पंचायत चुनाव: मध्यप्रदेश में गरमाती ओबीसी की सियासत
Updated on
20-12-2021 03:24 PM
सुप्रीम कोर्ट द्वारा मध्यप्रदेश में स्थानीय निकायों शहरी व ग्रामीण यानी पंचायत एवं नगरीय निकाय में ओबीसी आरक्षण खत्म करने के फैसले के बाद अन्य पिछड़े वर्गों की सियासत को लेकर राजनीति में उबाल आ गया है। भाजपा कांग्रेस पर आरोप लगा रही है कि उसके कारण ही यह आरक्षण खत्म हुआ है। कांग्रेस अब बचाव की मुद्रा में आ गई है और वह सफाई देकर इसका दोष भाजपा की राज्य सरकार के सिर पर मढ़ने की कोशिश कर रही है। मध्यप्रदेश में अन्य पिछड़े वर्ग की आबादी लगभग 50 प्रतिशत के आसपास होने का दावा किया जाता है, यही कारण है कि भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दल इन वर्गों के बीच अपनी पैठ बिठाने का कोई अवसर हाथ से नहीं जाने देते। जिस पार्टी के तर्क इन वर्गों के मतदाताओं के गले उतरेंगें उस पार्टी की 2023 के विधानसभा चुनाव में भी पौ बारह होने की संभावना को नकारा नहीं जा सकता। पंचायत चुनाव को लेकर याचिका लगाने वाले नेताओं की अदालत में पैरवी करने वाले कांग्रेस सांसद विवेक तन्खा ने सलाह दी है कि दुष्प्रचार करने वाले अपना दिमाग कानून में लगायें ताकि इन वर्गों का संवैधानिक अधिकार फिर से उन्हें मिले और आरक्षरण फिर से बहाल हो सके। हम उनको यदि वे चाहेंगे तो पूरा सहयोग करने को तैयार हैं क्योंकि ओबीसी के हम पक्षधर हैं और उनका भला चाहते हैं। इसके उलट नगरीय विकास एवं आवास मंत्री भूपेन्द्र सिंह ने तन्खा को आइना दिखाते हुए कहा कि उन्होंने 50 प्रतिशत से अधिक ओबीसी आरक्षण का मुद्दा न उठाया होता तो सुप्रीम कोर्ट गवली केस में दिए गए सिद्धान्त का उल्लेख नहीं करती और न ही ओबीसी आरक्षण निरस्त करती। उन्होंने आरोप लगाया कि आरक्षण पर रोक कांग्रेस का षडयंत्र है। कोई भी न्यायालय याचिकाकर्ता की प्रार्थना पर फैसला देता है और यदि तन्खा चाहते तो सुप्रीम कोर्ट से महाराष्ट्र केस से अलग केवल रोटेशन सिस्टम पर विचार करने का निवेदन कर सकते थे। अब तन्खा दोनों हाथों में लड्डू नहीं ले सकते।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर विचार करने के बाद राज्य निर्वाचन आयोग ने पंचायत चुनावों में 70 हजार ओबीसी के लिए आरक्षित पदों पर पंचायत चुनाव स्थगित कर दिए हैं तथा सवा तीन लाख पदों पर चुनाव तय कार्यक्रम के अनुसार ही होंगे। इसके साथ ही आयोग ने राज्य सरकार से कहा है कि वह सात दिन में ओबीसी पदों को सामान्य कर अधिसूचना जारी करे ताकि इन पदों पर भी साथ में चुनाव कराये जा सकें। राज्य निर्वाचन आयुक्त बी.पी. सिंह ने कहा है कि ओबीसी के आरक्षित पदों पर चुनाव प्रक्रिया रोक दी गयी है और बाकी सामान्य तथा एससी और एसटी के पदों पर चुनाव प्रक्रिया जारी रहेगी। शेष पदों पर तीन चरणों में 6 और 28 जनवरी तथा 16 फरवरी को तय कार्यक्रम के अनुसार चुनाव होंगे। जिला पंचायत सदस्यों के 155, जनपद पंचायत सदस्यों के 1273 , सरपंच के 4058 तथा पंचों के 64 हजार 353 पद ओबीसी के लिए आरक्षित हैं जिन पर निर्वाचन प्रक्रिया रोक दी गयी है।
आरोप प्रत्यारोप की सियासत
पंचायत चुनाव में आरक्षण को लेकर एक बार फिर से ओबीसी की सियासत रंग दिखाने लगी है। ओबीसी राजनीति के मुद्दे पर भाजपा और कांग्रेस काफी समय से आमने-सामने हैं और दोनों ही अपने आपको इन वर्गों का सबसे बड़ा हिमायती सिद्ध करने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं छोड़ रहे। कांग्रेस की कमलनाथ सरकार ने ओबीसी आरक्षण 27 प्रतिशत कर दिया था। अब भाजपा का आरोप है कि आरक्षण पर प्रहार के लिए कांग्रेस ही दोषी है। मंत्री भूपेंद्र सिंह ओबीसी वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण फिर से दिलाने की रणनीति पर मंथन कर रहे हैं। