जैसे-जैसे भौतिकवाद बड़ा वैसे वैसे बीमारियां बढ़ती गई, हम जितना सर्व सुविधा युक्त होते रहे उतना अपने शरीर की ताकत से हाथ धोते रहें। आज हालत यह है कि अमूमन कई व्यक्ति 40 की उम्र से लेकर बाकी पूरी जिंदगी रोज दवाइयां लेते हैं, घर-घर ढेर सारी दवाई खरीदती जाती है। पहले इतना मेडिकल का व्यापार नहीं था, अब इस कदर बड गया कि रोटी कपड़ा मकान का व्यापार पीछे रह गया। जैसे-जैसे बीमारीयो का दौर बडा सैकड़ों दवाइयों की फैक्ट्री और बड़े-बड़े 5 स्टार हॉस्पिटल खुलते गए। कई लोग यहा सिर्फ ब्रांडिंग के पीछे अपना इलाज कराते हैं। लेकिन आज भी कई ऐसे डॉक्टर हैं जो ला-इलाज बीमारीयो का इलाज करते हैं नाम मात्र शुल्क पर और उनका इलाज भी परफेक्ट होता है। कई डॉक्टर जांच रिपोर्ट और सिम्टम्स पर इलाज करते हैं और कई बीमारी की जड़ पर जाकर उसे खत्म करने का इलाज करते हैं।
जितने भी व्यक्ति सोशल कार्यक्रमों में, चुनावी रैलिया या सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बेहिसाब पैसा खर्च करते हैं वह यदि पैसा सिर्फ सरकारी अस्पतालों पर या मानवता के अवतार डॉक्टर की मदद करने लग जाए तो आम आदमी का कितना भला होगा आप सोच नहीं सकते। वह भी नहीं सोच सकते जो यहां पैसा खर्च करेंगे, यही सीधे भगवान की सेवा होगी। इस बात पर विचार करें और यदि बात अच्छी लगे हैं तो सोचे कि हमें अपना पैसा कहां खर्च करना है
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