कीटाणु की संक्रामकता 2 तथ्यों पर निर्भर होती है कि वह कितनी आसानी से फैलता है और इंसान की रोग-प्रतिरोधक क्षमता से वह कितनी सफलता से बच सकता है। चूँकि ओमिक्रोन कोरोना वाइरस के शिखर पर 'स्पाइक' प्रोटीन में अनेक म्यूटेशन हो गए हैं, इस वाइरस की यह दोनों तथ्य प्रभावित होते हैं जिसके कारणवश वह डेल्टा कोरोना वाइरस के मुक़ाबले, 3-5 गुणा अधिक संक्रामक है, और मनुष्य की, वैक्सीन या पूर्व-में हुए संक्रमण के कारण उत्पन्न, प्रतिरोधक क्षमता से बचने में अधिक सक्षम है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, हर 1.5-3 दिन में ओमिक्रोन से संक्रमित लोगों की संख्या दुगनी हो रही है। अब आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि संक्रमण कितनी रफ़्तार से हमारी आबादी में फैल सकता है। भारत में भी संक्रमित लोगों की संख्या हर 3 दिन दुगनी हो रही है। यदि यही गति रही तो गणतंत्र दिवस तक हो सकता है 4-5 लाख ओमिक्रोन से नए संक्रमित लोग रिपोर्ट हो रहे हों और आगामी 4 हफ़्ते में डेल्टा द्वारा संक्रमित लोगों की अधिकतम संख्या से ओमिक्रोन आगे निकल जाए।
जब नए संक्रमित लोगों की संख्या अत्याधिक तेज़ी से बढ़ रही हो तो 'प्रतिशत' निकालने से संभवतः सही व्यापक अंदाज़ा न लगे। व्यक्तिगत स्तर पर हो सकता है गम्भीर रोग या मृत्यु होने का ख़तरा ओमिक्रोन संक्रमण में कम हो पर आबादी के स्तर पर गम्भीर रोग और मृत्यु का ख़तरा बड़ा हो सकता है क्योंकि संक्रमित लोगों की सम्भावित संख्या इतनी अधिक होगी। हम अपनी स्वास्थ्य प्रणाली का आगामी दिनों में कितने विवेक से उपयोग करते हैं वह तय करेगा कि मृत्यु दर भी कम रहे।90% से अधिक ओमिक्रोन से संक्रमित लोगों को सामान्य रोग होने की सम्भावना है जिसका प्रबंधन घर पर किया जा सकता है। यह जानते हुए भी हम लोग देख रहे हैं कि लोग भयभीत हो कर अस्पताल में भर्ती हो रहे हैं। यदि अस्पताल में शैय्या ऐसे मरीज़ों से भरेगी जिन्हें अस्पताल में होना आवश्यक न हो तो जरूरतमंद लोग जिनके लिए अस्पताल में भर्ती होना जीवनरक्षक हो सकता है, वह कहाँ जाएँगे? कुछ ऐसा ही अनुभव हम लोग पूर्व की कोरोना लहर में देख चुके हैं। हमें यह गलती दोहरानी नहीं चाहिए।
राज्य सरकार द्वारा जो सख़्ती की जा रही है वह कोविड के गम्भीर रोग से जूझ रहे लोगों से तय हो, न कि कोरोना से संक्रमित लोगों की कुल संख्या से। ऑक्सिजन की ज़रूरत पर निगरानी रखना, शहर और राज्य स्तर पर गहन देखभाल एकेक (इंटेन्सिव केयर यूनिट) में शैय्या उपलब्ध रखना आदि, महत्वपूर्ण बिंदु रहेंगे जो यह दर्शाएँगे कि हमारी स्वास्थ्य प्रणाली कितनी संकट में है।