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सांसद विष्णु दत्त शर्मा ने आरोप लगाया है कि पंचायत चुनावों को लेकर कांग्रेस नेताओं की नकारात्मक भूमिका ने स्पष्ट कर दिया है कि कांग्रेस योजनाबद्ध तरीके से ओबीसी के विरुद्ध षडयंत्र कर रही है। पहले नौकरी में आरक्षण को लेकर और अब पंचायत चुनाव के बहाने आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक पटल पर पिछड़ा वर्ग को नुकसान पहुंचा रही है। कांग्रेस नेताओं के लिए चुनाव प्रक्रिया पर सवाल उठाना केवल बहाना था। पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने आरोप लगाया है कि सरकार ने कोर्ट में मध्यप्रदेश का केस सही तरीके से पेश नहीं किया, हम आरक्षण समाप्त करने का कड़ा विरोध करते हैं क्योंकि मध्यप्रदेश का सही केस नहीं रखने के कारण ऐसा फैसला आया है। कांग्रेस के एक बड़े ओबीसी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री तथा पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव ने लगातार तीन ट्वीट कर कहा है कि भाजपा का आरक्षण विरोधी चेहरा जनता के सामने आ गया है। यादव ने कहा है कि प्रदेश के ओबीसी वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण देने का मामला हो या प्रदेश में ओबीसी आरक्षण समाप्त करने का भाजपा एवं आरएसएस हमेशा से दलित, आदिवासी और ओबीसी के आरक्षण विरोधी रहे हैं। सरकार ने कोर्ट में ओबीसी का प्रामाणिक डाटा नहीं दिया इसलिए यह फैसला आया। मुख्यमंत्री सुप्रीम कोर्ट को ओबीसी का डाटा दें। उच्च शिक्षा मंत्री डाॅ. मोहन यादव ने कहा है कि कांग्रेस नेताओं ने अन्य पिछड़ा वर्ग के उत्थान में हमेशा से ही अडंगे लगाये हैं। त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण को स्थगित कराना यह दर्शाता भी है। उनका आरोप था कि कांग्रेस सरकार ने 15 माह के कार्यकाल में मध्यप्रदेश विधानसभा व कोर्ट में 27 प्रतिशत पिछड़ा वर्ग की जनसंख्या की गलत जानकारी देकर चुनौतियां पैदा कीं और अब भी यही काम कर रही है। कमलनाथ सरकार में पंचायत मंत्री रहे और कांग्रेस की ओबीसी की राज्य समन्वय समिति के संयोजक कमलेश्वर पटेल का कहना है कि सरकार ने एक बार फिर ओबीसी विरोधी चेहरा पेश किया है, अगर सरकार जोरदार तरीके से कोर्ट में ओबीसी वर्ग का पक्ष रखती तो आरक्षण समाप्त करने की नौबत नहीं आती।
और यह भी
मध्यप्रदेश में सबसे पहले ओबीसी आरक्षण की व्यवस्था तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के पहले कार्यकाल में की गयी थी। इसके लिए उन्होंने महाजन आयोग का गठन किया था जिसकी सिफारिशों के आधार पर इन वर्गों मे आने वाली जातियों व समूहों को चिन्हित किया गया था। कांग्रेस के ही पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के कार्यकाल में इन वर्गों का आरक्षण शहरी व ग्रामीण निकायों के चुनाव में किया था। भाजपा ने प्रदेश में ओबीसी के महत्व को समझते हुए इन्हें अपनी राजनीति का केन्द्र बिन्दु बनाया और उमा भारती का चेहरा भावी मुख्यमंत्री के रुप में आगे कर 2003 का विधानसभा चुनाव लड़ा और भारी-भरकम जीत का रिकार्ड बनाया। उसके बाद 15 साल तक लगातार भाजपा सत्ता में रही और उसने इन्हीं वर्गों के उमा भारती के त्यागपत्र देने के बाद बाबूलाल गौर और बाद में शिवराज सिंह चैहान को मुख्यमंत्री बनाया। 2018 में कांग्रेस बहुमत के पास पहुंची और कमलनाथ मुख्यमंत्री बने। दलबदल के कारण 15 साल बाद आई उनकी सरकार 15 माह में गिर गयी और भाजपा ने पुनः पिछड़े वर्ग के शिवराज सिंह चैहान को मुख्यमंत्री बनाया है।
अरुण पटेल,लेखक, प्रबंध संपादक, सुबह सवेरे (ये लेखक के अपने विचार है )
महाराष्ट्र में भाजपानीत महायुति और कांग्रेसनीत महाविकास आघाडी के लिए इस बार का विधानसभा चुनाव जीतना राजनीतिक जीवन मरण का प्रश्न बन गया है। भाजपा ने शुरू में यूपी के…
लोकसभा विधानसभा चुनाव के परिणाम घोषित हो चुके हैं।अमरवाड़ा उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी कमलेश शाह को विजयश्री का आशीर्वाद जनता ने दिया है। लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 29 की 29 …
छत्तीसगढ़ के नीति निर्धारकों को दो कारकों पर विशेष ध्यान रखना पड़ता है एक तो यहां की आदिवासी बहुल आबादी और दूसरी यहां की कृषि प्रधान अर्थव्यस्था। राज्य की नीतियां…
भाजपा के राष्ट्रव्यापी संगठन पर्व सदस्यता अभियान में सदस्य संख्या दस करोड़ से अधिक हो गई है।पूर्व की 18 करोड़ की सदस्य संख्या में दस करोड़ नए सदस्य जोड़ने का…
छत्तीसगढ़ राज्य ने सरकार की योजनाओं और कार्यों को पारदर्शी और कुशल बनाने के लिए डिजिटल तकनीक को अपना प्रमुख साधन बनाया है। जनता की सुविधाओं को ध्यान में रखते…
वर्तमान समय में टूटते बिखरते समाज को पुनः संगठित करने के लिये जरूरत है उर्मिला जैसी आत्मबल और चारित्रिक गुणों से भरपूर महिलाओं की जो समाज को एकजुट रख राष्ट्र…