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हेट स्पीच पर स्वयं मामला दर्ज करने के आदेश

Updated on 01-05-2023 01:23 PM
लगता है इन दिनों लोगों को अब न्याय मिलने की उम्मीद सरकारों से कम होती जा रही है और उनका विश्वास  न्यायपालिका में अधिक बढ़ रहा है। उन्हें लगने लगा है कि अब न्यायपालिका का दरवाजा खटखटाये बिना कोई बात बनेगी नहीं। 2023 और 2024 का साल चुनावों का साल है और चुनावी मौसम में राजनेताओं के बोल शाब्दिक मर्यादा की सीमारेखा को तार-तार कर देते हैं। कई धार्मिक आयोजनों के नाम पर भी हेट स्पीच याने भड़काऊ भाषणों की भरमार होने लगी है, ऐसे में देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को आदेश दिया है कि भले ही शिकायत न हो लेकिन ऐसे मामलों में स्वतः संज्ञान लेकर एफआईआर दर्ज करें। इस प्रकार उन्हें स्वतः संज्ञान लेने का जो आदेश दिया गया है उसमें यह साफ कहा गया है कि शिकायत न भी आये तो भी खुद संज्ञान लेकर कार्रवाई करें। वर्ष 2022 में शीर्ष अदालत ने इस तरह का आदेश  दिल्ली, उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड सरकारों को दिया था लेकिन अब शुक्रवार  28 अप्रैल को इस आदेश का दायरा सभी प्रदेशों  तक बढ़ा दिया गया है। कोर्ट ने कहा है कि देश के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को बनाये रखने के लिए धर्म की परवाह किए बिना गलती करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जाना चाहिए। पिछले कुछ माहों में इस प्रकार की घटनायें बढ़ी हैं जिसमें धार्मिक आयोजनों में भी उत्तेजात्मक भाषण दिए जाते हैं। इसलिए सर्वोच्च न्यायालय का यह आदेश काफी महत्वपूर्ण हो जाता है। उल्लेखनीय है कि धर्म विशेष या पार्टी विशेष के राजनेताओं के मामलों में कार्रवाई करते समय राज्य सरकारों के हाथ कई बार कांपते नजर आते हैं और वह अनदेखी कर बचने का रास्ता चुन लेते हैं। ऐसे में अदालत ने यह भी सख्त आदेश दिया है कि कार्रवाई से बचने को भी अदालत की अवमानना माना जायेगा। शिवसेना की संपत्ति शिन्दे गुट को ट्रांसफर करने वाली याचिका को भी आज ही खारिज कर दिया गया।
      देश में आ रहे हेट स्पीच के मामलों की बाढ़ पर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस के.एम. जोसेफ और जस्टिस बी.वी. नागरत्न की पीठ ने कहा है कि हेट स्पीच देश के ताने-बाने को प्रभावित करने वाला गंभीर अपराध है। यह हमारे गणतंत्र के दिल और लोगों की गरिमा को प्रभावित करता है। इसमें दो-मत नहीं हो सकते कि जब मर्ज बढ़ता गया तब अदालत ने इस प्रकार का फैसला दिया है जो इस लाइलाज मर्ज की दवा बन सकता है। देखने वाली बात यही होगी कि ऐसे मामलों में भविष्य में यह आदेश कितना कारगर साबित होता है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया है कि संविधान की प्रस्तावना में देश के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को संरक्षित रखने की कल्पना की गयी है। इसलिए ऐसे मामलों में तत्काल एक्शन लेना चाहिए। पीठ ने कहा कि न्यायाधीश अराजनीतिक होते हैं और उनके दिमाग में सिर्फ एक चीज रहती है और वह है भारत का संविधान। कोर्ट ने राज्यों को चेतावनी देते हुए कहा कि इस विषय पर कार्रवाई में प्रशासन की देरी को न्यायालय की अवमानना माना जायेगा। जस्टिस जोसेफ ने कहा कि जाति, समुदाय, धर्म किसी को भी कानून तोड़ने की अनुमति नहीं दे सकते। हम जनता की भलाई को ध्यान में रखकर ऐसा कर रहे हैं, हमारा कोई अन्य हित नहीं है। धर्म को परे रखकर कार्रवाई करने के संबंध में जोसेफ ने कहा है कि हमने पहले यह आदेश नहीं दिया था कि हिन्दू या मुस्लिम समुदाय के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए, हमने जो कहा वह यह था कि धर्म को परे रखकर कार्रवाई की जाना चाहिए। हेट स्पीच के मामले में देश की सबसे बड़ी अदालत हिन्दू ट्रस्ट फार जस्टिस की अर्जी पर भी सुनवाई के लिए तैयार हो गई है। इस पर 12 मई को सुनवाई होगी। याचिका में कहा गया है कि हिंदुओं को धर्मान्तरित करने के लिए मुस्लिम व ईसाई मिशनरी देश भर में आंदोलन चला रही हैं। याचिका के मुताबिक हिन्दू आबादी कम होती जा रही है जिससे जनसांख्यिकीय परिवर्तन हो सकते हैं। यह भारत की सम्प्रभुता और अखंडता के लिए विनाशकारी हो सकता हैं। ऐसे कई मामले हैं जिनमें ‘सर तन से जुदा‘ के नारे लगाये गये।
