नई दिल्ली । राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग (एनएमसी) शुक्रवार को अस्तित्व में आ गया।इसने भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद (एमसीआई) की जगह ली है। एनएमसी को देश के चिकित्सा शिक्षा संस्थानों और चिकित्सीय पेशेवरों के नियमन के लिए नीतियां बनाने का अधिकार है। एनएमसी के अस्तित्व में आने के बाद इसका ‘बोर्ड ऑफ गवर्नर्स’ (बीओजी) जिसने 26 सितम्बर, 2018 को एमसीआई की जगह ली थी, वह अब भंग हो गया है और करीब 64 वर्ष पुराना भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद अधिनियम भी समाप्त हो गया है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) दिल्ली के ईएनटी विभाग के पूर्व प्रमुख डॉ.सुरेश चंद्र शर्मा को आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। शुक्रवार से शुरू हो रहा उनका कार्यकाल तीन साल का होगा। वहीं एमसीआई के ‘बोर्ड ऑफ गवर्नर्स’ के महासचिव रहे राकेश कुमार वत्स आयोग के सचिव बनाया गया है।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने आठ अगस्त 2019 को चिकित्सा क्षेत्र में महत्वपूर्ण बदलाव लाने के प्रस्ताव वाले राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग (एनएमसी) कानून को मंजूरी दे दी थी। इसमें चिकित्सा क्षेत्र एवं चिकित्सा शिक्षा क्षेत्र के नियमन के लिये भारतीय चिकित्सा परिषद की जगह एनएमसी के गठन का प्रस्ताव है। एनएमसी में एक अध्यक्ष, 10 पदेन सदस्य और 22 अंशकालिक सदस्य शामिल हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय में संयुक्त सचिव, निपुण विनायक द्वारा बृहस्पतिवार को जारी अधिसूचना के अनुसार, एनएमसी अधिनियम के तहत चार स्वायत्त बोर्ड - स्नातक स्तरीय चिकित्सा शिक्षा बोर्ड (यूजीएमईबी), स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा बोर्ड (पीजीएमईबी), चिकित्सा मूल्यांकन और रेटिंग बोर्ड तथा आचार एवं चिकित्सा पंजीकरण बोर्ड - भी गठित किए गए हैं और ये भी शुक्रवार से अस्तित्व में आ गए।