रहने को घर नहीं, सोने को बिस्तर नहीं, अपना तो ईश्वर है रखवाला, अब तक उसी ने है पाला।। टिप
टिप बरसती ओस की बूंदे,घना कोहरा ढूंढता हूँ अपना मका छुप गया है घने
कोहरे में, मेरा शहर छुप गया है और शहर के मका भी छुप गए है,सूरज भी छुप
गया है,पर नहीं छुपा है,हमारे देश का सैनिक, नहीं छुपा है,हमारा देश का
किसान,नहीं छुपा है,मोहल्ले का चौकीदार,नहीं छुपी है,हमारे शहर की
पुलिस,सर्दी जितने भी सितम ढाए पर हमारे देश के सैनिक सीमाओं पर शून्य से
नीचे तापमान पर भी हमारी रक्षा के लिए डटे हुए हैं,हमारे किसान सर्द रातो
में अपने खेतों में पानी देने के लिए नंगे पैर,हाथ पैर गीले, कपड़े
गीले,लगे हैं अपने खेतों की सेवा करने में,यह सेवा हम लोगों के लिए है,अनाज
खेतों में उगेगा जब ही हमारी थाली में आएगा । सर्दी की रातें रजाई में
दुबका हुआ मैं,शरीर पर गर्म कपड़े,ऊपर से मोटी रजाई,फिर भी सर्द हवाएं बदन
को छू रही थी,ऐसा लग रहा था,कोई शरीर पर बर्फ का टुकड़ा रख रहा है,लेटे
लेटे मुझे कुछ लोग बहुत याद आए,मेरे कानों में मोहल्ले के चौकीदार के
द्वारा बजती हुई सीटी की आवाज, बार-बार यह इशारा दे रही थी बाबूजी तुम्हें
तो रजाई में भी ठंड लग रही है,मेरा हाल पूछो,खुले आसमान के नीचे रात भर एक
पतला सा स्वेटर पहने हुए,सिर पर मैला सा रुमाल बांधे हुए,मात्र आठ हजार
महीने की पगार के लिए सर्द रातों में एक मकान से दूसरे मकान तक लोगों को
सीटी बजा कर यह संदेश पहुंचाने की कोशिश कर रहा था आप आराम से सो जाओ मैं
हूं ? आज मुझे मोहल्ले का शेरू बहुत याद आया दो रोटीयों के लिए रात भर
जागकर घर के गेट के सामने बैठा रहता है,शेरू हमारे मोहल्ले का जंगली कुत्ता
है,मोहल्ले के बच्चे उसको शेरू के नाम से पुकारते हैं,शेरू के शरीर पर ना
कोई गरम कपड़ा ना ही छुपने के लिए कोई ऐसा मुकाम जहां से ठंडी हवाओं का
मुकाबला कर सके,फिर भी जिंदा है बस एक ही आस सुबह उसको खाने के लिए दो रोटी
मिल जाएगी,आज मुझे कल्लू दादा बहुत याद आए जिनके पास रहने को घर नहीं,दिन
भर ठेले पर लोगों का सामान ढोते हैं,रात को ठेले के ऊपर ही सो जाते
हैं,ठेला ही उनका आशियाना है,पतला सा कंबल,कंबल के ऊपर प्लास्टिक की पन्नी
और प्लास्टिक की पन्नी इसलिए ओस की बूंदों से कंबल गीला ना हो जाए। सर्द
भरी रातें, ख़ून जमाने वाली सर्दी,हड्डी तोड़ती ठंडी हवाएं और कल्लू दादा
जमे हैं अपने ठेले पर । आज मुझे मेरे वह भाई बहुत याद आए जो खुले आसमान
के नीचे अपनी राते गुजारते हैं उनके लिए यह फिल्मी तराना बिल्कुल सटीक
बैठता है,रहने को घर नहीं सोने को बिस्तर नहीं,अपना ख़ुदा है रखवाला,अब तक
उसी ने है पाला। अपनी तो ज़िन्दगी कटती है फुटपाथ पे,ऊंचे ऊंचे ये महल अपने
हैं किस काम के। इसमें कोई दो राय नहीं ऊपर वाला ही पालता है हमारे
मोहल्ले के चौकीदार को,हमारे देश के किसानों को, हमारे कल्लू दादा को,हमारे
भाई को फुटपाथ पर रहते हैं उनको, बे के मुंह जानवरों को और उन तमाम
बेसहारों को जिनका कोई सहारा नहीं। मौसम तो अमीरों के लिए होता है, हर मौसम
का आनंद तो अमीर लेते हैं गर्मी के मौसम में एयर कंडीशन चलाकर शिमला और
कश्मीर का मजा लेते हैं, सर्दी के मौसम में रूम हीटर का इस्तेमाल करके
सर्दी को दूर भगाते हैं, और बारिश के मौसम में कमरों में बैठकर चाय पकौड़े
का लुत्फ उठाते हैं और गरीब का मौसम तो केवल एक ही होता है गरीबी से जूझना
हर मौसम गरीब के लिए आफत बनकर आता है,चाहे सर्दी हो गर्मी हो या बारिश हर
मौसम में परेशान तो गरीब होता है। और हम रोते हैं,ऊपर वाले ने हमको कुछ
नहीं दिया । आज मैं रजाई ओढ़े सोच रहा था,ऊपर वाले ने सब कुछ तो दिया
हैं,फिर भी हम रोते हैं,सिर छुपाने को छत दी,खाने को रोटी दी,पहनने को
कपड़े दिए,कड़ाके की सर्दी में ओढ़ने को रजाई और कंबल दिए,गर्म कपड़े
दिए,सर्दी के मौसम में नहाने के पानी गर्म,फिर भी हम रोते हैं,और कहते हैं
कुछ नहीं दिया ऊपर वाले ने, जितना शुक्र अदा किया जाए उतना कम है । कैसे मैं शुक्रिया अदा करूँ, ऊपर वाले का। मुझे अलफ़ाज़ नहीं मिलते । अगर तेरी नज़रे करम हम पर ना होती,तो ज़िन्दगी इतनी खूबसूरत न होती।
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