Select Date:

नरेन्द्र चंचल: उन्होंने भजन गायकी का व्याकरण बदल डाला..!

Updated on 24-01-2021 08:32 PM
जाने-माने भजन गायक नरेन्द्र चंचल मां वैष्णो की जिस पुकार ‘चलो बुलावा आया है, माता ने बुलाया है’ को अपने संगीत कार्यक्रमों में अक्सर दोहराते थे, उसी माता ने मानो इस अपने इस लाडले भक्त को हमेशा के लिए अपने पास बुला लिया। यूं नरेन्द्र चंचल ने बाॅलीवुड की हिंदी फिल्मों में कुछ गैर भजनी गीत भी गाए, लेकिन भजन गायकी ही उनकी आत्मा थी। नरेन्द्र चंचल को इस बात का श्रेय देना पड़ेगा कि सत्तर के दशक में उन्होंने भजनों के पारंपरिक व्याकरण और तेवर को बदल कर रख दिया। उसके पहले तक हमे या तो पारंपरिक भजन सुनने को मिलते थे या फिर फिल्मी भजन। लेकिन भजनों के लाइव कंसर्ट का ज्यादा चलन न था। या यूं कहें कि भजनों की दुनिया अमूमन मंदिरों, पूजाघरों या धार्मिक समारोहों तक महदूद थी। नरेन्द्र चंचल ने भजनो को इस दायरे से बाहर निकालकर सार्वजनिक मंच पर एक धार्मिक इवेंट की तरह स्थापित किया। जिसमें भक्ति भाव के साथ साथ ग्लैमर भी अंतर्निहित था। इस मायने में भजन गायकी में चंचल की लोकप्रियता को शायद ही कोई लांघ पाया है।
यूं बहुत से गायकों ने भजन गाए हैं, बहुत अच्छे भी गाए हैं। लेकिन भजन गायकी में एक अलग तरह के समर्पण और भक्ति रस में डूब जाने की दरकार होती है। क्योंकि एक सफल भजन गायक अपने सुर और भाव से भक्तों को भगवान की देहरी तक ले जाता है। इस भक्ति भाव से भगवान कितने प्रसन्न होते हैं, पता नहीं, लेकिन भक्त जरूर निहाल हो जाते हैं। पंजाब के अमृतसर में जन्में नरेन्द्र चंचल का असल नाम नरेन्द्र खरबंदा था। धार्मिक वातावरण उन्हें विरासत में मिला था। सो, भजन गायकी में रमना और लोगों को भी इस में शामिल करना उन्हें सहजता से हासिल हुआ था। चंचल ने अपनी आत्मकथा ‘मिडनाइट सिंगर’ के नाम से लिखी थी। अपने पहले फिल्मी गीत ‘बेशक मंदिर मजिस्द तोड़ो’ पर उन्हें फिल्मफेयर अवाॅर्ड भी मिला। चंचल मां वैष्णो देवी के परम भक्त थे। वो हर साल माता के दर्शन के लिए जाते थे और भजन भी गाते थे। उन्हे सबसे अमीर भजन गायक भी माना जाता था।
अपने देश में नवरात्रि पर देवी आराधना के भी अलग अलग आंचलिक प्रकार और भक्ति शैलियां हैं। नवरात्रि और खासकर शारदीय नवरात्रि में जहां बंगाल और पूर्वोत्तर भारत में दुर्गा की आराधना मुख्‍यत: धार्मिक अनुष्ठान का हिस्सा है तो गुजरात में देवी का अंबा रूप ज्यादा लोकप्रिय है। यहां उसकी आराधना गरबा नृत्य के रूप में की जाती है। हालांकि वहां भी ये आजकल ये मेगा इंवेट में बदल गया है। लेकिन पहले इसका स्वरूप मुख्य रूप से धार्मिक ही था। दक्षिण भारत में भी नवरात्रि धार्मिक कर्मकांड ही ज्यादा है। लेकिन उत्तर-पश्चिम भारत और खासकर पंजाब में नवरात्रि देवी जागरण के रूप में बेहद लोकप्रिय है। नरेन्द्र चंचल ने देवी आराधना की इसी शैली को समूचे और विदेशों में भी लोकप्रिय बनाया।
