मनुष्य अपनी उत्पत्ति से लेकर आज तक कई चीजे खाता रहा है। मुलतह: शाकाहार और मांसाहार दो प्रकार के भोजन हैं। शाकाहार में पहले से यह बताया जाता रहा कि दूध खूब पियो मक्खन, दही, रबड़ी, मावे की मिठाई, घी इसका खूब प्रचलन हुआ। परंतु आजकल कई योगाचार्य और डॉक्टर आपको सलाह देते हैं कि दूध और डेरी प्रोडक्ट का उपयोग बिल्कुल ना करें। दाल चावल हमारे भोजन का प्रमुख हिस्सा है याने कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन लेकिन आज कल यह बताया जाता है कि चावल के साथ दाल न खाएं बल्कि सब्जी या दही से खाएं और रोटी दाल के साथ खाये। कई सलाहकार जमिकंद जैसे प्याज लहसुन आलु खाने के लिए मना करते हैं जबकि पूरे विश्व में प्याज लहसुन आलू प्रचुर मात्रा में खाए जाते हैं और अभी इस वायरस के दौर में खासकर प्याज लहसुन खाने की सलाह दी जाती रही। बहुत सारी सब्जीया बहुत फायदेमंद है जैसे करेला, केर सांगरी, जंगली भाजी आदि लेकिन इनका प्रचलन आमतौर पर कम है। इसी प्रकार स्वस्थ सेहत के लिए तिल, अलसी,आंवला, खसखस, तरबूज खरबूज कद्दू कलौंजी आदि के बीज, पेय पदार्थ में चिरायता, काढा, ग्रीन टी इन सब का नियमित सेवन करने की सलाह देते हैं परंतु आमतौर पर इनका प्रचलन बहुत कम है। इकोलॉजिकल अनुसार प्रदेश, संस्कृति और सभ्यता आधारीत भोजन भिन्न भिन्न प्रकार के होते है। मांसाहार में विषेशकर का समुद्री तट पर रहने वालो को सी-फूड बहुत पसंद आता है। कई देशों में जैसे चीन वहां कीट पतंगे सांप कसारी यह सब खाए जाते हैं। खानपान पर सलाह देने वाले योगाचार्य, डॉक्टर, डाइटिशियन, वैद्य और घर के बुजुर्ग को आवश्यकता इस बात की है की पारिस्थिति, संस्कृति और सभ्यता, व्यक्ति के खाने पचाने की क्षमता, उसकी रोजाना जिंदगी की दिनचर्या इन सब के आधार पर उसका खाना निर्धारित हो। अशोक मेहता, (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्) (ये लेखक के अपने
विचार है)
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