प्रकृति में हम इकोसिस्टम के एक अंश है जिस तरह और जीव इकोसिस्टम के हिस्से हैं उसी तरह इंसान का कार्य फल फूल, अनाज, साग सब्जी, दूध, मांस मटन, पर जीवो को खाने के कार्य और उसे मल के रूप में परिवर्तित कर प्रकृति में छोड़ना है। यह बात अलग है कि इंसान को बुद्धि प्राप्त है उसी से वह अपनी जरूरत के अनुसार विकास, अपनी सुरक्षा और आवश्यकता की पूर्ति करता हैं। वह अपनी कल्पना और उसे साकार करने के लिए कुछ ना कुछ करता रहता हैं। बड़े-बड़े शहर और इमारतें बना ली सुविधा की हर चिज और आवागमन के साधन बना लिये, चांद मंगल पर जाने की तैयारी हो गई, पर देखिए प्रकृति का स्वभाव एक वायरस छोड़ दिया और हमें हमारी हैसियत दिखा दि। हम उसके के सामने कुछ नहीं है हमने लाख मेडिकल विज्ञान में तरक्की कर ली, शरीर के अंगों को जोड़ना और उनकी जगह दूसरे अंग लगाना सीख लिया पर वायरस ने हमें बता दिया कि अभी भी हमें बहुत कुछ सीखना बाकी है। सोचिए हमारा जीवन क्या है, क्यों है, यह समझे और कैसे जीवन बिताना है इस पर ध्यान दें। प्रकृति के आगे हम कुछ नहीं है इसलिए प्रकृति के साथ रहो, प्रकृति के साथ जियो इसी में भलाई है।
अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्) ये लेखक के अपने विचार है I
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