टीकाकरण और बूस्टर की क्या भूमिका है?उभरते हुए नए प्रकार के कोरोना वाइरस से रक्षा करने में कोविड टीकाकरण कितने प्रभावकारी है, यह वैज्ञानिक रूप से सिद्ध करने में अनेक महीने लग जाएँगे। पर यदि हम अन्य देशों के आँकड़े देखें जैसे कि इंगलैंड, तो पाएँगे कि कोविड टीके की दो खुराक प्राप्त लोगों का ओमिक्रोन संक्रमण से बहुत ज़्यादा बचाव नहीं हुआ। परंतु ऐसा प्रतीत होता है कि दो खुराक लिए लोगों को टीके ने गम्भीर रोग से बचाया। दक्षिण अफ़्रीका के आँकड़े के अनुसार, कोविड टीके की दो खुराक लिए लोगों को अस्पताल में भर्ती होने का ख़तरा 70% कम था जब कि डेल्टा कोरोना वाइरस से संक्रमित होने पर इन लोगों को अस्पताल में भर्ती होने का ख़तरा 93% कम था। ऐसा संभवतः इसलिए था क्योंकि ओमिक्रोन वाइरस भले ही पहले से मौजूद ऐंटीबाडी से बच गया हो और संक्रमित कर दे, परंतु शक्तिशाली टी-सेल वाली प्रतिरोधक क्षमता से नहीं बच सकेगा जो गम्भीर रोग से बचाती हैं। जो लोग बूस्टर लगवा रहे हैं उनको लक्षण होने का ख़तरा 70% कम है।
हम क्या कर सकते हैं?
बूस्टर
खुराक और नए टीके की सरकार द्वारा मंज़ूरी देना स्वागत योग्य निर्णय है।
सरकार को टीकाकरण नीति का बिना विलम्ब मूल्यांकन करना चाहिए और कोविशील्ड
टीके की दो खुराक के मध्य
16-हफ़्ते की अवधि तो कम कर के
4-8हफ़्ते करने पर विचार करना चाहिए - ऐसा करने से हम लोग २० करोड़ लोगों को तुरंत लाभान्वित कर सकेंगे (जिनमें
2.7करोड़ वरिष्ठ नागरिक
शामिल हैं) जिन्होंने अभी तक टीके की सिर्फ़ १ खुराक ली है। वर्तमान में
उपयोग हो रही वैक्सीन को वैज्ञानिक रूप से सुधारने की ज़रूरत है जिससे कि
ओमिक्रोन और डेल्टा प्रकार के कोरोना
वाइरस से हमें वह अधिक कुशलता से बचाएँ।
जो लोग वैक्सीन में विश्वास नहीं रखते हैं वह संक्रमण नियंत्रण के लिए ख़तरा हो सकते हैं - इसीलिए उनको निर्रोत्साहित करने के लिए यात्रा-सम्बन्धी रोकधाम वाली नीति और कोविड के गम्भीर परिणाम होने पर सरकारी खर्च पर इलाज न दिए जाने वाली नीति (जैसे केरल में है) पर विचार करना चाहिए।
अनेक लोगों को यह मिथ्य है कि उन्हें टीका नहीं लेना चाहिए क्योंकि उन्हें पहले से ही रोग हैं जैसे कि हृदय रोग, गुर्दे सम्बंधित रोग, दिमाग़ी रोग या कैन्सर आदि। इस बात पर पुन: ज़ोर देने की ज़रूरत है कि यही वह लोग हैं जिनका टीकाकरण सबसे पहले प्राथमिकता पर होना चाहिए।
ओमिक्रोन कोरोना वाइरस से संक्रमित होने पर क्या मोनो-क्लोनल एंटीबॉडी और डाइरेक्ट एंटी-वाइरल दवा लाभकारी रहेगी?
