडा शामिल हैं। ये देश हर साल एक समिट में दुनिया के अहम मुद्दों पर चर्चा करते हैं। पिछली बार G7 समिट जापान में हुआ था।
इसमें चीन के कर्ज जाल और इंडो-पैसिफिक में बढ़ते दबदबे पर चर्चा की गई थी। भारत अब तक 11 बार इस समिट में शामिल हो चुका है। सबसे पहले 2003 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को इस समिट के लिए फ्रांस ने बुलाया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2019 से लगातार इस समिट की बैठकों में शामिल हो रहे हैं।
G7 की बैठकों में जाने से भारत को चीन और रूस विरोधी बनाने की कोशिश हो रही है
नहीं, भारत की फॉरेन पॉलिसी काफी क्लियर है। भारत की पॉलिसी हमेशा मल्टी एलाइन्मेंट की रही है, यानी भारत ने कभी भी किसी एक गुट का समर्थन नहीं किया है।
पश्चिमी देशों के साथ भी भारत का सहयोग है। भारत के पश्चिमी देशों के साथ इकोनॉमिक संबंध अच्छे हैं। ये देश भी भारत की तरह लोकतांत्रिक हैं। वहीं, भारत के ज्यादातर स्किल्ड वर्कर काम और पढ़ाई के लिए अमेरिका जाते हैं। इसके बावजूद भारत अमेरिका के दबाव में नहीं आता है।
इसके अलावा भारत सैंक्शन यानी दूसरे देशों पर पाबंदियां लगाने की अमेरिका और पश्चिमी देशों की पॉलिसी में भी शामिल नहीं होता है।
यूक्रेन से 10 साल का सिक्योरिटी एग्रीमेंट साइन करेगा अमेरिका
न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक, इस बार G7 देशों का एजेंडा रूस-यूक्रेन और इजराइल-हमास जंग है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की के साथ 10 साल के सिक्योरिटी एग्रीमेंट पर साइन करने वाले हैं। ये एग्रीमेंट रूस के खिलाफ जंग में अहम भूमिका निभाएगा।
एक तरफ जहां पश्चिमी देश रूस के खिलाफ इटली में एकजुट हो रहे हैं, वहीं रूस की न्यूक्लियर सबमरीन युद्धाभ्यास के लिए अमेरिका के पड़ोसी देश क्यूबा में हवाना हार्बर पर पहुंच चुकी है। ये जगह अमेरिका के मियामी से सिर्फ 367 किलोमीटर दूर है।
ये पहली बार नहीं जब भारत को इस संगठन ने गेस्ट के तौर पर बुलाया हो। भारत सबसे पहले 2003 में इस समिट में शामिल हुआ था। इसके लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी फ्रांस गए थे।
मेजबान मेलोनी नमस्ते से लीडर्स का स्वागत कर रहीं
यूक्रेन को 50 बिलियन डॉलर का लोन देंगे पश्चिमी देश
वहीं, समिट में सबसे ज्यादा फोकस रूस पर रहने वाला है। इसके लिए जेलेंस्की भी इटली पहुंचें हैं। G7 समिट में पश्चिमी देशों ने यूक्रेन को 50 बिलियन डॉलर यानी 41 लाख करोड़ रुपए का लोन देने की घोषणा की है।
ये लोन पश्चिमी देशों में जब्त किए गए 200 बिलियन डॉलर की रूसी संपत्ति से चुकाया जाएगा। ब्रिटेन ने रूस पर नए प्रतिबंधों की घोषणा की है, जिसमें मॉस्को के स्टॉक एक्सचेंज भी शामिल है। उसने रूस के जहाजों पर बैन लगा दिया है।