इसका मुख्य कारण था, उनकी अलग तरह की आवाज। जिसमें कंपन के साथ सप्तक को छूने की कूवत थी। इस हिसाब से नरेन्द्र चंचल की आवाज मोहम्मद रफी और तलत महमूद की आवाज का भक्तिरसी ‍िमश्रण लगती है। मुझे याद है कि पचास साल पहले ग्रामोफोन के जमाने में देवी भजनो के नाम पर हमे ज्यादातर कुछ परंपरागत आरतियां और कुछ फिल्मी भक्ति गीत बार-बार सुनने को ‍िमलते थे। पहली बार नरेन्द्र चंचल के जागरण गीतों में देवी आराधना की एक बुलंद गायकी और समर्पित स्वर सुनने को मिला। हालांकि हिंदी दर्शको और श्रोताअों की चंचल के बुलंद सुर से मुलाकात मशहूर फिल्म बाॅबी के उस सूफी गीत से हुई,जिसमें वो ‘प्यार भरा दिल कभी न तोड़ो..’ का मार्मिक आह्वान करते हैं।  उनका फिल्म ‘रोटी कपड़ा और मकान’ में गाया गीत ‘बाकी कुछ बचा तो महंगाई मार गई..’ आज भी प्रासंगिक है। लेकिन नरेन्द्र चंचल की असल पहचान उनके भक्ति गीतों से ही है। देवी जागरण से है। चंचल जब देवी के भक्ति गीत गाते हैं तो लगता है मानो माता रानी खुद अपनी स्तु‍ति का रसपान कर रही हो। भक्ति रस में पगी चंचल की आवाज दिवाली के राॅकेट की माफिक एकदम चढती हुई उस चरम को छू लेती है, जहां भक्त और भगवान का एक अमूर्त फ्यूजन-सा होने लगता है। चंचल के स्वर का स्थायी भाव उसकी आर्तता है। यह आर्त भाव मां के बुलाने या मां के पास जाने की व्याकुलता में और मुखर हो उठता है। चंचल की सफलता यही थी कि अपनी इस व्याकुलता में वो भक्तों को पूरी शिद्दत से शामिल कर लेते थे।
भजन और फिल्मी गीतों की गायकी में चंचल का मुकाम इसलिए भी अलग है, क्योंकि उन्हें उस दौर में बाॅलीवुड में गाने का मौका मिला था, जब हिंदी ‍िफल्म संगीत का आकाश रफी, मुकेश,किशोर, मन्ना डे जैसे महान गायको से आच्छादित था। उसमें अपनी अलग आवाज से अलग पहचान बनाना वाकई माता रानी के चरणों में स्थान पाने जैसा ही था। पारंपरिक देवी जगरातों से बाॅलीवुड में चंचल की एंट्री जिस वक्त हुई, वह आॅडियो कैसेट की शुरूआत का दौर था। धार्मिक आयोजन धीरे धीरे सार्वजनिक इवेंट में तब्दील हो रहे थे। हालांकि तब भी आज जैसा धर्म और राजनीति का काकटेल तैयार नहीं हुआ था। लेकिन भक्ति रस का विस्तार एक ग्लैमर के साथ होना शुरू हो गया था। चंचल के मंचीय जगरातों ने उसे नए मुकाम तक पहुंचाया। चंचल जब देवी के भजन गाते थे तो लगता था कि उनकी आवाज मानो इसी के लिए बनी है।
ऐहिक दृष्टि से देखा जाए तो ‘चलो बुलावा आया है..’ और ‘बेशक मंदिर मस्जिद तोड़ो’ दो अलग मनोभावों और आग्रहों के गीत हैं। लेकिन चंचल उसे उसी अचंचल भाव से गाते हैं। गाते ही नहीं, उसमें गहरे तक डूब जाते हैं। ये गीत शाब्दिक दृष्टि से अलग अलग नजर आते हों, लेकिन आध्यात्मिक संदेश एक ही है। वो है निश्छल और ‍िनष्काम प्रेमासक्ति का। देवी के रूप में माता रानी का यह प्रेम मां बेटे का पवित्र रिश्ता है तो आशिक का ‍िदल न तोड़ने की मार्मिक अरज भी इसी भाव से जन्मी है कि प्रेम निर्मल, निराकार और निर्हेतुक होता है। फिर चाहे वह मां की कृपा के रूप में हो या फिर ‘दो दिल-एक जान’ हो जाने के संकल्प के रूप में हो।
