अब निजी अस्पताल के मालिकों को इलाज के साथ-साथ कब्रिस्तान और श्मशान का भी ठेका दे देना चाहिए ?
Updated on
18-05-2021 11:21 PM
माता पिता ने पढ़ा
लिखाकर तुमको
डॉक्टर बना दिया ।।
आज तुमको देखकर
लगता है की सबसे
बड़ा गुनाह किया।।
डॉक्टर नहीं तुम
व्यापम के मुजरिम हो
इलाज के साथ-साथ
तुमने अस्पताल को
कब्रिस्तान बना दिया।।
इंसानियत को कुचल कर इलाज के नाम पर लाखों रुपए का बिल बनाने वाले,बिल का भुगतान नहीं होने पर शव को ना देने वाले, मरीज़ के परिजनों के आंसुओं का माखौल उड़ाने वाले, यह कैसे धरती के भगवान है,लाशों को वेंटिलेटर पर रखकर अपना बिल बढ़ाने वाले,इलाज के नाम पर व्यापार करने वाले,यह धरती के भगवान नहीं हो सकते,यह किसी दानव से कम नहीं,परेशान बेटा डॉक्टर के सामने रोता रहा,मिन्नतें करता रहा,मेरी माँ का शव मुझे दे दो पर डॉक्टर इस बात पर आड़ा रहा,पहले इलाज का बिल जमा कर दो,उसके बाद शव देंगे,परिजन आयुष्मान कार्ड डॉक्टर को दिखा रहा था,डॉक्टर ने आयुष्मान कार्ड को कचरे के डब्बे में फेंक दिया और अस्पताल के गार्ड को बुलाकर मरीज़ के परिजनों को धक्का देकर भगा दिया और बोला जाओ,मेरी शिकायत मुख्यमंत्री से कर दो, वह मेरा कुछ नहीं बिगड़ सकते बेटा रोता रहा दूर खड़े होकर माँ के शव को देखता रहा,माँ का शव लावारिस लाशों की तरह प्लास्टिक में लपेटा हुआ एक कोने में पड़ा हुआ था,मिन्नतें करता रहा,डॉक्टरों का दिल नहीं पसीजा डॉक्टर की ज़ुबान पर बस एक ही शब्द पैसा जमा कर दो और अपनी माँ को ले जाओ लाचार,वक्त के मारे बेटे को समझ में नहीं आ रहा था वह पैसे कहां से लाए,माँ तो चली गई और उसके सर पर ढेर सारा कर्ज़ा छोड़ गई,उसने थोड़े से पैसे अपनी बहन की शादी के लिए बचाए थे,वह भी माँ के इलाज में खर्च हो गए,उसको विश्वास था,प्रदेश के मुख्यमंत्री के कहे अनुसार आयुष्मान कार्ड से इलाज हो जाएगा पर यह सब बातें थी,ना कार्ड काम आया,ना ही उसकी गरीबी पर डॉक्टरों को तरस आया। मुझे एक बात समझ में नहीं आती इन डॉक्टरों को रात में नींद कैसे आ जाती है,दिन भर आयुष्मान कार्ड धारक निजी अस्पतालों के डॉक्टरों के सामने इलाज के लिए आँसू बहाते हैं, मिन्नतें करते हैं,और डॉक्टर उनके आँसुओं को दरकिनार करते हुए खाने के समय पर खाना खाते हैं इन डॉक्टरों को अपनी रोटियों से गरीब मरीजों के आँसुओं की खुशबू नहीं आती,कई मामले सामने आए हैं,जहां निजी अस्पताल के कर्मचारी मालिकों की मिलीभगत से कोरोना मरीजों के इंजेक्शन को भारी दामों में पैसे वालों को बेचते हुए पकड़े गए, ऐसे पैसे से क्या फायदा इसलिए मैं कहता हूँ,निजी अस्पताल के मालिकों को इलाज के साथ-साथ कब्रिस्तान और श्मशान का भी ठेका दे देना चाहिए,जैसे हम शादी समारोह में सगाई से लेकर विदाई तक का ठेका देते हैं,ऐसे ही निजी अस्पताल वालों को इलाज से लेकर दफन और अंत्येष्टि का भी ठेका दे देना चाहिए क्योंकि यह निजी अस्पताल वाले पैसे के भूखे हैं, दफन और अंत्येष्टि से भी पैसा कमा लेंगे और अपनी तिजोरियों में और पैसा बढ़ा लेंगे ।
