व्यक्ति का दिमाग बड़ा जिज्ञासु होता है उसमें अलग ही उत्सुकता होती है और इसलिए वह सदैव क्रियाशील रहता है। क्रियाशीलता के चलते उसकी चाहना बनती है, उसे जो चाहत होती वह उसे पाना चाहता है यदि उसकी चाहत पूरी हो जाती है तो बड़ी संतुष्टि महसूस करता है और यदी चाहत पूरी नहीं हो तो वह विचलीत होकर मनन करने में लग जाएगा मन ही मन दुख मनाएगा। दिमाग में अच्छे विचार हैं तब तक तो ठीक है यदि थोड़ी भी बुरे विचार हैं तो फिर उसका दिमाग कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार हो जाएगा। ऐसी सभी स्थिति के लिए एक ही मूल मंत्र है सबूरी अर्थात सब्र। सब्र हे तो व्यक्ति का दिमाग संतुलित रहेगा संतुष्टि महसूस करेगा। यदि हमारा कोई काम नहीं होता है तो हमेशा बड़े बुजुर्ग कहते हैं बेटा सब्र कर, सब ठीक हो जाएगा। जब व्यक्ति की लालसा बहुत ज्यादा बढ़ने लगती है और उसके लिए कभी-कभी वह गलत रास्ते पर भी चला जाता हैं, गलत रास्ते पर जाने से पहले लालसा को कंट्रोल कर मन में संतुष्टि रखले तो गलत रास्ते पर जाने से बच जाएगा। सबुरी याने सब्र करने वाला हमेशा सुखी रहता है ठंडे दिमाग में रहता है संतुष्ट रहता है इसलिए उसे तनाव नहीं होता। अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्)
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