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प्लेन प्रकरण: दुराग्रह की दीवारें दोनो तरफ हैं...

Updated on 12-02-2021 04:11 PM
महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे सरकार द्वारा प्रदेश के राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी को यात्रा के लिए शासकीय विमान देने से इंकार का मामला राजनीतिक रूप से गर्माता जा रहा है, वहीं इस घटना ने देश के कई राज्यों में राज्यपालों और मुख्यमंत्रियों के बीच तनावपूर्ण रिश्तों की कहानी को फिर रेखांकित किया है। किसी भी राज्य के इन दो शीर्ष प्रमुखों के बीच विवाद इस निचले स्तर पर पहुंचने के पीछे राजनीतिक दुराग्रह तो है ही खुद राज्यपालों की भूमिका और बर्ताव भी उतना ही जिम्मेदार है। ऐसे विवाद उन राज्यों में ज्यादा हैं, जहां राज्य में ‍विपक्षी पार्टियों की सरकारें हैं और जहां राज्यपाल अपनी संवैधानिक मर्यादाअों के परे जाकर एक एजेंट की भूमिका अदा करने लगते हैं। हालांकि इसका अर्थ यह नहीं कि राज्यपाल कोश्यारी को यात्रा के लिए सरकारी विमान न देने का ठाकरे सरकार का फैसला सही हैं। क्योंकि राजनीतिक अथवा व्यक्तिगत मतभेदों  के बाद भी संवैधानिक पद का सम्मान कायम रखना हर सरकार से अपेक्षित है। 
राज्यपाल कोश्यारी प्रकरण में दो कहानियां सामने आ रही हैं। पहला तो यह राज्यपाल राज्य सरकार दवारा उन्हें विमान उपलब्ध कराने से इंकार के बाद भी सरकारी प्लेन में जा बैठे। वहां राज्यपाल को  बताया गया कि सरकार ने उन्हें शासकीय विमान से उड़ने की अनुमति नहीं दी है। अंतत: उन्हें उतरकर तुरंत एक निजी विमान से गंतव्य  तक जाना पड़ा। इस घटना पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए राज्य में मजबूरी में विपक्ष में बैठी भाजपा के नेता प्रतिपक्ष और पूर्व मुख्यमं‍त्री देवेन्द्र फडणवीस ने कहा कि राज्यपाल को विमान से उतारा जाना उनका अपमान है। फडणवीस ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा कि राज्यपाल कोई आम शख्स नहीं, वह संवैधानिक पद पर हैं। यह अहंकारी सरकार है। उधर ठाकरे सरकार का बचाव करते हुए शिवसेना सांसद संजय राउत ने कहा कि ''पूरी महाराष्ट्र सरकार और मुख्यमंत्री राज्यपाल का सम्मान करते हैं। जहां तक मेरी जानकारी है वह चमोली जा रहे थे। संवैधानिक पद पर होते हुए कोई निजी यात्रा के लिए सरकारी विमान का इस्तेमाल नहीं कर सकता है। वह कोई निजी यात्रा पर जाना चाहते हैं तो निजी विमान का इस्तेमाल करना चाहिए।''
दूसरी कहानी यह है कि राज्यपाल सरकारी प्लेन से देहरादून होकर मसूरी जाना चाहते थे। वहां उन्हे आईएएस प्रशिक्षण सत्र के समापन समारोह में शामिल होना था। इसके लिए उन्होंने सरकार से विमान उपलब्ध कराने को कहा था। राजभवन सूत्रों के मुताबिक राज्यपाल के दौरे के लिए शासकीय विमान की मंजूरी देने बाबद सूचना सरकार को 2 फरवरी को ही दे दी गई थी। लेकिन राज्य सरकार के इंकार  की जानकारी राज्यपाल को गुरूवार को विमान में बैठने के बाद दी। बताया जाता है कि यह फ्लाइट मुख्यपमंत्री उद्धव ठाकरे ने आदेश पर रोकी गई। 
समझना कठिन है कि अगर ठाकरे सरकार ने राज्यपाल कोश्यारी को सरकारी विमान के इस्तेमाल की मंजूरी देने से इंकार कर ‍िदया था तो फिर कोश्यारी सरकारी विमान में जाकर बैठे ही क्यों? क्या वो खुद भी इसे मुद्दा बनाना चाहते थे? क्योंकि उनके और राज्य की महाआघाडी सरकार के रिश्ते शुरू से ही तनावपूर्ण चल रहे हैं। लेकिन अगर यह दावा सही है कि सरकार ने उन्हें प्लेन सिर्फ इस बिना पर देने से इंकार किया कि वो निजी यात्रा पर जाना चाहते थे तो यह नियमों के पालन से ज्यादा राजनीतिक शरारत ज्यादा लगती है। 
महाराष्ट्र ही क्यों, देश के ज्यादातर उन राज्यों में राज्यपाल और मुख्यमंोत्रियों के रिश्तों में आए दिन तलवारें खिंचती रहती हैं, जहां गैर भाजपाई या गैर एनडीए सरकारें हैं। महाराष्ट्र के अलावा पश्चिम बंगाल में तो राज्यपाल जगदीप धनकड़ और मुख्येमंत्री ममता बैनर्जी के बीच तो खुली जंग छिड़ी है। पिछले ही माह पुदुच्चेरी में उप राज्यपाल किरण बेदी के खिलाफ इस केन्द्र शासित प्रदेश की नारायणसामी सरकार के मंत्रियों ने पांच घंटे तक धरना दिया था। कुछ ऐसा ही हाल केरल में भी है, जहां राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान और लेफ्टे सरकार के बीच तनातनी चलती रहती है।  