कोविड महामारी के दौरान इन २ प्रकार की दवाओं ने निरंतर प्रभाव दिखाया है। मोनो-क्लोनल एंटीबॉडी, कृत्रिम रूप से बनायी गयी एंटीबॉडी हैं जो इंजेक्शन द्वारा लगायी जाती हैं, और वाइरस के स्पाइक प्रोटीन पर एक निश्चित स्थान पर लक्ष्य साध्य कर उसे निष्फल करती हैं। दुर्भाग्य से ओमिक्रोन पर इनका नगण्य या शून्य असर रहता है और इसलिए इनका उपयोग नहीं होना चाहिए। इसमें एक अपवाद है जिससे सोटरोविमाब कहते हैं जो प्रभावकारी है पर भारत में फ़िलहाल उपलब्ध नहीं है।
कोविड
के चिकित्सकीय प्रबंधन में एंटी-वाइरल दवाओं ने भी असर दिखाया है। हालाँकि
रेमेडेसीवीर और हाल ही में पारित मोलनूपिरावीर का ओमिक्रोन पर क्या असर
रहेगा,
इसके शोध के नतीजे अभी उपलब्ध
नहीं हैं। चूँकि अभी संक्रमण फिर बढ़ोतरी पर है इसलिए मोलनूपिरावीर को
पारित करने का समाचार हमें आशावादी लगे परंतु चिकित्सकीय शोध के पूरे
आँकड़े देखने पर ज्ञात होगा कि यह दवा सम्भावित
प्रभाव से कहीं कम प्रभावकारी रही है। इसका प्रभाव सिर्फ़ बिना टीकाकरण
करवाए हुए लोगों में ही देखने को मिला है। डेल्टा या ओमिक्रोन से कितना
बचाएगी,
यह अभी स्पष्ट नहीं है।
हम क्या कर सकते हैं?
15-18 साल के बच्चों के टीकाकरण शुरू करके हम शीघ्र ही इससे कम उम्र के बच्चों के टीकाकरण को आरम्भ करें ख़ासकर कि उन बच्चों को प्राथमिकता दें जिनको कोविड का ख़तरा अधिक हो जैसे कि जिन्हें दीर्घकालिक श्वास सम्बन्धी रोग हों, कैन्सर का उपचार चल रहा हो, हृदय रोग या गुर्दे सम्बन्धी रोग हों आदि। ऐसा करने से, जिन बच्चों को कोविड के कारण अस्पताल में भर्ती होना पड़े उनकी संख्या में गिरावट आएगी।जब वैज्ञानिक शोध-सर्वे हुआ था कि आबादी में कितने लोगों को एंटीबॉडी हैं तो बच्चों में लगभग वही एंटीबॉडी स्तर निकला जो वयस्कों में था। इसका मतलब साफ़ था कि हम लोगों ने बच्चों को स्कूल तो नहीं जाने दिया परंतु वयसकों के ज़रिए संक्रमण उनतक पहुँचा। इसीलिए स्कूल को पुन: खोलने का निर्णय दुकान और फ़िल्म हाल खोलने के निर्णय के साथ-साथ हो। ओमिक्रोन जैसे कोरोना वाइरस के नए उभरते प्रकार इस बात का प्रमाण है कि कोविड महामारी का अंत अभी बहुत दूर है और कोविड-उपयुक्त व्यवहार का सख़्ती से अनुपालन करना इंसानी तौर पर सबके लिए और हर समय संभवतः मुमकिन नहीं है। यदि ऐसा न होता तो संक्रमण के फैलाव पर अंकुश लग चुका होता। महामारी का सही मायने में अंत तो तब होगा जब हम बिना मास्क वाले दिन जैसी ज़िंदगी पुन: जी सकेंगे। ऐसा तभी हो सकता है जब कोविड टीकाकरण हर देश में हर पात्र इंसान के लिए उपलब्ध रहे और लोग टीकाकरण नियमित करवाएँ। कोई भी देश कोविड महामारी से अकेले नहीं लड़ कर विजयी हो सकता है। जब तक हम सब वैश्विक आबादी स्तर पर कोविड को मात नहीं देते तब तक के लिए यही श्रेयस्कर है कि फ़िलहाल हम लोग विवेकानुसार सब वह कदम उठाएँ जिससे कि कोविड की वर्तमान लहर पर लगाम लग सके।