नई दिल्ली । कोरोना संक्रमण काल में बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों ने राष्ट्रीय राजनीति के लिए भी बड़ा संकेत दिया है। इन चुनावों में भाजपा के शानदार प्रदर्शन से सूबे में एनडीए को बढ़त मिली है जिससे न सिर्फ केंद्र सरकार के कामकाज पर मुहर लगी है, बल्कि मोदी मैजिक भी कायम रहा।चुनाव के नतीजों से साफ है कि जदयू के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी सभाओं के जरिए काफी हद तक कम करने में कामयाब रहे। इससे भाजपा का अपना प्रदर्शन भी बेहतर हुआ है।
कोरोना संकट से उत्पन्न स्थिति, किसानों से जुड़े कानूनों तथा नागरिकता संशोधन कानून जैसे मुद्दों से भाजपा कोई नुकसान हुआ नहीं लगता है। जबकि विपक्ष एनडीए-2 में इन मुद्दों पर सरकार की घेराबंदी करता रहा है। इसलिए भाजपा इस तरह से अब निश्चिंत हो सकती है। भाजपा की अपनी सीटें बढ़ने से यह स्पष्ट है कि कोरोना संकट के चलते महानगरों से पलायन करके बिहार पहुंच प्रवासी मजदूरों ने बड़ी संख्या में भाजपा के पक्ष में मतदान किया। यदि उनमें नाराजगी होती तो यह उसके खिलाफ जाता। यह माना जा रहा है कि केंद्र सरकार द्वारा कोरोना संकट से निपटने के लिए शुरू की गई गरीब कल्याण योजना का फायदा चुनाव में मिला है।
नतीजे यह भी कहते हैं कि कोरोना प्रबंधन को लेकर केंद्र सरकार की रणनीति से लोग संतुष्ट हैं। यदि विपक्ष की रणनीति को देखें तो पिछड़ने के बावजूद तेजस्वी यादव जुझारू नेता के रूप में उभरे। लेकिन कांग्रेस का प्रदर्शन थोड़ा बेहतर होता और ओवैसी फैक्टर नहीं होता तो उनकी सरकार बन सकती थी। राजद जहां अपना 2015 जैसा प्रदर्शन दोहराने में करीब-करीब सफल रहा है, वहीं कांग्रेस पिछला प्रदर्शन भी नहीं दोहरा पाई। हां, वामदलों को महागठबंधन में लेने का फायदा जरूर हुआ और उनकी सीटों में अच्छी-खासी बढ़ोतरी हुई है। विपक्ष द्वारा ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम को गंभीरता से नहीं लेना भी उसकी बड़ी भूल साबित हुई। एआईएमआईएम को लगभग एक दर्जन सीटों पर अच्छे मत मिले हैं।