भारत वह देश है जहां अमीर गरीब सभी को जमाने भर के धार्मिक, संस्कृति वार त्यौहार कार्यक्रम करने का शौक लगा रहता है। साथ ही अपनी-अपनी मान्यता अनुसार रीति रिवाज करने में पीछे नहीं रहते हैं। चाहे पास में पैसा हो या ना हो, भले ही कर्जा लेकर भी बिना वजह के बनाए रिवाजों पर खर्च करेंगे। हम देखते हैं शादी के कई फंक्शन बेवजह हैं जिनका जीवन में कोई प्रभाव नहीं है। घर में कोई मृत्यु हो जाए तो पगड़ी बारवी तेरवी क्या-क्या फंक्शन नहीं करते, कई बार देखा है कि जिनके पास पैसा नहीं होता वह कर्ज लेकर भी ये कार्यक्रम करते हैं और मरने के बाद उस आदमी की याद में रसोई भी करते हैं और कुछ सामान या गिफ्ट भी बांटते हैं। शादी ब्याह में रीति रिवाज के नाम पर इतना लेनदेन करेंगे कि बस और गाड़ी यहीं नहीं रुकती है लेन-देन में कम ज्यादा पैसे भी किसी को मिले तो वह क्रिटिसाइज अलग करेगा। शादी ब्याह में शामिल होने जो रिश्तेदार आते हैं वह रीति रिवाज को लेकर कुछ ना कुछ कमेंट जरूर करते हैं कि देखो इस ने ऐसा नहीं ऐसा करना था। धर्म के नाम पर कई सांस्कृतिक, चुनरी यात्रा आदी की धूमधाम होती है। गणपति जी को 7 दिन तो बड़े मान सम्मान से रखते हैं और आठवें दिन विसर्जित करते हैं अरे गणपति तो दिल में शान से रखते हैं। देवो में प्रथम देव गणपति माने जाते हैं। हर धर्म में बिना वजह के कई रीति रिवाज बने हैं। अब समझदारी इसी बात में है कि इनको बदला जाए या नहीं माना जाए यह आप सोचो। अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्) ये लेखक के अपने विचार है I
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वर्तमान समय में टूटते बिखरते समाज को पुनः संगठित करने के लिये जरूरत है उर्मिला जैसी आत्मबल और चारित्रिक गुणों से भरपूर महिलाओं की जो समाज को एकजुट रख राष्ट्र…