निजी अस्पताल भी कमाल का व्यवसाय है,मरीज़ अगर ठीक हो जाए तो डॉक्टर साहब ने ठीक किया और अगर मर जाए तो ऊपर वाले ने बुला लिया,मरीज़ ठीक हो जाए या मर जाए,पैसे तो निजी अस्पताल के मालिकों का पक्का हैं,निजी अस्पताल वालों के लिए मरीज़ एक ग्राहक होता है,मरीज़ की हैसियत के हिसाब से इलाज होता है,अगर मरीज़ बड़ा व्यापारी,बड़ा नेता या बड़ा अधिकारी है,तो अस्पताल में जितनी भी मशीनें लगी है,उन सब मशीनों का उपयोग किया जाता है,मरीज़ के परिजनों को इतना डरा दिया जाता है,ऐसा लगता है अब मरीज़ बचेगा नहीं। कोरोना महामारी ने निजी अस्पताल वालों के लिए संजीवनी बूटी का कम किया है, इस महामारी में आम जनता बहुत परेशान है,कारोबार बंद,नौकरियां छूट गई पर इन निजी अस्पताल वाले इस महामारी में खूब चांदी काट रहे हैं,एक-एक मरीज़ के इलाज के नाम पर लाखों का बिल थमा रहे हैं, मरीज़ ठीक हो या मरे पर इनका बिल तो पक्का है,इस महामारी से पहले बहुत से निजी अस्पताल बंद होने के कगार पर थे पर आज यह अस्पताल लाखों में नहीं करोड़ों में खेल रहे हैं,दोनों हाथों से मासूम मरीजों को लूट रहे हैं और सरकार का खुलेआम माखौल उड़ा रहे हैं,यह तो वही बात हुई,जब सैंया भय कोतवाल तो डर कैसा,इन निजी अस्पतालो के मालिको के संबंध सत्ताधारी और विपक्ष के नेताओं से बहुत गहरे हैं,निजी अस्पताल के मालिकों को मालूम है,यह मासूम मरीजों के साथ कुछ भी काला पीला कर ले, इन पर कोई उंगली नहीं उठा सकता क्योंकि जब सैंया भए कोतवाल तो डर कैसा। पिछले वर्ष कोरोना महामारी से लड़ने के लिए भारत को विश्व बैंक ने 76 अरब रुपये की मदद की थी,विश्व बैंक की मदद से कोरोना वायरस रोगियों का बेहतर इलाज और जांचो के लिए यह पैसा दिया गया था ।
निजी अस्पताल वालों ने इस रक़म को हड़पने के लिए फर्जी मरीजों को अपने अस्पतालों में दाखिल किया,फर्जी मरीजों को अस्पताल के बिस्तर पर लेटने के लिए ₹500 रोज़ दिए जाते थे और लाखों का फर्जी बिल बनाकर सरकार से वसूल किया जाते थे । अब निजी अस्पतालों का मंज़र बिल्कुल जुदा है,पहले सरकारी फंड से आए मरीजों के लिए दरवाज़े खुले थे,पर अब आयुष्मान कार्ड धारकों के मरीजों के लिए अस्पताल के दरवाजे बंद हो गए हैं और साफ कह दिया जाता है,तुम ग़रीबों के लिए यहां कोई इलाज की व्यवस्था नहीं है, इलाज करवाना है,तो पहले पैसे जमा करवा दो फिर इलाज शुरू होगा,भले ही प्रधानमंत्री,मुख्यमंत्री अपने संबोधन में यह कहते हो,अब देश का कोई ग़रीब इलाज के लिए परेशान नहीं होगा,अब ग़रीब का इलाज आयुष्मान कार्ड से होगा पर निजी अस्पताल वाले प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री के वादों को ठेंगा दिखा रहे हैं,अगर यही हाल रहा आँसुओ का तो,एक आँसू भी हुकूमत के लिए ख़तरा है,तुम ने देखा नहीं आँसुओ का समुंदर होना ।
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