संसद भवन याने पार्लियामेंट को हम मंदिर मानते हैं पर वहां कितने शर्मनाक वाक्य होते हैं जिस पर पूरा देश चुप बैठकर देखता है। वहां उपस्थित सांसद हजारों लाखों वोट से जीतकर आता है याने आप सोचो कितने लोग उस पर उम्मीद रखते हैं क्या इसलिए, कि वहां जाकर जोर-जोर से चिल्लाकर बाते करें। किसी से मारा पीटी करें। आसंदी के सामने जाकर उपद्रव करें। एक प्रश्न यह भी है कि उस बंदे को जिताने वाले कौन लोग हैं। हमे उन्हे उतारने का प्रयास करें। यदी आदमी स्वयं नहीं बदलता है तो उसे जनता ने बदलना चाहिए या फिर संसद भवन को मंदिर नही उसे अखाड़ा करें। कितने घालमेल होते हैं, झूठ बोले जाते हैं, सांसद या विधायक कितना कटु शब्द आपस में बोलते हैं। कभी-कभी तो देखकर शर्म आने लगती है कि यह हमारे नेता हैं यह हमारे राष्ट्रीय मंत्री है। और यही हाल हमारे विधानसभा भवन के हैं जितने भी स्टेट है उनके सभी के विधानसभा भवन में आए दिन कुश्तिया होती रहती है। जरा सोचो कौन है वह लोग जो पार्लियामेंट और विधानसभा भवन में इस प्रकार की हरकते करते या करवाते हैं। क्या ये जन सेवा या देश सेवा कर पाएंगे। बहुत बचो उनसे। किसी को भी चुनाव जीताते वक्त उसकी शालीनता उसके परिवार और उसका व्यवहार का आंकलन जरूर करें। भिया और पट्ठा वाद से दूर रहें। और किसी के डराने धमकाने में ना आए। अपना विवेक रखे। आपको मतदान का अधिकार है उसका पूरे दिमाग और दिल से उपयोग करें।
अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्) ये लेखक के अपने विचार है I
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