नई दिल्ली । सरकार देश के 12 लाख स्कूलों को स्मार्ट क्लास रूम्स में बदलने की महत्वाकांक्षी योजना पर काम कर रही है। एक अधिकारी ने ईटी को यह जानकारी दी। इस योजना पर अभी विचार चल रहा है लेकिन इलेक्ट्रॉनिक्स एंड आईटी मिनिस्ट्री के अधिकारी इस प्रोजेक्ट के लिए पब्लिक-प्राइवेट मॉडल पर विचार कर रहे हैं। इसमें प्रति छात्र मासिक औसत लागत मात्र 5 रुपए हो सकती है। इसके पीछे यह आइडिया है कि देश के दूरदराज के बच्चों को भी ई-लर्निंग और पढ़ाई के डिजिटल तरीकों का फायदा मिले। इससे देश के कुछ दूरदराज के इलाकों में शिक्षकों के कमी की भरपाई भी हो सकेगी। इस प्रस्ताव को अंतिम रूप दिए जाने के बाद मंजूरी और सुझावों के लिए शिक्षा मंत्रालय को भेजा जाएगा। सरकार ने देश के 6 लाख गांवों को अगले 3 साल में हाई स्पीड ऑप्टिक फाइबर से जोड़ने का लक्ष्य रखा है।
अधिकारी ने कहा कि 2025 तक देश के अधिकांश गांव डिजिटल विलेज बन जाएंगे। अब इस बात पर चर्चा चल रही है कि स्कूलों को किस तरह स्मार्ट क्लासरूम में बदला जाए जहां तकनीक के जरिए छात्रों के लिए कई चीजें संभव हो सकती हैं। वर्चुअल स्क्रींस के जरिए उन इलाकों में भी बच्चों को पढ़ाया जा सकता है जहां कोई टीचर नहीं है। अधिकारी ने कहा कि प्राइवेट इंडस्ट्री निवेश का जिम्मा उठा सकती है और सरकार उन्हें भुगतान कर सकती है। कॉमन सर्विस सेंटर ऑपरेटर भी इन्हें चला सकता है। उन्होंने कहा कि इस बिजनस मॉडल में सभी के लिए बहुत संभावनाएं हैं। देश में ई-लर्निंग का चलन बढ़ रहा है। बायजू, अपग्रेड, अनएकेडमी जैसे एडटेक स्टार्टअप लोकप्रिय हो रहे हैं। हालांकि यह अभी तक केवल ऐप बेस्ड लेक्चर तक ही सीमित है। अधिकारी ने कहा कि हर बच्चे के पास स्मार्टफोन नहीं है, इसलिए हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि उन्हें एक कॉमन डेवाइस के जरिए अपनी भाषा में क्वालिटी कंटेंट मिले।