आपका क्या हक बनता है ?
        सुप्रीम कोर्ट ने शिन्दे गुट को शिवसेना की सम्पत्ति ट्रांसफर करने संबंधी याचिका खारिज करते हुए याचिकाकर्ता से ही पूछा कि आपका क्या अधिकार हैं इस मामले में। इसके बाद इस याचिका को खारिज कर दिया। इस फैसले के बाद शिवसेना की संपत्ति एकनाथ शिंदे गुट को ट्रांसफर नहीं होगी। उल्लेखनीय है कि फिलहाल शिवसेना की संपत्ति उद्धव ठाकरे गुट के पास है। महाराष्ट्र के वकील आशीष  गिरि ने याचिका में मांग की थी कि शिवसेना की सारी संपत्ति शिन्दे गुट को दे दी जाए। याचिकाकर्ता गिरि ने याचिका में कहा था कि महाराष्ट्र का वोटर होने के नाते यह अर्जी सुप्रीम कोर्ट में दाखिल कर रहा हूं। शिवसेना की संपत्ति से जुड़े सारे सवालों के जवाब समय रहते ही मिल जाना चाहिए। प्रापर्टी को लेकर पूरी स्थिति साफ होनी चाहिए ताकि महाराष्ट्र में तामिलनाडु जैसी स्थिति न बनें। शिवसेना के पास अभी 191 करोड़ 82 लाख की चल-अचल संपत्ति है और दादर के शिवसेना भवन पर भी उद्धव गुट का कब्जा है। इस याचिका पर प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चन्द्रचूड़ और जस्टिस पी.एम. नरसिम्हा की बेंच में सुनवाई हो रही थी। शुक्रवार को ही माफिया अतीक और उसके भाई अशरफ की हत्या के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तरप्रदेश सरकार से रिपोर्ट मांगी है और यूपी सरकार से अनेक सवालों के साथ ही यह सवाल भी पूछा है कि आखिर दोनों को अस्पताल एम्बुलेंस से क्यों नहीं ले जाया गया और अस्पताल के एन्ट्री गेट तक पुलिस पैदल क्यों ले गयी। यह सवाल भी पूछा है कि आखिर हमलावरों को यह कैसे पता चला कि दोनों को अस्पताल ले जाया जा रहा है। यह मामला जस्टिस एस. रविन्द्र और दीपांकर दत्ता की बेंच में चल रहा है। पश्चिम बंगाल शिक्षक भर्ती घोटाले की सुनवाई अन्य न्यायाधीश को सौंपने का आदेश भी आज के ही दिन सुप्रीम कोर्ट ने दिया है। 
और यह भी
     शुक्रवार 28 अप्रैल को ही मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने मध्यप्रदेश के नर्सिंग कालेजों की सम्बद्धता और मान्यता की जांच सीबीआई को सौंप दी है। आदेश में कहा गया है कि सीबीआई अधिकारियों को जांच में मेडिकल साइंस यूनिवर्सिटी, म.प्र. नर्सिंंग कौंसिल और म.प्र. शासन को समन्वय करना होगा। इसके अलावा जिन जिलों में सीबीआई टीम जांच करने जायेगी वहां जिला कलेक्टर को भी सहयोग करना होगा। टीम के ठहरने, खाने, और वाहन की व्यवस्था के साथ जरुरी मानव संसाधन भी उपलब्ध कराने होंगे। जस्टिस रोहित आर्या और जस्टिस सत्येंद्र कुमार सिंह की युगल पीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा है कि यह पूरे प्रदेश के लिए गंभीर मामला है जो कि छात्रों के भविष्य एवं आम जनता से जुड़ा हुआ है इसलिए इसे अनदेखा नहीं किया जा सकता। जिन छात्रों ने नर्सिंग का प्रशिक्षण  ही नहीं लिया, पढ़ाई नहीं की, उन्हें परीक्षा में बैठने की अनुमति कैसे दी जा सकती है। सीबीआई की जांच के चार मुद्दों में छात्रों की फीस कब-कब जमा की गयी, छात्र नियमित रुप से पढ़ाई करने कालेज आये या नहीं, कितने छात्रों का बैच था तथा कब-कब ट्रेनिंग की और कालेज में कितना स्टाफ है, शामिल हैं। राज्य में 28 फरवरी 23 से नर्सिंग परीक्षायें आरंभ होने वाली थीं लेकिन याचिकाकर्ता दिलीप कुमार शर्मा की जनहित याचिका पर परीक्षाओं से ठीक 24 घंटे पहले हाईकोर्ट ने रोक लगा दी थी। इस प्रकार अब म.प्र. के 47 जिलों के 364 नर्सिंग कालेजों की सीबीआई जांच करेगी, इस प्रकरण की सुनवाई अब 12 मई को होगी।

अरुण पटेल
-लेखक, संपादक 



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