मासूम था यारो,मुझे मासूम ही रहने देते,बड़े होकर माता पिता के बुढ़ापे का सहारा बनने देते,मैं भी बनना चाहता था अपने भाई बहनों का लाडला पर अफ़सोस 8 नवंबर की काली रात,उस रात मेरे पिता मेरे लिए माँ का दूध, एक छोटी सी कटोरी में लेकर आए थे,नर्स से बोले मेरे बच्चे को यह दूध पिला देना,मैं नज़रें घुमा घुमा कर अपनी माँ को ढूंढ रहा था,पर मुझे माँ नहीं दिख रही थी,क्योंकि मैं बहुत कमज़ोर पैदा हुआ था,मुझको भोपाल के कमला नेहरू अस्पताल में भर्ती कराया गया था,और मुझे एक कांच के बक्से में रखकर,माँ से दूर कर दिया था,मैंने सोचा था कुछ दिनों की बात है,मैं ठीक हो जाऊंगा फिर से माँ की गोद में लेट कर,माँ की छाती से लग जाऊंगा,पर अफ़सोस ऐसा नहीं हो सका । मुझे क्या मालूम था,धरती पर आते ही मेरे ऊपर परेशानियों का पहाड़ टूट जाएगा, अभी तो मैंने आँखे खोली थी आँखे खोलते ही डॉक्टर आंटी ने मेरे पीठ पर हाथों से मारा था,मुझे इसलिए मारा था,क्योंकि मैं रोया नहीं था,मैंने तो सुना था,जो रोते नहीं है,उसको इस धरती पर वीर कहा जाता है,इसलिए मैं रोया नहीं था। मैं थोड़ा सा कमज़ोर पैदा हुआ था,मैंने 9 महीने माँ की कोख में गुज़ारे थे,माँ की कोख का अंधेरा मुझको भाने लगा था। वह भी कितने अच्छे दिन थे,जो मैंने माँ की कोख में गुज़ारे थे,मैंने माँ की कोख में खूब मस्ती की थी, अक्सर मैं अपने हाथों और पैरों से माँ के पेट पर मारता था,मेरे नन्हें नन्हें हाथ पैरों से माँ को चोट तो नहीं पहुंचती थी,पर माँ खुशी से झूम उठती थी। मैं अक्सर माँ की कोख मम्मी और पापा की बातें सुना करता था,पापा अक्सर माँ से कहते थे,क्या करूं काम नहीं चल रहा,बहुत परेशान हूँ पैसा नहीं है, तुमको भोपाल के सरकारी सुल्तानिया ज़नाना अस्पताल में ही अपने बेटा या बेटी को जन्म देना होगा,मैं सोचता था,पैसा क्या होता है,इस पैसे से क्या काम किया जाता है, जब मैं बड़ा होगा तो मैं भी बहुत सारा पैसा कमा कर अपने माता पिता को दूंगा,पर अफ़सोस मैं बड़ा हो ही नहीं पाया,कुछ ही दिनों में अस्पताल की लापरवाही के कारण भगवान ने मुझे वापस अपने पास बुला लिया, पर जाते-जाते मैंने अपने माता-पिता को 4 लाख की मदद दिलवा कर चला गया क्या मेरी जान की कीमत केवल 4 लाख थी। 8 नवंबर की तारीख मेरी जिंदगी की आखिरी रात थी,उस रात का डरावना अंधेरा,उठती हुई लपटें दम घोंटता हुआ धुंआ,चारों तरफ चीख़ने की आवाज़ें,भागते डॉक्टर,दौड़ती हुई नर्से,कांच तोड़ते हुए लोग,इन सब से मैं बहुत डर गया था,मेरी सांसे धीरे-धीरे थमती जा रही थी,मैं अपने हाथ पैर चला रहा था,कि काश में भी इस कांच के बक्से से बाहर आ जाऊं,पर अफ़सोस मेरी सांसो में मेरे शरीर का साथ छोड़ दिया,मैं अपने पिता को रोता हुआ छोड़कर हमेशा हमेशा के लिए बहुत दूर चला गया। यह घटना मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में स्थित हमीदिया अस्पताल के कमला नेहरू बाल चिकित्सालय में स्थित बच्चा वार्ड में लगी आग की है,इस आग ने सात घरों के चिराग बुझा दिए। वहीं दूसरी ओर सरकार के द्वारा बताए गए आंकड़ों और नवजात बच्चों के पोस्टमार्टम के आंकड़ों में अंतर दिखाई दे रहा है,सरकार ने 4 बच्चों की मृत्यु की घोषणा की थी,जब कि 7 बच्चों का पोस्टमार्टम किया गया है। इस वार्ड में करीब 40 बच्चे भर्ती थे, रात करीब 9 बजे अचानक लगी आग से वहां अफरातफरी मच गई थी,शेष बच्चों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया है,पर परिजनों में काफी रोष है,अभी तक परिजनों को उनके मासूम बच्चों के बारे में कोई पुख्ता जानकारी नहीं है। फिर से हमीदिया अस्पताल की सुरक्षा की पोल खुल गई है। कुछ माह पूर्व बिजली गुल होने के कारण कोविड वार्ड में कुछ लोगों की मृत्यु हो चुकी थी,उस समय जरनैटरो में डीज़ल नहीं पाया गया था,जिसके कारण बिजली गुल होने के बाद जरनैटर चालू नहीं हो पाए थे,उस समय जो मरीज़ वेंटिलेटर पर थे,उन मरीज़ो ने वेंटिलेटर के बंद होने के कारण दम तोड़ दिया था,एक बार फिर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने घटना पर दुःख जताते हुए मामले की जांच के आदेश दिए हैं,घटना की जांच एडिशनल चीफ सेक्रेटरी लोक स्वास्थ्य एवं चिकित्सा को सौंपी गई है। कब तक लोग दूसरों की गलतियों के कारण मरते रहेंगे,कब तक घटनाओं की जांच केवल कागजों पर होती रहेगी,कब तक भ्रष्टाचार की आंच में मासूम झुलसते रहेंगे, कब तक सुरक्षा के नाम पर सरकारी अस्पतालों के करोड़ों रुपए बर्बाद होते रहेंगे,याद रखो मरता केवल गरीब है,अमीर तो रिश्वते देकर अपने हिसाब से सब काम करवा लेते हैं। ना मुड़ कर देख माँ मुझे । ना आवाज़ दे ।। माँ तुझे अलविदा कहना आसान तो नहीं था । बड़ी मुश्किल से सीखा है । तुम को अलविदा कहना ।।
मोहम्मद जावेद खान,लेखक, संपादक - भोपाल मेट्रो न्यूज़ ये लेखक के अपने विचार है I
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