इस बार दीपावली ग़रीबों के साथ मनाएंगे,चार रस्सी बम कम चलाएंगे,वह पैसा ग़रीबों को दान करेंगे,अगर ऐसा हो जाए ना जाने कितने गरीबों का दिवाली के दिन पेट भर जाएगा,आपको लग रहा होगा मैं यह क्या लिख रहा हूं, हमारे बुजुर्ग और हमारे पूर्वज यह सीख हम को देके गए हैं,छोटी बचत महा बचत,अगर इस बचत से किसी ग़रीब का पेट भर जाए तो मानो आपने लक्ष्मी जी को प्रसन्न कर दिया,जैसे कहा गया है,अन्न दान महादान,इस दौर में अगर हम बात करें पटाखों की रस्सी बम कम से कम 50 रूपए का आता है,चार रस्सी बम की कीमत 200 रूपए होती है,इन 200 रूपए से चार गरीब अपना पेट एक समय के लिए भर सकते हैं,आपका त्यौहार भी हो गया और ग़रीब का पेट भी भर गया,हमारे बीच एक ऐसी बिरादरी है,जो फुटपाथ पर रहती है,ना उनका कोई त्यौहार ना त्यौहार की कोई खुशी,इस तरह की बिरादरी आपको दीपावली वाले दिन दुकानों के बाहर मेले कुचले फटे हुए कपड़ों में दिख जाएंगे,उनकी नज़र दुकान में खड़े हुए लोगों पर रहती है,जो हजारों रुपए की खरीदारी कर रहे होते है, यह लोग दस,बीस रूपए की आस में दुकानों के बाहर खड़े रहते हैं, जैसे आप अपने घर के बाहर से कुत्तों को भगाते हैं, वैसे ही इन गरीबों को दुकान के सामने से भगाया जाता है,और गरीबों के साथ खड़े बच्चे आसमान की तरफ ताकते रहते हैं,आसमान पर पटाखों की रंग बिरंगी रोशनी दिखती है,तो खुशी के मारे तालियां बजाने लगते हैं, इन ग़रीब बच्चों का भी दिल होता होगा,वह भी नए कपड़े पहने, त्यौहार के दिन मिठाई खाएं और वह भी पटाखे फोड़े, इन गरीब बच्चों और उनके मां बाप को देखकर यह फिल्मी गाना याद आता है,ए खुदा हर फ़ैसला तेरा मुझे मंजूर है,सामने तेरे तेरा बंदा बहुत मजबूर है,जो संस्थाएं गरीबों को निशुल्क भोजन बांटती है,वह संस्थाएं त्यौहारों के दिन भोजन नहीं बांट पाती है,और उस दिन यह बिरादरी भूखी सो जाती है। मैं फिर से लिख रहा हूं,इस बार चार रस्सी बम कम जलाएंगे, उस पैसे से किसी गरीब को भोजन करवाएंगे ।
*आप सबको दीपावली की* *बहुत-बहुत शुभकामनाएं।*
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मोहम्मद जावेद खान,लेखक,संपादक