पहले के जमाने में वह व्यक्ति अमीर होता था है जो मेहनत करके अपना व्यापार इमानदारी से चलाते थे। व्यापार उनकी सच्चाई के कारण होता था अधिकांशत व्यक्ति उनसे ही व्यापार करना चाहते थे। गांव में और नगर में गिने-चुने नगर सेठ हुआ करते थे। लेकिन आज के इस दौर में सरकारी नौकरी में कर्मचारी से लेकर अधिकारी तक कई नए रईस बन गए हैं और कुछ जो ऐसी जगह है जहां वह बिना पैसे दिए काम नहीं होता हैं वह धन्ना सेठ बन गये। यही हालत जनसेवको में भी है जनसेवक से मेरा मतलब नेता लोगों से भी है, मीडिया वाले भी इसी हाल में है इस दौर में बहुत जल्दी अमीर बन जाता है जो बाहुबली है और हर गलत काम में लगा है। मेरा कतई कहने का मतलब नहीं है कि मेहनत से रईस आदमी इस दौर में नहीं बन रहे बहुत से ऐसे व्यक्ति भी हैं कि जो मेहनत ईमानदारी अपनाए हुए हैं।और रईस बने हैं। कई व्यक्ति पुश्तैनी काम कर रहे हैं तो रईस बने हैं पर जो तुरंत रईस बन रहे हैं वह ईमानदारी की कमाई से नहीं बन सकते क्योंकि आपको भारी भरकम टैक्स देना पड़ता है। महंगाई भ्रष्टाचार मुनाफाखोरी जमाखोरी और कई बार सरकार की नीतियां यह सब चीजें किसी को मिर से मिडिल क्लास और मिडिल क्लास गरीब बनाती है या फिर लोअर क्लास से अपर क्लास और अपर क्लास से रईस क्लास बना देती है। जमाना रईसी की तुलना पैसे से करता है पर ईश्वर की निगाह में रईस वही है जो मजे की जिंदगी गुजार रहा है।
अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्) ये लेखक के अपने विचार है I
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