भारत राष्ट्र के सबसे सहज और सरल रामचरित मानस के रचियता तुलसीदास जी ने कहा है, ये जगत कर्म प्रधान है, कर्ता जो भी कर्म करता है, वह उसके प्रति जवाबदार होता है और उसे उन कर्मों का फल भुगतना होता है। कर्ता अपने कर्मों से अपने जीवन को स्वर्ग और नर्क बना देता है।
मोदी, राष्ट्र के प्रति समर्पित अपने कर्मो से, देश के सर्वकालिक महान प्रधान सिद्ध हो चुके हैं, ये अविवादित भी है। इसके लिए उनमें राष्ट्र के प्रति पूर्ण निष्ठा, अदम्य जिजीविषा, निर्भीक, चतुर कूटनीति, निर्धारित लक्ष्य के प्रति कर्म करने और निर्णय लेने का साहस जैसे गुणों का अद्भुत सामंजस्य देखा जा सकता है। वे अप्रतिम प्रेरणास्त्रोत के रूप में देश और विदेश की नई पीढ़ी के सामने आए हैं। उनकी कार्यशैली अन्वेषण व शोध का विषय बन गई है, वे हर बार अपने निर्णयों से धुर विपक्षियों ही नहीं समर्थकों को भी हतप्रभ कर देते हैं। देश ही नहीं विदेश में भी उनके विरोधी उनका स्तुतिगान करते नजर आते हैं। पारंपरिक शत्रु देश पाकिस्तान में तो मोदी के नाम का डंका बज रहा है। उनकी कार्यशैली पर नजर डालें तो, पाएंगें कि, वे सोच समझकर जनहित के लक्ष्य का निर्धारण करते हैं, अपने आपको चुनौती देते हैं, हर बार दक्ष व्यक्तियों की एक अलग टीम बनाते हैं, अपनी क्षमताओं में यथोचित वृद्धि करते हैं, सुनियोजित योजना के अनुसार लक्ष्य प्राप्ति के रूप से अडिग रहते हैं, निर्बाध अथक परिश्रम करते हैं, और अंततः वो असंभव को संभव बनाने का काम कर देते हैं, जिसे विश्व करिश्मा मान लेता हैं।
मोदी के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद मात्र मंदिर मस्जिद तक ही सीमित मानना उनको कमतर आंकना है। वे नए भारत के निर्माण में सभी आलोचनाओं, समालोचनाओं से अप्रभावित हो, सबका साथ, सबका विश्वास, सबका विकास के ध्येय सिद्धांत पर काम कर रहे हैं। मोदी के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से सीधा आशय जाति, वर्ग, क्षेत्र, भाषा से ऊपर उठकर भारत की एक हजार साल पुरानी गौरवशाली प्रतिष्ठा को पुनः पाना है। वे भारतीय संस्कृति, जीवनशैली की पुनर्स्थापना के लिए प्रतिबद्ध दिखाई देते हैं। उन्होंने कोरोना महामारी के दौर में भारत राष्ट की वर्तमान सीमाओं से परे "वसुदैव कुटुम्बक" की भारतीय प्रतिपादित परंपरा का निर्लिप्त भाव से निर्वहन किया है। आज भी पूरे विश्व के "सर्वे भवन्तु सुखिन:" के सिद्धांत पालन में खाद्यान्न संकट के भीषण दौर में खाद्यान्न उपलब्ध कराने को तत्पर हैं।
पूरे विश्व में मोदी ने अपने आठ वर्षीय कार्यकाल में भारत का जो मन बढ़ाया है, वो अचंभित करने वाला है। मोदी ने पूरे विश्व की स्थापित अवधारणा को समाप्त किया है कि, विदेशों के नामी गिरामी विश्वविद्यालय में अध्ययन करने से व्यक्ति विद्वान हो जाता है, राष्ट्रभक्त हो जाता है। ऐसा जरूरी नहीं, ठीक इसके उलट देश में अध्ययन करने वाले लोगों में राष्ट्रभक्ति की भावना होती है, क्योंकि ये उन्हें संस्कार के साथ साथ शिक्षा में प्राप्त होती है।
अभी अभी क्वाड सम्मलेन में पूरे विश्व ने देखा किस तरह विकसित और शक्तिशाली देश के प्रमुख मोदी की अगुआई में विश्व में शांति स्थापित करने की राह खोज रहे हैं। आज भारत किसी भी देश का पिछलग्गू नहीं होकर, अपनी स्वयं की एक अलग प्रतिष्ठा स्थापित करने जा रहा है। जहां देश में सबसे ज्यादा शासन करने वाली पार्टी प्रमुख रहे राहुल नियोजित पत्रकार के साक्षात्कार में भारत की तुलना बदहाल पाकिस्तान से कर देश का मान गिरा रहे थे, अप्रत्यक्ष रूप से देश विरोधी चीन की मदद कर रहे थे, वहीं इसके ठीक उलट उनकी बेतुकी बातों का जवाब स्वयं अमेरिकी राष्ट्र प्रमुख ने मोदी की कोरोना काल में विश्व की नि:स्वार्थ सहयोग, सेवा की प्रशंसा कर दिया। दूसरी तरफ आई एम एफ प्रमुख द्वारा भारत से देश के गेहूं निर्यात पर से प्रतिबंध हटाने की गुहार लगाना भी राहुल की भुखमरी से त्रस्त पाकिस्तान के बयान का करारा जवाब है। अभी अभी मोदी का एक फोटो पूरे विश्व में कुतुहल जगा रहा है, जिसमें वे विश्व के विकसित राष्ट्रों की अगुआई में हैं, एक नए समर्थ भारत के प्रमुख का आत्मविश्वास स्पष्ट झलक रहा है।
मोदी कौन हैं ? मोदी देश की पारंपरिक सामान्य शिक्षा व्यवस्था, परिवार के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संस्कारित शुद्ध देशी व्यक्तित्व है, जो सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की भावना से ओतप्रोत है। वे गीता में कृष्ण द्वारा दिए कर्मयोग के उपदेश के अक्षरशः अनुगामी हैं। वे निर्द्वंद, निर्भय, नि:स्वार्थ भाव से नए भारत के निर्माण में रत हैं, वे अद्भुत कर्मयोगी हैं, वे अविवादित रूप से भारत के सर्वकालिक महान प्रधान हैं।
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