इस देश में बहुत आला दर्जे के भजन गायक हुए हैं। पंडित भीमसेन जोशी जैसे महान गायको ने भजनों को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। लेकिन नरेन्द्र चंचल जैसे सुगम गायकों ने पंजाबी रंग में रंगी भजन और खासकर देवी भजन गायकी में समूचे देश को रंग डाला। वो रंग जिसमें भक्ति, मस्ती और समर्पण एकाकार हो जाते हैं। बहरहाल, उम्र भी कोई चीज होती है और परलोक का मार्ग अचंचल होता है। नरेन्द्र चंचल ने अपना आखिरी गीत ‘कित्थो आया कोरोना’ गाया था। फिर वो दिल्ली के अस्पताल में भर्ती रहे। वहीं उन्होंने अंतिम सांस ली।
अगर कोई पूछे कि भजन और आरती में अंतर क्या है, तो जवाब देना कठिन ही है। कह सकते हैं कि आरती में केवल आराध्य की बहुविध स्तुति होती है। यानी वह ईश्वर के साथ अपनी सेल्फी लेने की कोशिश जैसा कुछ है, जबकि भजन में स्तुतिगान मनुष्य की मु‍क्ति की कामना के आध्यात्मिक भाव में लिपटा रहता है। हालांकि दोनो का उद्देश्य एक ही है, ऐहिक प्रपंचों से मुक्ति। चंचल अपने जगरातों में श्रोताअो को अपनी स्वर साधना से उस बिंदु तक ले जाते थे, जहां लगता था कि ‘मैया अब जंगल के राजा पर सवार होकर खुद भक्तों के बीच आ बैठने ही वाली है।
अजय बोकिल,लेखक                                                  ये लेखक के अपने विचार है I
वरिष्ठ संपादक, ‘राइट क्लिक’
वरिष्ठ संपादक,‘सुबह सवेरे’ 

अन्य महत्वपुर्ण खबरें

 16 November 2024
महाराष्ट्र में भाजपानीत महायुति और कांग्रेसनीत महाविकास आघाडी के लिए इस बार का विधानसभा चुनाव जीतना राजनीतिक  जीवन मरण का प्रश्न बन गया है। भाजपा ने शुरू में यूपी के…
 07 November 2024
एक ही साल में यह तीसरी बार है, जब भारत निर्वाचन आयोग ने मतदान और मतगणना की तारीखें चुनाव कार्यक्रम घोषित हो जाने के बाद बदली हैं। एक बार मतगणना…
 05 November 2024
लोकसभा विधानसभा चुनाव के परिणाम घोषित हो चुके हैं।अमरवाड़ा उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी कमलेश शाह को विजयश्री का आशीर्वाद जनता ने दिया है। लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 29 की 29 …
 05 November 2024
चिंताजनक पक्ष यह है कि डिजिटल अरेस्ट का शिकार ज्यादातर वो लोग हो रहे हैं, जो बुजुर्ग हैं और आमतौर पर कानून और व्यवस्था का सम्मान करने वाले हैं। ये…
 04 November 2024
छत्तीसगढ़ के नीति निर्धारकों को दो कारकों पर विशेष ध्यान रखना पड़ता है एक तो यहां की आदिवासी बहुल आबादी और दूसरी यहां की कृषि प्रधान अर्थव्यस्था। राज्य की नीतियां…
 03 November 2024
भाजपा के राष्ट्रव्यापी संगठन पर्व सदस्यता अभियान में सदस्य संख्या दस करोड़ से अधिक हो गई है।पूर्व की 18 करोड़ की सदस्य संख्या में दस करोड़ नए सदस्य जोड़ने का…
 01 November 2024
छत्तीसगढ़ राज्य ने सरकार की योजनाओं और कार्यों को पारदर्शी और कुशल बनाने के लिए डिजिटल तकनीक को अपना प्रमुख साधन बनाया है। जनता की सुविधाओं को ध्यान में रखते…
 01 November 2024
संत कंवर रामजी का जन्म 13 अप्रैल सन् 1885 ईस्वी को बैसाखी के दिन सिंध प्रांत में सक्खर जिले के मीरपुर माथेलो तहसील के जरवार ग्राम में हुआ था। उनके…
 22 October 2024
वर्तमान समय में टूटते बिखरते समाज को पुनः संगठित करने के लिये जरूरत है उर्मिला जैसी आत्मबल और चारित्रिक गुणों से भरपूर महिलाओं की जो समाज को एकजुट रख राष्ट्र…
Advertisement