राज्यपाल प्रदेश में केन्द्र सरकार का प्रतिनिधि होता है। उसकी नियुक्ति केन्द्र की सिफारिश पर राष्ट्रपति करते हैं। राज्यपाल राज्य का संरक्षक भी होता है। लेकिन कई बार राज्यपाल  अपनी संवैधानिक भूमिका के साथ-साथ राजनीतिक  भूमिका भी इतनी अमर्यादित तरीके से अदा करते दिखते हैं, जिससे यह संदेश जाता है कि वो प्रदेश के संवैधानिक प्रमुख हैं या किसी पार्टी विशेष के एजेंट। इससे राज्यपाल पद की गरिमा घटती  ही है, भले ही सम्बन्धित व्यक्ति या पार्टी को इससे ‍निजी फायदे पहुंचते हों। दूसरे, ऐसी  घटनाअोंसे यह संदेश भी जाता है कि राज्यपाल परोक्ष रूप से स्वयं ही मुख्यहमंत्री बनकर काम करना चाहते हैं, जबकि उनकी भूमिका प्रदेश के संरक्षक की है न कि कार्यकारी प्रमुख की। राज्यपाल ऐसा संवैधानिक  पद है और जिसका काम राज्य  की लोकतांत्रिक ढंग से चुनी हुई सरकार के फैसलों का सम्मान और विवेकपूर्ण तरीके से अनुमोदन करना है। यदि राज्य सरकार अलोकतांत्रिक तरीके से काम करती है तो राज्यपाल के पास उसे बर्खास्त करने का अधिकार  भी है। 
महाराष्ट्र का विमान प्रकरण यूं तो बहुत छोटा है। सरकारी विमान पर राज्य सरकार का अधिकार होता है। लेकिन वह पद का सम्मान करते हुए और सौहार्दपूर्ण रिश्तों को ध्यान में रखते हुए राज्यपाल को सरकारी विमान से आने जाने की इजाजत दे देती है। हालांकि अभी तक गवर्नरों को अपना विमान रखने देने की इजाजत देने  की मांग नहीं उठी है, लेकिन कोश्यारी  प्रकरण के बाद यह मुद्दा भी उठ सकता है कि जब मुख्यधमंत्री  के पास शासकीय विमान हो सकता है तो यही सुविधा राज्यपालों को क्यों नहीं? हो सकता है कि ‘तुम डाल-डाल तो हम पात-पात’ की तर्ज पर केन्द्र सरकार भविष्य में कोई ऐसा प्रावधान कर भी दे।
लेकिन महाराष्ट्र में जो हुआ, उससे ऐसा लगता है कि यह राज्यपाल और सीएम ठाकरे के बीच जारी टकराव को और हवा देने की कोशिश है। लोकतांत्रिक सदाशयता के ‍िहसाब से सरकारी प्लेन उपलब्ध कराते समय यह बारीकी से नहीं देखा जाता कि वह शासकीय कार्य से मांगा गया है या अथवा निजी काम के लिए। अमूमन कोई भी मुख्यमंत्री महज एक सरकारी प्लेन की वजह से राज्य के संवैधानिक प्रमुख से टकराव बढ़ाने  की शायद ही सोचता है। लेकिन  शिवसेना ने भाजपा के आरोपों का जवाब जिस अंदाज में दिया है, उसके पीछे लगता है कि राजनीतिक मंशाएं और बदले की कार्रवाई ज्यादा है। शिवसेना के संजय राउत ने एक तरफ राज्यपाल पद के सम्मान की बात कही तो दूसरी  तरफ राज्यपाल पर कैबिनेट के अपमान का आरोप भी लगा दिया। राउत ने कहा कि 'राज्यपाल  ने एक साल से 12 नाम (विधान परिषद में मनोनयन के लिए) रोककर रखे हैं, जोकि गैर कानूनी है, संविधान के खिलाफ है। यह 10 मिनट का काम है, फाइल खोलो और साइन कर दो। आपको 15 मिनट फ्लाइट में बैठना पड़ा तो आपको लगता है कि यह ठीक नहीं हुआ, यह अपमान हुआ, लेकिन यदि कैबिनेट ने एक प्रस्ताव भेजा हुआ है तो आप रोककर रखे हैं, यह भी कैबिनेट का अपमान है।'' गौरतलब है कि जो नाम राज्यपाल ने रोक रखे हैं, उनमें एक नाम भाजपा छोड़ पिछले दिनो एनसीपी मे गए नेता एकनाथ खडसे का भी है। जो अब एनसीपी के टिकट पर विधान परिषद जाना चाहते हैं। खडसे और फडणवीस का छत्तीस का आंकड़ा जगजाहिर है। 
यह भी सही है कि राज्यपाल कोश्यारी ने कई कदम ऐसे उठाए, जिससे ठाकरे सरकार तिलमिलाई हुई है और जिनको लेकर कई प्रश्नचिह्न हैं। उधर पश्चिम बंगाल के राज्यपाल धनखड़ भी अपने बयानों से मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी और उनकी सरकार को कटघरे में खड़े करते रहते हैं। ऐसे विवादित और विवादप्रिय राज्यपालों के नामो की सूची और भी लंबी हो सकती है, क्योंकि ऐसा पहले भी होता रहा है। हालांकि शीतयुद्ध के बाद भी ज्यादातर राज्यपाल और मुख्यमंत्री लक्ष्मण रेखाअों का पालन करते रहे हैं। यही उनसे अपेक्षित भी है। 
अजय बोकिल,लेखक                                                  ये लेखक के अपने विचार है I
वरिष्ठ संपादक, ‘राइट क्लिक’
वरिष्ठ संपादक,‘सुबह सवेरे’ 

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